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Khoobsoorat Hai Aaj Bhi Duniya

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
माधव कौशिक
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
माधव कौशिक
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 9788126330966 Category
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112

ख़ूबसूरत है आज भी दुनिया –
आज का समय इतिहास के सर्वाधिक संकटपूर्ण कालखण्डों में से एक है। उपभोक्तावादी अपसंस्कृति तथा बाज़ारवाद का अजगर हमारे सम्बन्धों की सारी ऊर्जा तथा ऊष्मा को सोखने लगा है। भूमण्डलीकरण तथा उदारवाद की आँधी ने मानवीय समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद ने इस विषैले वातावरण को रक्तरंजित कर इसे और अधिक भयावह बना दिया है। ऐसी अराजक परिस्थितियों तथा दमघोंटू वातावरण में केवल सृजनशील रचनाकार ही अपने क़लम जैसे नाज़ुक हथियार के साथ युद्ध के मैदान में डटे हैं। इन क़लमकारों की अदम्य जिजीविषा तथा अटूट आस्था ही समाज का सम्बल बनती है।
‘ख़ूबसूरत है आज भी दुनिया’ संग्रह की ग़ज़लों में इन्हीं विषम तथा विकट स्थितियों में फँसे आम आदमी की आह और कराह के साथ उसके सपने, उसकी आशा-निराशा तथा उसके संघर्ष को वाणी देने की कोशिश की गयी है। इस सारे कलुष तथा कालिमा के बावजूद दुनिया का नैसर्गिक सौन्दर्य हमें जीने के लिए बाध्य करता है। संसार की इसी ख़ूबसूरती को बनाये रखने तथा बचाये रखने के लिए प्रत्येक सृजनशील साहित्यकार अपनी तरह से प्रयास करता है। इन ग़ज़लों की प्रत्येक काव्य-पंक्ति में मानवता के हाहाकार के पार्श्व से उठते हुए मानव-मूल्यों के जयकार का स्वर भी सुनायी देगा। इसी घटाटोप अँधियारे को चीरकर आस्था, विश्वास तथा संघर्षशीलता का उजास आपको आग पर चलने के लिए विवश करता रहेगा।

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ख़ूबसूरत है आज भी दुनिया –
आज का समय इतिहास के सर्वाधिक संकटपूर्ण कालखण्डों में से एक है। उपभोक्तावादी अपसंस्कृति तथा बाज़ारवाद का अजगर हमारे सम्बन्धों की सारी ऊर्जा तथा ऊष्मा को सोखने लगा है। भूमण्डलीकरण तथा उदारवाद की आँधी ने मानवीय समाज के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद ने इस विषैले वातावरण को रक्तरंजित कर इसे और अधिक भयावह बना दिया है। ऐसी अराजक परिस्थितियों तथा दमघोंटू वातावरण में केवल सृजनशील रचनाकार ही अपने क़लम जैसे नाज़ुक हथियार के साथ युद्ध के मैदान में डटे हैं। इन क़लमकारों की अदम्य जिजीविषा तथा अटूट आस्था ही समाज का सम्बल बनती है।
‘ख़ूबसूरत है आज भी दुनिया’ संग्रह की ग़ज़लों में इन्हीं विषम तथा विकट स्थितियों में फँसे आम आदमी की आह और कराह के साथ उसके सपने, उसकी आशा-निराशा तथा उसके संघर्ष को वाणी देने की कोशिश की गयी है। इस सारे कलुष तथा कालिमा के बावजूद दुनिया का नैसर्गिक सौन्दर्य हमें जीने के लिए बाध्य करता है। संसार की इसी ख़ूबसूरती को बनाये रखने तथा बचाये रखने के लिए प्रत्येक सृजनशील साहित्यकार अपनी तरह से प्रयास करता है। इन ग़ज़लों की प्रत्येक काव्य-पंक्ति में मानवता के हाहाकार के पार्श्व से उठते हुए मानव-मूल्यों के जयकार का स्वर भी सुनायी देगा। इसी घटाटोप अँधियारे को चीरकर आस्था, विश्वास तथा संघर्षशीलता का उजास आपको आग पर चलने के लिए विवश करता रहेगा।

About Author

माधव कौशिक - जन्म: 1 नवम्बर, 1954 को भिवानी, हरियाणा में। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), बी.एड., अनुवाद में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। प्रमुख प्रकाशन: 'आईनों के शहर में', 'किरण सुबह की', 'सपने खुली निगाहों के', 'हाथ सलामत रहने दो', 'आसमान सपनों का', 'नयी सदी का सन्नाटा', 'सबसे मुश्किल मोड़ पर', 'सूरज के उगने तक', 'अंगारों पर नंगे पाँव' (ग़ज़ल-संग्रह); 'सुनो राधिका', 'लौट आओ पार्थ' (खण्ड काव्य); 'मौसम खुले विकल्पों का', 'शिखर सम्भावना के' (नवगीत संग्रह); 'ठीक उसी वक़्त' (कहानी-संग्रह); 'खिलौने माटी के', 'आओ अम्बर छू लें' (बाल साहित्य); 'नवगीत की विकास यात्रा' (आलोचना); 'हरियाणा की प्रतिनिधि कविता' (सम्पादन) एवं दो पुस्तकों का अनुवाद। सम्मान: विश्व हिन्दी सम्मेलन, नयी दिल्ली द्वारा 'सहस्राब्दि सम्मान' (2000), हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा 'राजभाषा रत्न' (2003), हरियाणा साहित्य अकादेमी द्वारा 'बाबू बालमुकुन्द गुप्त सम्मान' (2005), 'अखिल भारतीय बलराज साहनी पुरस्कार' (2006) I

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