कविता पेंटिंग पेड़ कुछ नहीं | KAVITA PANTING PED KUCHH NAHI

Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
KAILASH BANVASHI
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Setu Prakashan
Author:
KAILASH BANVASHI
Language:
Hindi
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कैलाश बनवासी एक अत्यंत मूल्यवान गठरी पर बैठे हैं। छत्तीसगढ़, बस्तर, सरगुजा के अँधेरों में एक ऐसा मनुष्य करवट ले रहा है जिसका बीज मुक्तिबोध ने बोया था। प्रेमचंद युग में भी बैल बिकने से वापस होते हैं, जैनेंद्र कुमार की गाय मनुष्यों की तरह बोलने लगती है बाज़ार में, उपेंद्रनाथ अश्क की डाची का भी संकेत इसी तरह जबरदस्त है और हमारे कैलाश बनवासी ने भी इसी मार्ग को रचनात्मक रूप से स्वीकार किया है। कैलाश बनवासी की कहानियाँ देहाती मध्यम वर्ग की प्रतिनिधि कहानियाँ हैं। इस समाज पर लिखने वाले विरल हैं। शिवपूजन सहाय की देहाती दुनिया से लेकर कैलाश बनवासी की देहाती दुनिया तक अगर देखा जाए तो दिलचस्प और खतरनाक परिवर्तन हो गये हैं । शोहदों, दलालों, फूहड़ अमीरों, हिंसक धर्मप्राणों और ज़मीन हड़पने का प्रचंड महाभारत चलाने वालों, यथास्थिति के लिए अपने प्राण झोंक देने वाले अध्यापकों के संदर्भ में अपनी कसैली कहानियाँ लिखने वाले कैलाश बनवासी का मैं हार्दिक अभिवादन करता हूँ। कैलाश की कहानियाँ श्वेत-श्याम हैं, कभी-कभी वे अमृता शेरगिल की कलाकृतियों की तरह धूसर हैं। हिंदी की रक्त वाहिनियों के बीच, धीमी जगह में, शहरी जौहर से दूर रहने वाले कैलाश बनवासी की बनायी गयी शोहरत नहीं है, उसने उसे सम्मान से अर्जित किया है। बनवासी की प्रकृति में विक्रय कला नहीं है, वह बिल्कुल कछुवा है, सख्त और धीमा है, हड़बड़ी में नहीं रहता। उसे पहचाना गया।

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कैलाश बनवासी एक अत्यंत मूल्यवान गठरी पर बैठे हैं। छत्तीसगढ़, बस्तर, सरगुजा के अँधेरों में एक ऐसा मनुष्य करवट ले रहा है जिसका बीज मुक्तिबोध ने बोया था। प्रेमचंद युग में भी बैल बिकने से वापस होते हैं, जैनेंद्र कुमार की गाय मनुष्यों की तरह बोलने लगती है बाज़ार में, उपेंद्रनाथ अश्क की डाची का भी संकेत इसी तरह जबरदस्त है और हमारे कैलाश बनवासी ने भी इसी मार्ग को रचनात्मक रूप से स्वीकार किया है। कैलाश बनवासी की कहानियाँ देहाती मध्यम वर्ग की प्रतिनिधि कहानियाँ हैं। इस समाज पर लिखने वाले विरल हैं। शिवपूजन सहाय की देहाती दुनिया से लेकर कैलाश बनवासी की देहाती दुनिया तक अगर देखा जाए तो दिलचस्प और खतरनाक परिवर्तन हो गये हैं । शोहदों, दलालों, फूहड़ अमीरों, हिंसक धर्मप्राणों और ज़मीन हड़पने का प्रचंड महाभारत चलाने वालों, यथास्थिति के लिए अपने प्राण झोंक देने वाले अध्यापकों के संदर्भ में अपनी कसैली कहानियाँ लिखने वाले कैलाश बनवासी का मैं हार्दिक अभिवादन करता हूँ। कैलाश की कहानियाँ श्वेत-श्याम हैं, कभी-कभी वे अमृता शेरगिल की कलाकृतियों की तरह धूसर हैं। हिंदी की रक्त वाहिनियों के बीच, धीमी जगह में, शहरी जौहर से दूर रहने वाले कैलाश बनवासी की बनायी गयी शोहरत नहीं है, उसने उसे सम्मान से अर्जित किया है। बनवासी की प्रकृति में विक्रय कला नहीं है, वह बिल्कुल कछुवा है, सख्त और धीमा है, हड़बड़ी में नहीं रहता। उसे पहचाना गया।

About Author

जन्म : 10 मार्च, 1965, दुर्ग शिक्षा : बी.एस-सी.(गणित), एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य), बी.एड.। 1984 के आसपास लिखना शुरू किया। आरंभ में बच्चों और किशोरों के लिए लेखन। कृतियाँ : सत्तर से भी अधिक कहानियाँ देश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। लक्ष्य तथा अन्य कहानियाँ (1993), बाजार में रामधन (2004), पीले कागज की उजली इबारत (2008), प्रकोप तथा अन्य कहानियाँ (2015), जादू टूटता है, कविता, पेंटिंग पेड़ कुछ नहीं (2019) (कहानी संग्रह); लौटना नहीं है (उपन्यास); कहानियाँ विभिन्न भाषाओं में अनूदित; सम-सामयिक घटनाओं तथा सिनेमा पर भी जब-तव लेखन। पुरस्कार : प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान (2010), वनमाली कथा सम्मान (2014), गायत्री कथा सम्मान (2016) आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।

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