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Khamosh! Adalat Jari Hai

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
डॉ. पद्मजा घोरपडे द्वारा विजय तेंदुलकर का मराठी से हिंदी में अनुवाद
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
डॉ. पद्मजा घोरपडे द्वारा विजय तेंदुलकर का मराठी से हिंदी में अनुवाद
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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SKU 9789387409309 Category
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Page Extent:
120

समाज न्याय पर स्थित है और न्याय क़ानून पर। और क़ानून गधा है! (इसका मतलब यह नहीं कि समाज गधेपन पर आश्रित है। यह पूर्ण सत्य नहीं हो सकता क्योंकि गधा सिर्फ़ बुद्धिहीन होता है, क्रूर नहीं।) परम्परागत आचार-विचार और जंग लगी रूढ़ियाँ भी समाज के अलिखित क़ानून होते हैं। और इसकी चौखट जाने-अनजाने लाँघने वाला व्यक्ति समाज में सज़ा के योग्य होता है। न्याय-अन्याय के इस भयावह खेल में मशगूल समाज की अदालत में एक मुक़दमा पेश किया गया है। शरीर के ‘शरीरत्व’ का शाप ढोने वाली एक मनस्वी लड़की पर। मुकदमा चलाया जा रहा है। इस अभियोग का उद्देश्य न तो सनातन मूल्यों की जाँच करना है और न ही न्याय-अन्याय से किसी को कुछ लेना-देना है। तयशदा चौखट में जीते-जीते ऊब गये, थके-माँदे समाज ने मनोरंजन हेतु इस खेल का आरम्भ किया है। खेल की। अन्तिम परिणति के बारे में किसी को कछ लेना-देना नहीं है। सिर्फ़ समय काटना है। मुक़दमा जितना सनसनीखेज़ होगा। उतना समय अच्छा बीतने वाला है। – श्रीराम लागू

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Description

समाज न्याय पर स्थित है और न्याय क़ानून पर। और क़ानून गधा है! (इसका मतलब यह नहीं कि समाज गधेपन पर आश्रित है। यह पूर्ण सत्य नहीं हो सकता क्योंकि गधा सिर्फ़ बुद्धिहीन होता है, क्रूर नहीं।) परम्परागत आचार-विचार और जंग लगी रूढ़ियाँ भी समाज के अलिखित क़ानून होते हैं। और इसकी चौखट जाने-अनजाने लाँघने वाला व्यक्ति समाज में सज़ा के योग्य होता है। न्याय-अन्याय के इस भयावह खेल में मशगूल समाज की अदालत में एक मुक़दमा पेश किया गया है। शरीर के ‘शरीरत्व’ का शाप ढोने वाली एक मनस्वी लड़की पर। मुकदमा चलाया जा रहा है। इस अभियोग का उद्देश्य न तो सनातन मूल्यों की जाँच करना है और न ही न्याय-अन्याय से किसी को कुछ लेना-देना है। तयशदा चौखट में जीते-जीते ऊब गये, थके-माँदे समाज ने मनोरंजन हेतु इस खेल का आरम्भ किया है। खेल की। अन्तिम परिणति के बारे में किसी को कछ लेना-देना नहीं है। सिर्फ़ समय काटना है। मुक़दमा जितना सनसनीखेज़ होगा। उतना समय अच्छा बीतने वाला है। – श्रीराम लागू

About Author

विजय तेंडुलकर वर्तमान भारतीय रंग-परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण नाटककार के रूप में समादृत श्री तेंडुलकर मूलतः मराठी के साहित्यकार हैं जिनका जन्म 7 जनवरी, 1928 को हुआ। उन्होंने लगभग तीस नाटकों तथा दो दर्जन एकांकियों की रचना की है, जिनमें से अनेक आधुनिक भारतीय रंगमंच की। क्लासिक कृतियों के रूप में शुमार होते हैं। उनके नाटकों में प्रमुख हैं-शांतता! कोर्ट चालू आहे (1967), सखाराम बाइंडर (1972), कमला (1981), कन्यादान (1983)। श्री तेंडुलकर के नाटक घासीराम कोतवाल (1972) की मूल मराठी में और अनूदित रूप में देश और विदेश में छह हज़ार से ज़्यादा प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं। मराठी लोकशैली, संगीत तथा आधुनिक रंगमंचीय तकनीक से सम्पन्न यह नाटक दुनिया के सर्वाधिक मंचित होने वाले नाटकों में से एक का दर्जा पा चुका है। श्री तेंडलकर ने बच्चों के लिए भी ग्यारह नाटकों की रचना की है। उनकी कहानियों के चार संग्रह और सामाजिक आलोचना व साहित्यिक लेखों के पाँच संग्रह प्रकाशित हो। चुके हैं। इन्होंने दूसरी भाषाओं से मराठी में अनुवाद किये हैं, जिसके तहत नौ उपन्यास, दो जीवनियाँ और पाँच नाटक भी उनके कृतित्व में शामिल हैं। इसके अलावा बीस के करीब फ़िल्मों का लेखन। हिन्दी की निशान्त, मन्थन, आक्रोश, अर्धसत्य आदि। दूरदर्शन धारावाहिक स्वयंसिद्ध, प्रिय तेंडुलकर टॉक शो। सम्मान पुरस्कार : नेहरू फेलोशिप (1973-74), टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में अभ्यागत प्राध्यापक के रूप में (1979-1981), पद्म भूषण (1984), फ़िल्मफेयर से पुरस्कृत। 19 मई, 2008 को पुणे (महाराष्ट्र) में महाप्रस्थान।

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