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Kavi Ki Nai Duniya
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कवि की नई दुनिया में अज्ञेय, शमशेर, केदारनाथ अग्रवाल, मुक्तिबोध और नागार्जुन का एक साथ मूल्यांकन है। यह देखा गया है कि कैसे ये पाँचों कवि औपनिवेशिक आधुनिकीकरण के बरक्स वैकल्पिक आधुनिकताओं की खोज करते हैं। शंभुनाथ ने इन्हें लड़ाकर देखने की जगह परम्परा, आधुनिकता और प्रगति से इनके रिश्तों का एक भिन्न जमीन पर आलोचनात्मक विश्लेषण किया है। यह किताब नई आधुनिक कविता से वस्तुतः हमारा एक समग्र साक्षात्कार कराती है।
अज्ञेय, शमशेर, केदारनाथ अग्रवाल, मुक्तिबोध और नागार्जुन का महत्त्व उजागर करते हुए शंभुनाथ अपनी ताजा पुस्तक कवि की नई दुनिया में बताते हैं कि इन सभी कवियों ने धर्म, जाति, लिंग और राष्ट्रवाद के स्तर पर कूपमंडूकता से कैसा तीखा संघर्ष किया, प्रकृति, पर्यावरण और बौद्धिक स्वतन्त्रता के प्रश्न कितनी मजबूती से उठाए, केन्द्रवाद की ओर ले जानेवाली आततायी आधुनिकता से टकराते हुए अपनी कविताओं में ‘अनुभव’, ‘स्थान’ और ‘शब्द’ को किस तरह महत्ता दी, वैचारिक दूरियों के बावजूद इनके काव्यात्मक संघर्ष के सामान्य लक्ष्य क्या हैं और ये सभी कवि किस तरह कुछ अनोखे ढंग से अपना जीवन जीते थे।
आज जब ‘बेस्ट सेलर’ के बीच कविता कहीं खोती जा रही है, पाठक में ‘उपभोक्ता’ घुसता जा रहा है और मूल्य-क्षय एक विश्वव्यापी संकट है, कवि की नई दुनिया आधुनिक हिन्दी कविता के ऐसे सौन्दर्य के सामने खड़ा करती है, जिसमें मानवीय जीवन को पुनःसक्रिय करने की महान शक्ति है।
कवि की नई दुनिया में अज्ञेय, शमशेर, केदारनाथ अग्रवाल, मुक्तिबोध और नागार्जुन का एक साथ मूल्यांकन है। यह देखा गया है कि कैसे ये पाँचों कवि औपनिवेशिक आधुनिकीकरण के बरक्स वैकल्पिक आधुनिकताओं की खोज करते हैं। शंभुनाथ ने इन्हें लड़ाकर देखने की जगह परम्परा, आधुनिकता और प्रगति से इनके रिश्तों का एक भिन्न जमीन पर आलोचनात्मक विश्लेषण किया है। यह किताब नई आधुनिक कविता से वस्तुतः हमारा एक समग्र साक्षात्कार कराती है।
अज्ञेय, शमशेर, केदारनाथ अग्रवाल, मुक्तिबोध और नागार्जुन का महत्त्व उजागर करते हुए शंभुनाथ अपनी ताजा पुस्तक कवि की नई दुनिया में बताते हैं कि इन सभी कवियों ने धर्म, जाति, लिंग और राष्ट्रवाद के स्तर पर कूपमंडूकता से कैसा तीखा संघर्ष किया, प्रकृति, पर्यावरण और बौद्धिक स्वतन्त्रता के प्रश्न कितनी मजबूती से उठाए, केन्द्रवाद की ओर ले जानेवाली आततायी आधुनिकता से टकराते हुए अपनी कविताओं में ‘अनुभव’, ‘स्थान’ और ‘शब्द’ को किस तरह महत्ता दी, वैचारिक दूरियों के बावजूद इनके काव्यात्मक संघर्ष के सामान्य लक्ष्य क्या हैं और ये सभी कवि किस तरह कुछ अनोखे ढंग से अपना जीवन जीते थे।
आज जब ‘बेस्ट सेलर’ के बीच कविता कहीं खोती जा रही है, पाठक में ‘उपभोक्ता’ घुसता जा रहा है और मूल्य-क्षय एक विश्वव्यापी संकट है, कवि की नई दुनिया आधुनिक हिन्दी कविता के ऐसे सौन्दर्य के सामने खड़ा करती है, जिसमें मानवीय जीवन को पुनःसक्रिय करने की महान शक्ति है।
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