Kaviratna Meer

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
रामनाथ सुमन
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
रामनाथ सुमन
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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कविरत्न मीर –
मीर उर्दू शायरी के ख़ुदा कहे गये हैं और इसमें लेश मात्र भी अतिशयोक्ति नहीं है। ऐसी सर्वांग सुन्दर रचना उर्दू में और किसी की नहीं। ग़ालिब ने भी अगर उस्ताद माना तो मीर ही को। मीर ने शायरी का सच्चा मर्म समझा था उनकी शायरी में ऐसे जज़्बात बहुत कम हैं जिनके समझने और अनुभव करने में किसी को दिक़्क़त हो। वह फ़ारसी तरकीबों से कोसों भागते हैं और ज़ुल्फ़ व कमर की उलझनों में बहुत कम फँसते हैं। उनकी शायरी जज़्बात की शायरी है, जो सीधे हृदय में उतर कर उसे हिला देती है।
दिल्ली की शायरी का रंग मीर ही का क़ायम किया हुआ है, और अब क़रीब दो सौ बरस तक लखनऊ की तंग और गन्दी गलियों में भटकने के बाद दिल्ली ही के रंग पर चलते नज़र आते हैं। यों कहो कि मीर ने उर्दू कविता की मर्यादा स्थापित कर दी है और जो कवि उसकी उपेक्षा करेगा वह कृत्रिमता के दलदल में फँसेगा।
मीर का क़लाम उठाकर देखिये कितनी ताज़गी है, कितनी तरावट; दो सदियों के खिले हुए फूल आज भी वैसे ही दिल को ठण्डक और आँखों को तरावट पहुँचाते हैं। मालूम होता है किसी उस्ताद ने आज ही ये शे’र कहे हों। ज़माने ने उनसे बहुत पीछे के शायरों के क़लाम को दुर्बोध बना दिया। मगर मीर की ज़ुबान पर उसका ज़रा भी असर नहीं पड़ा। रामनाथ लाल जी ‘सुमन’ ने मीर पर यह आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखकर हिन्दी भाषा का उपकार किया है।—प्रेमचन्द

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Description

कविरत्न मीर –
मीर उर्दू शायरी के ख़ुदा कहे गये हैं और इसमें लेश मात्र भी अतिशयोक्ति नहीं है। ऐसी सर्वांग सुन्दर रचना उर्दू में और किसी की नहीं। ग़ालिब ने भी अगर उस्ताद माना तो मीर ही को। मीर ने शायरी का सच्चा मर्म समझा था उनकी शायरी में ऐसे जज़्बात बहुत कम हैं जिनके समझने और अनुभव करने में किसी को दिक़्क़त हो। वह फ़ारसी तरकीबों से कोसों भागते हैं और ज़ुल्फ़ व कमर की उलझनों में बहुत कम फँसते हैं। उनकी शायरी जज़्बात की शायरी है, जो सीधे हृदय में उतर कर उसे हिला देती है।
दिल्ली की शायरी का रंग मीर ही का क़ायम किया हुआ है, और अब क़रीब दो सौ बरस तक लखनऊ की तंग और गन्दी गलियों में भटकने के बाद दिल्ली ही के रंग पर चलते नज़र आते हैं। यों कहो कि मीर ने उर्दू कविता की मर्यादा स्थापित कर दी है और जो कवि उसकी उपेक्षा करेगा वह कृत्रिमता के दलदल में फँसेगा।
मीर का क़लाम उठाकर देखिये कितनी ताज़गी है, कितनी तरावट; दो सदियों के खिले हुए फूल आज भी वैसे ही दिल को ठण्डक और आँखों को तरावट पहुँचाते हैं। मालूम होता है किसी उस्ताद ने आज ही ये शे’र कहे हों। ज़माने ने उनसे बहुत पीछे के शायरों के क़लाम को दुर्बोध बना दिया। मगर मीर की ज़ुबान पर उसका ज़रा भी असर नहीं पड़ा। रामनाथ लाल जी ‘सुमन’ ने मीर पर यह आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखकर हिन्दी भाषा का उपकार किया है।—प्रेमचन्द

About Author

रामनाथ 'सुमन' - भाषाएँ: हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, उर्दू, बांग्ला, गुजराती और प्राचीन फ्रेंच। प्रमुख रचनाएँ: अंग्रेज़ी : फोर्सेज़ ऐंड पर्सनेलिटीज़ इन ब्रिटिश पॉलिटिक्स, ब्लीडिंग वूंड। अनुवाद : विनाश या इलाज, जब अंग्रेज़ आये, बच्चों का विवेक, विषवृक्ष, घरजमाई, रहस्यमयी, दामाद। हिन्दी-समीक्षा: कवि प्रसाद की काव्य-साधना, माइकेल मधुसूदन दत्त, दाग़े जिगर, कविरत्न मीर, कविता : विपंची। निबन्ध : जीवनयज्ञ, वेदी के फूल, कठघरे से पुकारती वीणा। राजनीति : गाँधीवाद की रूपरेखा, युगाधार गाँधी। संस्मरण एवं रेखाचित्र: हमारे नेता, स्व. राष्ट्र-निर्माता आदि। सम्पादन : 'नवराजस्थान' तथा 'सम्मेलन पत्रिका'। अनेक पुस्तकों के विविध भारतीय भाषाओं में अनुवाद।

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