Khinchaaiyaan

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
गंगाधर गाडगिल
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
गंगाधर गाडगिल
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9788126340064 Category
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227

खिंचाइयाँ –
व्यंग्य साहित्य में व्यंग्यात्मक प्रवृत्तियों को हास्य का विषय बनाकर जीवन सम्बन्धी कुछ गहन तथ्यों की चर्चा की जाती है। गंगाधर गाडगिल का लेखन इस अर्थ में प्रस्थापित परम्परा को लाँघता है। उनका लेखन मात्र व्यंग्यात्मकता का निर्माण नहीं करता, बल्कि यथार्थ को तोड़-मरोड़कर हास्य भी पैदा करता है। उन्होंने विविध प्रयोगों द्वारा हास्यानुभूति को उत्कटता और सच्चाई के साथ पाठकों तक सम्प्रेषित करने का प्रयास किया है।
वे अपने लेखन में कहीं स्वयं चरित्र हैं तो कहीं चरित्रों के बीच निवेदक। वे स्थितियों में ऐसी कल्पनाएँ जोड़ते हैं जो यथार्थ से दूर लगने पर भी यथार्थ को ही निशाना बनाती हैं। इस अकल्पनीय स्थिति को मराठी हास्य-व्यंग्य में विक्षिप्त प्रवृत्ति (whimsical trend) कहा गया है।
लेखक ने खिचाइयाँ में सास-बहू के बीच तनाव, पति-पत्नी के आपसी मनमुटाव, पिता-पुत्र के सम्बन्धों के सुख-दुःखात्मक पहलू, स्त्री के मन में ससुरालवालों के प्रति पूर्वग्रह, संयुक्त परिवार की उलझनें और नयी-पुरानी पीढ़ी की टकराहट को दृश्यात्मकता के साथ कई रंगों में अंकित किया है। इसी प्रकार समाज, राजनीति व अर्थव्यवस्था पर उनकी व्यंग्य-भरी मुस्कराहट स्पष्ट दीखती है। कहना न होगा कि गंगाधर गाडगिल ने मराठी के हास्य-व्यंग्य को एक नया आयाम दिया है।
आशा है, उनकी अन्य रचनाओं की तरह खिंचाइयाँ भी पाठकों को अपनी ओर खींचेगी।

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Description

खिंचाइयाँ –
व्यंग्य साहित्य में व्यंग्यात्मक प्रवृत्तियों को हास्य का विषय बनाकर जीवन सम्बन्धी कुछ गहन तथ्यों की चर्चा की जाती है। गंगाधर गाडगिल का लेखन इस अर्थ में प्रस्थापित परम्परा को लाँघता है। उनका लेखन मात्र व्यंग्यात्मकता का निर्माण नहीं करता, बल्कि यथार्थ को तोड़-मरोड़कर हास्य भी पैदा करता है। उन्होंने विविध प्रयोगों द्वारा हास्यानुभूति को उत्कटता और सच्चाई के साथ पाठकों तक सम्प्रेषित करने का प्रयास किया है।
वे अपने लेखन में कहीं स्वयं चरित्र हैं तो कहीं चरित्रों के बीच निवेदक। वे स्थितियों में ऐसी कल्पनाएँ जोड़ते हैं जो यथार्थ से दूर लगने पर भी यथार्थ को ही निशाना बनाती हैं। इस अकल्पनीय स्थिति को मराठी हास्य-व्यंग्य में विक्षिप्त प्रवृत्ति (whimsical trend) कहा गया है।
लेखक ने खिचाइयाँ में सास-बहू के बीच तनाव, पति-पत्नी के आपसी मनमुटाव, पिता-पुत्र के सम्बन्धों के सुख-दुःखात्मक पहलू, स्त्री के मन में ससुरालवालों के प्रति पूर्वग्रह, संयुक्त परिवार की उलझनें और नयी-पुरानी पीढ़ी की टकराहट को दृश्यात्मकता के साथ कई रंगों में अंकित किया है। इसी प्रकार समाज, राजनीति व अर्थव्यवस्था पर उनकी व्यंग्य-भरी मुस्कराहट स्पष्ट दीखती है। कहना न होगा कि गंगाधर गाडगिल ने मराठी के हास्य-व्यंग्य को एक नया आयाम दिया है।
आशा है, उनकी अन्य रचनाओं की तरह खिंचाइयाँ भी पाठकों को अपनी ओर खींचेगी।

About Author

गंगाधर गाडगिल - मराठी के विख्यात कथाकार और व्यंग्य-लेखक। जन्म: 25 अगस्त, 1923 को मुम्बई में। 1944 में बम्बई वि.वि. से अर्थशास्त्र में एम.ए. करने के बाद प्राध्यापक और प्राचार्य रहे। अनेक उद्योग समूहों के आर्थिक सलाहकार तथा साहित्य अकादेमी सहित अनेक शैक्षिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध। सम्प्रति मुम्बई मराठी साहित्य संघ के अध्यक्ष व मुम्बई मराठी ग्रन्थ-संग्रहालय के उपाध्यक्ष । 1941 से निरन्तर लेखन कार्य में प्रवृत्त। मराठी में कहानी, उपन्यास, नाटक, आलोचना व व्यंग्य जैसी प्रमुख विधाओं में अब तक पचास से अधिक कृतियाँ प्रकाशित। अनेक रचनाएँ देशी-विदेशी भाषाओं में अनूदित। कुछ व्यंग्य-रचनाएँ ऑस्ट्रेलिया व कनाडा की पाठ्य पुस्तकों में शामिल। 'अभिरुचि पुरस्कार', 'केलकर पुरस्कार', मुम्बई मराठी साहित्य-संघ का 'उत्कृष्ट लेखक पुरस्कार', दीनानाथ मंगेशकर प्रतिष्ठान का 'वाग्-विलासिनी पुरस्कार', 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित। (अनुवादक) माधवी प्रसाद देशपाण्डे - मराठी से हिन्दी की जानी-मानी अनुवादिका। मुम्बई विश्वविद्यालय से बी.एससी. (होम साइंस) तथा मास्टर ऑफ़ सोशल वर्क। हिन्दी एवं मराठी की प्रमुख पत्रिकाओं में कहानियाँ एवं अनुवाद प्रकाशित।

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