KHILEGA TO DEKHENGE (PB)

Publisher:
Rajkamal Prakashan
| Author:
Vinod Kumar Shukla
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal Prakashan
Author:
Vinod Kumar Shukla
Language:
Hindi
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Paperback

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खिलेगा तो देखेंगे विनोद कुमार शुक्ल का बहुत चर्चित उपन्यास है। आदिवासी जीवन और परिवेश के दृश्यों में रचे-बसे इस उपन्यास में भी विनोद कुमार शुक्ल की वह कथा-शैली देखने को मिलती है जो उनका अपना आविष्कार है। बिना किसी ठोस कथा-सूत्र के खिलेगा तो देखेंगे’ एक सामूहिक जीवन की कथा कहता हैजिसमें असाधारण शिल्प में बुनी दृश्यावली और कल्पनाशील बिम्बों के द्वारा साधनहीनों और अकसर मूक रहनेवाले लोगों के सुख और दु:ख ख़ुद-ब-ख़ुद सामने आकर अपने आपको दिखाते हैं। यह उपन्यास जो आप को बताता हैआप उससे ज़्यादा महसूस कर पाते हैं जिसका श्रेय विनोद कुमार शुक्ल के जादू जैसे गद्यउनकी दृष्टि और भाषा को जाता है। प्रकृति इस कथा में जीवन की भी सहचरी हैपीड़ा और प्रसन्नताओं की भीऔर उस उम्मीद की भी जिसे विनोद कुमार शुक्ल हर हाल में बचाए रखते हैं।

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Description

खिलेगा तो देखेंगे विनोद कुमार शुक्ल का बहुत चर्चित उपन्यास है। आदिवासी जीवन और परिवेश के दृश्यों में रचे-बसे इस उपन्यास में भी विनोद कुमार शुक्ल की वह कथा-शैली देखने को मिलती है जो उनका अपना आविष्कार है। बिना किसी ठोस कथा-सूत्र के खिलेगा तो देखेंगे’ एक सामूहिक जीवन की कथा कहता हैजिसमें असाधारण शिल्प में बुनी दृश्यावली और कल्पनाशील बिम्बों के द्वारा साधनहीनों और अकसर मूक रहनेवाले लोगों के सुख और दु:ख ख़ुद-ब-ख़ुद सामने आकर अपने आपको दिखाते हैं। यह उपन्यास जो आप को बताता हैआप उससे ज़्यादा महसूस कर पाते हैं जिसका श्रेय विनोद कुमार शुक्ल के जादू जैसे गद्यउनकी दृष्टि और भाषा को जाता है। प्रकृति इस कथा में जीवन की भी सहचरी हैपीड़ा और प्रसन्नताओं की भीऔर उस उम्मीद की भी जिसे विनोद कुमार शुक्ल हर हाल में बचाए रखते हैं।

About Author

विनोद कुमार शुक्ल जन्म : 1 जनवरी, 1937 को राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) में। प्रमुख कृतियाँ : पहला कविता-संग्रह 1971 में ‘लगभग जयहिन्द’ (‘पहल’ सीरीज़ के अन्तर्गत), ‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह’ (1981), ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’ (1992), ‘अतिरिक्त नहीं’ (2000), ‘कविता से लम्बी कविता’ (2001), ‘कभी के बाद अभी’ (सभी कविता-संग्रह); 1988 में ‘पेड़ पर कमरा’ (‘पूर्वग्रह’ सीरीज़ के अन्तर्गत) तथा 1996 में ‘महाविद्यालय’ (कहानी-संग्रह); ‘नौकर की कमीज़’ (1979), ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़’ (सभी उपन्यास)। मेरियोला आफ्रीदी द्वारा इतालवी में अनुवादित एक कविता-पुस्तक का इटली में प्रकाशन, इतालवी में ही पेड़ पर कमरा का भी अनुवाद। इसके अलावा कुछ रचनाओं का मराठी, मलयालम, अंग्रेज़ी तथा जर्मन भाषाओं में अनुवाद। मणि कौल द्वारा 1999 में ‘नौकर की कमीज़’ पर फ़िल्म का निर्माण। ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ पर फ़िल्म-निर्माण का कार्य अधूरा। ‘आदमी की औरत’ और ‘पेड़ पर कमरा’ सहित कुछ कहानियों पर बनी फ़िल्म ‘आदमी की औरत’ (निर्देशक—अमित) को वेनिस फ़िल्म फ़ेस्टिवल के 66वें समारोह 2009 में ‘स्पेशल इवेंट पुरस्कार’। दो वर्ष के लिए निराला सृजनपीठ में अतिथि साहित्यकार रहे (1994-1996)। सम्मान : ‘गजानन माधव मुक्तिबोध फ़ेलोशिप’, ‘रज़ा पुरस्कार’, ‘दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान’, ‘रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ आदि। इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में कृषि-विस्तार के सह-प्राध्यापक पद से 1996 में सेवानिवृत्त, अब स्वतंत्र लेखन।

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