Kitani Navon Mein Kitani Baar

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
अगेय
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
अगेय
Language:
Hindi
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Paperback

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100

कितनी नावों में कितनी बार –
ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978) से सम्मानित ‘कितनी नावों में कितनी बार’ अज्ञेय की 1962 से 1966 के बीच रचित कविताओं का संकलन है। यों तो ‘अज्ञेय’ की कविताओं के किसी भी संग्रह के लिए कहा जा सकता है कि वह उनकी जीवन-दृष्टि का परिचायक है, किन्तु प्रस्तुत संग्रह इस रूप में विशिष्ट है कि अज्ञेय की सतत सत्य-सन्धानी दृष्टि की अटूट, खरी अनुभूति की टंकार इसमें मुख्य रूप से गूँजती है।
‘कितनी नावों में कितनी बार’ में कवि ने एक बार फिर अपनी अखण्ड मानव-आस्था को भारतीयता के नाम से प्रचलित अवाक् रहस्यवादिता से वैसे ही दूर रखा है जैसे प्रगल्भ आधुनिक अनास्था के साँचे से उसे हमेशा दूर रखता रहा है। मनुष्य की गति और उसकी नियति की ऐसी पकड़ समकालीन कविता में अन्यत्र दुर्लभ है।
पाठकों को समर्पित है इस कृति का यह नया संस्करण।

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Description

कितनी नावों में कितनी बार –
ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978) से सम्मानित ‘कितनी नावों में कितनी बार’ अज्ञेय की 1962 से 1966 के बीच रचित कविताओं का संकलन है। यों तो ‘अज्ञेय’ की कविताओं के किसी भी संग्रह के लिए कहा जा सकता है कि वह उनकी जीवन-दृष्टि का परिचायक है, किन्तु प्रस्तुत संग्रह इस रूप में विशिष्ट है कि अज्ञेय की सतत सत्य-सन्धानी दृष्टि की अटूट, खरी अनुभूति की टंकार इसमें मुख्य रूप से गूँजती है।
‘कितनी नावों में कितनी बार’ में कवि ने एक बार फिर अपनी अखण्ड मानव-आस्था को भारतीयता के नाम से प्रचलित अवाक् रहस्यवादिता से वैसे ही दूर रखा है जैसे प्रगल्भ आधुनिक अनास्था के साँचे से उसे हमेशा दूर रखता रहा है। मनुष्य की गति और उसकी नियति की ऐसी पकड़ समकालीन कविता में अन्यत्र दुर्लभ है।
पाठकों को समर्पित है इस कृति का यह नया संस्करण।

About Author

सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (7 मार्च 1911-4 अप्रैल 1987) - मानव मुक्ति एवं स्वाधीन चिन्तन के अग्रणी कवि-कथाकार-आलोचक-सम्पादक । कुशीनगर, देवरिया (उ.प्र.) में एक पुरातत्त्व उत्खनन शिविर में जन्म। बचपन लखनऊ, पटना, मद्रास, लाहौर में। बी.एससी. लाहौर से । 1924 में पहली कहानी व 1927 में पहली कविता का लेखन। इस बीच हिन्दुस्तान रिपब्लिक आर्मी के चन्द्रशेखर आज़ाद, सुखदेव और भगवतीचरण बोहरा से सम्पर्क । क्रान्तिकारी जीवन । दिल्ली में हिमालयन टॉयलेट फैक्ट्री के पर्दे में बम बनाने का कार्य। 15 नवम्बर, 1930 में गिरफ्तारी, जेलयात्रा। इसी यातनाकाल में चिन्ता एवं शेखर : एक जीवनी की रचना । जैनेन्द्र कुमार, प्रेमचन्द, मैथिलीशरण गुप्त, रायकृष्ण दास से सम्पर्क बढ़ा । प्रकाशन : सोलह कविता-संग्रह, आठ कहानी-संग्रह, तीन उपन्यास, दो उपन्यास अधूरे तथा एक प्रयोगशील उपन्यास मित्रों के साथ। 'तारसप्तक' (1943) के प्रकाशन के साथ साहित्य में तमाम नयी सोच से भारी बहसों का आरम्भ। 'सैनिक', 'विशाल भारत', 'दिनमान', 'प्रतीक' आदि अनेक पत्रिकाओं का सम्पादन । साहित्य अकादेमी पुरस्कार, भारत-भारती पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार एवं अन्तरराष्ट्रीय गोल्डन रीथ पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित । एक साहसी यायावर के नाते यूरोप, अमेरिका, एशिया के कई देशों में व्याख्यान एवं अन्य साहित्यिक आयोजन ।

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