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Ladies Hostel
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लेडीज़ हॉस्टल –
गुजराती के समर्थ कथाकार डॉ. केशुभाई देसाई की इस सर्वाधिक लोकप्रिय रचना को पढ़कर ज्ञानपीठ पुरस्कार से विभूषित कविवर राजेन्द्र शाह ने कहा है, “यह कोई साधारण प्रेमकथा नहीं है——तुम्हारे जैसे आत्मनिष्ठ सर्जक का अवलम्बन कर मानी, स्वयं सरस्वती ने मनोहारी गद्यशैली में ऊर्ध्वगामी आध्यात्मिक प्रणय का महाकाव्य रच डाला है…”
कच्छ में जेसल तोरल की सुप्रसिद्ध प्रेमसमाधि है——ख़ूँख़्वार डकैत से ‘पीर’ बने जेसल और सती तोरल की समाधि। केवल अपने विशुद्ध प्रेम और समर्पण के बल पर सती तोरल ने जेसल जैसे नृशंस लुटेरे को ‘पीर’ बना दिया था। लाखों की संख्या में लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास में लेखक ने उसी शाश्वत प्रणय चेतना का बड़े ही रमणीय ढंग से कथानायक प्रोफ़ेसर जाडेजा और उसकी तरुण शिष्या तोरल के अतिविशिष्ट एवं रोमांचिक ‘लव अफेयर’ के माध्यम से आलेखन किया है। कथा मेडिकल कॉलेज के ‘लेडीज़ हॉस्टल’ के इर्द-गिर्द घूमती है। जीवन के विषम यथार्थ से जूझ रहा नायक चरस का व्यसनी बन चुका है। उसे गिरते हुए थाम लेती है उसकी नाज़ुक कोमलांगी छात्रा, जो उम्र और सामाजिक सरोकारों से ऊपर उठकर उस पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है और उसे पुनः सच्चे इन्सान के रूप में प्रतिष्ठित करती है। यह सम्भव हो सका तो सिर्फ़ उस तोरल के निःशेष समर्पण और बलिदान के बल पर। कथानायक की स्वीकारोक्ति——’तोरल ने चिंगारी न जलाई होती तो जाडेजा की ज्योति बुझने के कग़ार पर थी…’ कितनी सटीक लगती है। इस करुण-मंगल रसयात्रा की इन्द्रधनुषी रंगलीला से सराबोर पाठक भी नायिका तोरल के इन शब्दों को गुनगुनाये बिना नहीं रह सकेगा: ‘जाडेजा, यह तो मानो आकाश का आरोहण…’
मूर्धन्य उपन्यासकार की कथायात्रा का यह विशिष्ट पड़ाव है। डॉ. बंसीधर द्वारा बड़े मनोयोग से किया गया यह अनुवाद मूल कृति को पढ़ने जैसा आनन्द देता है।
लेडीज़ हॉस्टल –
गुजराती के समर्थ कथाकार डॉ. केशुभाई देसाई की इस सर्वाधिक लोकप्रिय रचना को पढ़कर ज्ञानपीठ पुरस्कार से विभूषित कविवर राजेन्द्र शाह ने कहा है, “यह कोई साधारण प्रेमकथा नहीं है——तुम्हारे जैसे आत्मनिष्ठ सर्जक का अवलम्बन कर मानी, स्वयं सरस्वती ने मनोहारी गद्यशैली में ऊर्ध्वगामी आध्यात्मिक प्रणय का महाकाव्य रच डाला है…”
कच्छ में जेसल तोरल की सुप्रसिद्ध प्रेमसमाधि है——ख़ूँख़्वार डकैत से ‘पीर’ बने जेसल और सती तोरल की समाधि। केवल अपने विशुद्ध प्रेम और समर्पण के बल पर सती तोरल ने जेसल जैसे नृशंस लुटेरे को ‘पीर’ बना दिया था। लाखों की संख्या में लोग यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास में लेखक ने उसी शाश्वत प्रणय चेतना का बड़े ही रमणीय ढंग से कथानायक प्रोफ़ेसर जाडेजा और उसकी तरुण शिष्या तोरल के अतिविशिष्ट एवं रोमांचिक ‘लव अफेयर’ के माध्यम से आलेखन किया है। कथा मेडिकल कॉलेज के ‘लेडीज़ हॉस्टल’ के इर्द-गिर्द घूमती है। जीवन के विषम यथार्थ से जूझ रहा नायक चरस का व्यसनी बन चुका है। उसे गिरते हुए थाम लेती है उसकी नाज़ुक कोमलांगी छात्रा, जो उम्र और सामाजिक सरोकारों से ऊपर उठकर उस पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है और उसे पुनः सच्चे इन्सान के रूप में प्रतिष्ठित करती है। यह सम्भव हो सका तो सिर्फ़ उस तोरल के निःशेष समर्पण और बलिदान के बल पर। कथानायक की स्वीकारोक्ति——’तोरल ने चिंगारी न जलाई होती तो जाडेजा की ज्योति बुझने के कग़ार पर थी…’ कितनी सटीक लगती है। इस करुण-मंगल रसयात्रा की इन्द्रधनुषी रंगलीला से सराबोर पाठक भी नायिका तोरल के इन शब्दों को गुनगुनाये बिना नहीं रह सकेगा: ‘जाडेजा, यह तो मानो आकाश का आरोहण…’
मूर्धन्य उपन्यासकार की कथायात्रा का यह विशिष्ट पड़ाव है। डॉ. बंसीधर द्वारा बड़े मनोयोग से किया गया यह अनुवाद मूल कृति को पढ़ने जैसा आनन्द देता है।
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