Kinnar Gatha

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
शीला डागा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
शीला डागा
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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आज भी भारत में हिजड़ा समाज की स्थिति अत्यन्त दयनीय ही है। कुछ लोगों का विचार है कि भारत की जाति-व्यवस्था इसका कारण है। परन्तु यह सोच गलत है। जाति-व्यवस्था तो बहुत पुराने समय से चलती रही है। पर जैसा कि पीछे कहा जा चुका है-हिजड़ों की ख़राब स्थिति का कारण सीधे-सीधे ब्रिटिश शासन को माना जाना चाहिए। क्योंकि उससे पहले के भारतीय साहित्य में कहीं हिजड़ों के पृथक् समाज का उल्लेख नहीं मिलता। ‘मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी’ नामक लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी की आत्मकथा से यह तो प्रमाणित हो ही गया कि यदि माता-पिता का संरक्षण, उनका साथ मिले, माता-पिता, भाई-बहन का दृष्टिकोण सकारात्मक हो तो एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी आकाश की ऊँचाइयों को छू सकता है

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Description

आज भी भारत में हिजड़ा समाज की स्थिति अत्यन्त दयनीय ही है। कुछ लोगों का विचार है कि भारत की जाति-व्यवस्था इसका कारण है। परन्तु यह सोच गलत है। जाति-व्यवस्था तो बहुत पुराने समय से चलती रही है। पर जैसा कि पीछे कहा जा चुका है-हिजड़ों की ख़राब स्थिति का कारण सीधे-सीधे ब्रिटिश शासन को माना जाना चाहिए। क्योंकि उससे पहले के भारतीय साहित्य में कहीं हिजड़ों के पृथक् समाज का उल्लेख नहीं मिलता। ‘मैं हिजड़ा मैं लक्ष्मी’ नामक लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी की आत्मकथा से यह तो प्रमाणित हो ही गया कि यदि माता-पिता का संरक्षण, उनका साथ मिले, माता-पिता, भाई-बहन का दृष्टिकोण सकारात्मक हो तो एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी आकाश की ऊँचाइयों को छू सकता है

About Author

शीला डागा जन्म : 1944। 1949 से कन्या गुरुकुल महाविद्यालय, देहरादून आश्रम (छात्रावास) में निवास करते हुए विद्यालंकार (बी.ए.) 1962 में। स्वर्ण पदक प्राप्त। 1964 में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए.। 1984 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.फिल. (ऋग्वेद के काव्यात्मक सूक्त-लघु शोध प्रबन्ध)। 1988 में दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएच.डी. उपाधि। ऋग्वेद एवं अथर्ववेद का तुलनात्मक अर्थवैज्ञानिक अध्ययन (सामाजिक सम्बन्धवाची शब्दों पर)। दिल्ली विश्वविद्यालय प्रेस से घकाशित, 1995। डेप्लोमा, जर्मन भाषा, दिल्ली विश्वविद्यालय, 1985। डेप्लोमा, अंग्रेज़ी-हिन्दी अनुवाद, 1984 । रेसर्च फेलो, महाभारत डेटाबेस प्रोजेक्ट, मानव संसाधन विकास मन्त्रालय, भारत सरकार (जनवरी 1990 से अक्टूबर 1994)। कन्या गुरुकुल स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देहरादून, द्वितीय परिसर' गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार में प्राचार्या (1996-1997)। 1998-1999, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय में एम.ए. कक्षाओं का अध्यापन। 1986 से 1996 तक तथा 1998 से 2003 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न महाविद्यालयों में तदर्थ नियुक्ति पर अध्यापन कार्य। ऋग्वेद मञ्जरी (वैदिक सूक्त संकलन : एक विशद अध्ययन संस्कृत-हिन्दी अनुवाद, वैदिक व्याकरण सहित) 2001 में प्रकाशित। 2004 से 2005 तक बिलारी. (मुरादाबाद) में स्कूल में प्राचार्या (ऑनरेरी)। "क्यों नहीं नदी जोड़' पुस्तक तरुण भारत संघ, जयपुर से प्रकाशित (2005)। 1962 से ही महिलाओं, दलितों के शोषण, छुआछूत, दहेज प्रथा, चर्दा प्रथा, आदि सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध संघर्षरत। अनेक शोध लेख सामाजिक सरोकारों से जुड़े दिल्ली विश्वविद्यालय की गोष्ठियों एवं सम्मेलनों में प्रस्तुत कुछ प्रकाशित भी। चेद और उपनिषद् (एक संक्षिप्त परिचय) प्रेस में।

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