Kathgulab

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
मृदुला गर्ग
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
मृदुला गर्ग
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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कठगुलाब –
क्या ‘कठगुलाब’ को मैंने लिखा है? या मेरे समय ने लिखा है? असंगत, विखण्डित, विश्रृंखलित, मेरे समय ने। मेरा क्या है? इतना भर कि क़रीब दस बरसों तक एक सवाल मुझे उद्विग्न किये रहा था। क्या हमारी भूमि के बंजर होने और हमारी भावभूमि के ऊसर होते चले जाने के बीच कोई गहरा, अपरिहार्य सम्बन्ध है? क्या इसीलिए हमारे यहाँ, स्त्री को धरती कहा जाता रहा है? स्त्री धरती है और भाव भी तो चारों तरफ़ व्याप रहे ऊसर से सर्वाधिक खार भी, उसी के हिस्से आयेगी या उसी की मार्फ़त आयेगी न? सबकुछ बँटा हुआ था पर सबकुछ समन्वित था। बंजर को उर्वर तक ले जाना था। समय के आह्वान पर, पाँच कथावाचक आ प्रस्तुत हुए। सब ‘कठगुलाब’ जीने लगे। जब मैंने उपन्यास लिखा, लगा, उसमें मैं कहीं नहीं हूँ। अब लगता है हर पात्र में मैं हूँ। होना ही था। मेरा आत्म उसमें उपस्थित न होता तो मेरे समय, समाज या संसार का आत्म कैसे हो सकता था। समय से मेरा तात्पर्य केवल वर्तमान से ही नहीं है। ‘कठगुलाब’ के पाँच कथावाचकों में चार स्त्रियाँ हैं, शायद इसलिए, कुछ लोग उसे स्त्री की त्रासदी की कथा मानते हैं। वे कहते हैं; मैं सुन लेती हूँ। अपने ईश्वर के साथ मिल कर हँस लेती हूँ। उपन्यास की हर स्त्री प्रवक्ता कहती है, ज़माना गुज़रा जब मैं स्त्री की तरह जी थी। अब मैं समय हूँ। वह जो ईश्वर से होड़ लेकर, अतीत को आज से और आज को अनागत से जोड़ सकता है। पूरे व्यापार पर हँसते-हँसते, पुरुष और नारी से सबकुछ छीन कर, अर्धनारीश्वर होने की असीम सम्पदा, उन्हें लौटा सकता है। अर्धनारीश्वर हुए नहीं कि सम्बन्धों की विषमता, विडम्बना पर विजय मिलनी आरम्भ हुई। आंशिक सही पर हुई विजय। पूर्ण तो कुछ नहीं होता जीवन में। पूर्ण हो जाये तो मोह कैसे शेष रहे ? मोह बिना जीवन कैसा? प्रेम हो, करुणा हो; संवेदना हो या संघर्ष; सब मोह की देन हैं। और सृजन भी। बहुत मोह चाहिए जीवन से; उससे निरन्तर छले जाने पर भी, पुनः, नूतन आविष्कार करके, उसे सर्जित करते चले जाने के लिए। — मृदुला गर्ग

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Description

कठगुलाब –
क्या ‘कठगुलाब’ को मैंने लिखा है? या मेरे समय ने लिखा है? असंगत, विखण्डित, विश्रृंखलित, मेरे समय ने। मेरा क्या है? इतना भर कि क़रीब दस बरसों तक एक सवाल मुझे उद्विग्न किये रहा था। क्या हमारी भूमि के बंजर होने और हमारी भावभूमि के ऊसर होते चले जाने के बीच कोई गहरा, अपरिहार्य सम्बन्ध है? क्या इसीलिए हमारे यहाँ, स्त्री को धरती कहा जाता रहा है? स्त्री धरती है और भाव भी तो चारों तरफ़ व्याप रहे ऊसर से सर्वाधिक खार भी, उसी के हिस्से आयेगी या उसी की मार्फ़त आयेगी न? सबकुछ बँटा हुआ था पर सबकुछ समन्वित था। बंजर को उर्वर तक ले जाना था। समय के आह्वान पर, पाँच कथावाचक आ प्रस्तुत हुए। सब ‘कठगुलाब’ जीने लगे। जब मैंने उपन्यास लिखा, लगा, उसमें मैं कहीं नहीं हूँ। अब लगता है हर पात्र में मैं हूँ। होना ही था। मेरा आत्म उसमें उपस्थित न होता तो मेरे समय, समाज या संसार का आत्म कैसे हो सकता था। समय से मेरा तात्पर्य केवल वर्तमान से ही नहीं है। ‘कठगुलाब’ के पाँच कथावाचकों में चार स्त्रियाँ हैं, शायद इसलिए, कुछ लोग उसे स्त्री की त्रासदी की कथा मानते हैं। वे कहते हैं; मैं सुन लेती हूँ। अपने ईश्वर के साथ मिल कर हँस लेती हूँ। उपन्यास की हर स्त्री प्रवक्ता कहती है, ज़माना गुज़रा जब मैं स्त्री की तरह जी थी। अब मैं समय हूँ। वह जो ईश्वर से होड़ लेकर, अतीत को आज से और आज को अनागत से जोड़ सकता है। पूरे व्यापार पर हँसते-हँसते, पुरुष और नारी से सबकुछ छीन कर, अर्धनारीश्वर होने की असीम सम्पदा, उन्हें लौटा सकता है। अर्धनारीश्वर हुए नहीं कि सम्बन्धों की विषमता, विडम्बना पर विजय मिलनी आरम्भ हुई। आंशिक सही पर हुई विजय। पूर्ण तो कुछ नहीं होता जीवन में। पूर्ण हो जाये तो मोह कैसे शेष रहे ? मोह बिना जीवन कैसा? प्रेम हो, करुणा हो; संवेदना हो या संघर्ष; सब मोह की देन हैं। और सृजन भी। बहुत मोह चाहिए जीवन से; उससे निरन्तर छले जाने पर भी, पुनः, नूतन आविष्कार करके, उसे सर्जित करते चले जाने के लिए। — मृदुला गर्ग

About Author

मृदुला गर्ग के रचना-संसार में सभी गद्य-विधाएँ सम्मिलित हैं-उपन्यास, कहानी, नाटक, निबन्ध, यात्रा साहित्य, स्तम्भ लेखन, व्यंग्य, संस्मरण, पत्रकारिता तथा अनुवाद । प्रकाशन : उपन्यास : उसके हिस्से की धूप (1975), वंशज (1976), चित्तकोबरा (1979), अनित्य (1980), मैं और में (1984), कठगुलाब (1996), मिलजुल मन (2009), वसु का कुटुम (2016), द लास्ट ई-मेल (अंग्रेजी में 2017); कहानी 2005 तक के 8 कहानी-संग्रहों की कहानियाँ दो खण्डों में संगति-विसंगति (2003) और 2022 तक की 86 कहानियाँ सम्पूर्ण कहानियाँ शीर्षक से प्रकाशित (2022), चयनित कहानी-संग्रह के रूप में संकलित कहानियाँ (नेशनल बुक ट्रस्ट, 2012), दस प्रतिनिधि कहानियाँ (किताबघर, 2008), यादगारी कहानियाँ (हिन्द पॉकेट बुक्स, 2009) तथा प्रतिनिधि कहानियाँ (राजकमल प्रकाशन, 2013 ) प्रकाशित; नाटक : एक और अजनबी (1978), जादू का कालीन (1993), साम दाम दण्ड भेद (बालनाटक, 2011), [द-दर-क्रंद] (2013); आलोचना कृति में स्त्री पात्र (2016) निबन्ध रंग-ढंग (1995), चुकते नहीं सवाल (1995); संस्मरण कृति और कृतिकार (2013), वे नायाब औरतें (2023); यात्रा-वृत्तान्त: कुछ अटके कुछ भटके (2006); साक्षात्कार मेरे साक्षात्कार (2011), आमने-सामने (2018): व्यंग्य : कर लेंगे सब हज़म (2007), खेद नहीं है (2010)। अनुवाद उपन्यास चित्तकोबरा द जिएलेकटे कोबरा नाम से जर्मन (1988), चित्तकोबरा नाम से अंग्रेज़ी (1999), कोबरा माँएगो रजूमे नाम से रूसी (2016) और कोब्रा दे ले इस्त्री नाम से फ्रांसीसी (2022) में प्रकाशित: कठगुलाब कंट्री ऑफ़ गुड्बाइज़ नाम से अंग्रेज़ी (2003), कठगुलाब नाम से ही मराठी (2007), मलयाळम (2009) में और बहरोज़ नाम से जापानी (2012) में प्रकाशित अनित्य अनित्य हाफवे टु नोहेअर नाम से अंग्रेज़ी (2010) और अनित्य नाम से मराठी (2012) में प्रकाशित; मैं और में भी आणि मी नाम से मराठी और मैं ओ मूं नाम से ओड़िया (2020) में प्रकाशित; मिलजुल मन बांग्ला, तेलुगु, तमिल, पंजाबी, उर्दू, राजस्थानी में अनूदित; वसु का कुटुम मलयाळम में दिल्ली की लड़की नाम से अनूदित (2022) कहानी-संग्रह : डैफोडिल्स ऑन फ्रायर नाम से अंग्रेज़ी (1999) में प्रकाशित। सम्मान : 'हैलमन हेमट ग्रांट (ह्यूमन राइट्स वॉच, न्यूयॉर्क, 2001), कठगुलाब उपन्यास को 'व्यास सम्मान' (2004), मिलजुल मन को 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' (2013), 'राम मनोहर लोहिया सम्मान' (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 2015), 'साहित्यकार सम्मान' (हिन्दी अकादमी, दिल्ली, 1988), 'साहित्य भूषण सम्मान' (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 2002), उसके हिस्से की धूप को 'अखिल भारतीय वीरसिंह सम्मान' (मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, 1975), जादू का कालीनको 'सेठ गोविन्द दास पुरस्कार' (1993) आदि। अन्य उपलब्धियाँ युगोस्लाविया, जर्मनी, इटली, डेनमार्क, जापान, अमरीका, चीन व रूस आदि देशों के सांस्कृतिक संस्थानों व विश्वविद्यालयों में रचना-पाठ एवं समकालीन साहित्यिक मुद्दों पर व्याख्यान अंग्रेज़ी में लिखे चिन्तनपरक लेख व ये व्याख्यान देशी-विदेशी पत्रिकाओं व संचयनों में संकलित । सम्पर्क : ई-421 (भूतल), जी.के. (ग्रेटर कैलाश), भाग-2, नयी दिल्ली-110048

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