Kufra

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
तहमीना दुर्रानी, अनुवाद - नरेन्द्र तोमर
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
तहमीना दुर्रानी, अनुवाद - नरेन्द्र तोमर
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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224

1991 में अपनी विवादास्पद आत्मकथा ‘माई फ्यूडल लार्ड’ लिखकर तहमीना दुर्रानी ने साहित्य जगत में हलचल मचा दी थी। इस पुस्तक का 22 भाषाओं में अनुवाद हुआ और इसे इटली का प्रतिष्ठित मारिसा बेलासासेरियो पुरस्कार भी मिला। ‘ब्लासफेमी’ उनकी दूसरी महत्वपूर्ण साहित्यिक रचना है। इस उपन्यास में भी पाठक को झिंझोड़ देने की वही क्षमता है, जो उनकी पहली कृति में है ।

यह उपन्यास दक्षिणी पाकिस्तान में स्थित एक दरगाह के पीरों के कारनामों की परतें उधेड़ने वाली सच्ची कथा पर आधारित है, जो इस्लाम के नाम पर आम आदमी का, मासूमों का शोषण करते हैं। कथा के केंद्र में है खूबसूरत हीर, पीर साईं की पत्नी हीर। आत्मकथात्मक शैली में वह जो कुछ बताती है, उससे मजहब की आड़ में सड़ी-गली परम्पराओं और पीरों के हैवानी कारनामों का पर्दाफाश होता है । पन्द्रह साल की उम्र में अल्लाह के बंदे पीर साईं की हवेली में व्याह कर आयी हीर ने उम्र भर जो घोर यातनाएँ भोगी और बर्बरताएँ सहीं वे किसी ख़त्म न होने वाले भयावह स्वप्न से कम नहीं। किंतु यह मात्र स्वप्न नहीं, बल्कि एक सच है, जो हवेली की दीवारें को चीरता हुआ हीर के माध्यम से बाहर आता है। दरगाह और हवेली का नरक भोगने वाली हीर अकेली नहीं है, उस गाँव के लोग और हवेली की चारदीवारी में कैदी की सी जिन्दगी बिताने वाली औरतें एक दहशत और यातनाओं के साये में जीने को मजबूर हैं। लेकिन होठों पर ताले जड़े हुए हैं, हीर इस ताले को तोड़ने की हिम्मत जुटाती है और आखिर सब कुछ कह डालती है, शोषण और यातनाओं का पर्याय बने पीर, हवेली और दरगाह के खिलाफ झंडा उठाती है, जिसके लिए उसे जान की बाजी तक लगानी पड़ती है। अल्लाह के दलाल बने पीर साईं ने हीर को ऐसे नरक में ला पटका जहाँ न उसका सम्मान बचा, न पीकीजगी और न आज़ादी ।

तहमीना दुर्रानी की कुलम ने हीर के ज़रिये एक ऐसे विषय को छूने का दुस्साहस किया है, जो इस्लामी देश में लगभग वर्जित है। तहमीना के इसी दुस्साहस और लेखनी के कमाल ने उन्हें इस महाद्वीप के अग्रणी लेखकों की पंक्ति में ला खड़ा किया।

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1991 में अपनी विवादास्पद आत्मकथा ‘माई फ्यूडल लार्ड’ लिखकर तहमीना दुर्रानी ने साहित्य जगत में हलचल मचा दी थी। इस पुस्तक का 22 भाषाओं में अनुवाद हुआ और इसे इटली का प्रतिष्ठित मारिसा बेलासासेरियो पुरस्कार भी मिला। ‘ब्लासफेमी’ उनकी दूसरी महत्वपूर्ण साहित्यिक रचना है। इस उपन्यास में भी पाठक को झिंझोड़ देने की वही क्षमता है, जो उनकी पहली कृति में है ।

यह उपन्यास दक्षिणी पाकिस्तान में स्थित एक दरगाह के पीरों के कारनामों की परतें उधेड़ने वाली सच्ची कथा पर आधारित है, जो इस्लाम के नाम पर आम आदमी का, मासूमों का शोषण करते हैं। कथा के केंद्र में है खूबसूरत हीर, पीर साईं की पत्नी हीर। आत्मकथात्मक शैली में वह जो कुछ बताती है, उससे मजहब की आड़ में सड़ी-गली परम्पराओं और पीरों के हैवानी कारनामों का पर्दाफाश होता है । पन्द्रह साल की उम्र में अल्लाह के बंदे पीर साईं की हवेली में व्याह कर आयी हीर ने उम्र भर जो घोर यातनाएँ भोगी और बर्बरताएँ सहीं वे किसी ख़त्म न होने वाले भयावह स्वप्न से कम नहीं। किंतु यह मात्र स्वप्न नहीं, बल्कि एक सच है, जो हवेली की दीवारें को चीरता हुआ हीर के माध्यम से बाहर आता है। दरगाह और हवेली का नरक भोगने वाली हीर अकेली नहीं है, उस गाँव के लोग और हवेली की चारदीवारी में कैदी की सी जिन्दगी बिताने वाली औरतें एक दहशत और यातनाओं के साये में जीने को मजबूर हैं। लेकिन होठों पर ताले जड़े हुए हैं, हीर इस ताले को तोड़ने की हिम्मत जुटाती है और आखिर सब कुछ कह डालती है, शोषण और यातनाओं का पर्याय बने पीर, हवेली और दरगाह के खिलाफ झंडा उठाती है, जिसके लिए उसे जान की बाजी तक लगानी पड़ती है। अल्लाह के दलाल बने पीर साईं ने हीर को ऐसे नरक में ला पटका जहाँ न उसका सम्मान बचा, न पीकीजगी और न आज़ादी ।

तहमीना दुर्रानी की कुलम ने हीर के ज़रिये एक ऐसे विषय को छूने का दुस्साहस किया है, जो इस्लामी देश में लगभग वर्जित है। तहमीना के इसी दुस्साहस और लेखनी के कमाल ने उन्हें इस महाद्वीप के अग्रणी लेखकों की पंक्ति में ला खड़ा किया।

About Author

तहमीना दुर्रानी तहमीना दुर्रानी इटली का प्रतिष्ठित मारिसा बेलासारियो सम्मान पाने वाली बहुचर्चित आत्मकथात्मक कृति 'माई फ्यूडल लार्ड' की लेखिका हैं। बाईस भाषाओं में इसका अनुवाद है। तहमीना ने अब्दुल सत्तार इदी की चुका है। जीवनी 'ए मिरर टु द ब्लाइंड' भी लिखी है। 'ब्लासफेमी' उनका पहला उपन्यास है। लाहौर (पाकिस्तान) में रहने वाली तहमीना ने इस उपन्यास के माध्यम से इस्लाम की ठेकेदारी करने वाले पीरों के कारनामों का पर्दाफाश किया है । विनीता गुप्ता 'ब्लासफेमी' उपन्यास का हिन्दी अनुवाद करने वाली डॉ. विनीता गुप्ता पिछले 16 साल से पत्रकारिता जगत में सक्रिय हैं। 'कतरा-कतरा ज़िन्दगी' और 'इन दिनों' नाम से उनकी ग़ज़लों के दो संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़ल पर पीएच.डी. । टेलीविजन कार्यक्रमों के निर्देशन और निर्माण से जुड़ी रहीं। उन्होंने अनेक वृत्तचित्रों का निर्माण भी किया है। समाचार आधारित कार्यक्रम 'एशिया ए.एम.' के निर्माण के अलावा धारावाहिक 'देखते रहिए' का पटकथा लेखन किया। वर्तमान में ‘पाञ्चजन्य' हिन्दी साप्ताहिक में ब्यूरो प्रमुख पद पर कार्यरत ।

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