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Kanupriya : Ek Punahpath
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सम्पादक दिनेश कुमार
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सम्पादक दिनेश कुमार
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9789357753951
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
152
कनुप्रिया धर्मवीर भारती की महत्त्वपूर्ण कृति है । इसमें राधा की नज़र से कृष्ण को देखा गया है। यह राधा-चरित्र के विकास की एक नयी मंज़िल है और इसके भावी विकास की नयी सम्भावनाएँ भी। राधा यहाँ वियोग की परम्परागत मनोभूमि से अलग हटकर कृष्ण से कुछ मार्मिक प्रश्न करती है। इन मार्मिक प्रश्नों के माध्यम से भारती जी ने बड़े ही कौशल से परम्परागत राधा को आधुनिक स्त्री में परिवर्तित कर दिया है। राधा सिर्फ़ कृष्ण के अतीत की अन्तरंग केलिसखी बनकर नहीं रह जाना चाहती बल्कि वह उनके वर्तमान में भी सहयोगी भूमिका निभाना चाहती है। कनुप्रिया अन्धा युग की तरह सिर्फ़ युद्ध की सारहीनता को ही नहीं सामने लाती, बल्कि स्त्री-पुरुष सम्बन्ध के नये आयाम को भी उद्घाटित करती है। यह अन्धा युग से आगे की रचना है। इसमें युद्ध के समानान्तर प्रेम का ‘कंट्रास्ट’ रचा गया है। प्रेम और ‘युद्ध के रचनात्मक तनाव से निर्मित कनुप्रिया का अभिव्यक्ति विधान तो सरल है, पर भाववोध जटिल है।
कनुप्रिया : एक पुनःपाठ पुस्तक में भाववोध की इस जटिलता का सारगर्भित विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक ‘प्रयोगवाद’ और ‘नयी ‘कविता’ के दौर की व्याख्याओं का परीक्षण करते हुए कृति के मर्म का उद्घाटन करती है। पुस्तक इस पूर्वाग्रह को दूर करती है कि कनुप्रिया कैशोर्य-प्रेम की रचना है और इसमें सिर्फ भावुकता है। दरअसल, भावुकता भारती के लिए वह रचनात्मक स्रोत है जहाँ से वे धीरे-धीरे आधुनिकता में प्रवेश करते हैं। कनुप्रिया भावुकता के भीतर से विचार और तन्मयता के भीतर से अस्मिता का बोध पैदा करने वाली रचना है। दिनेश कुमार की आलोचकीय दृष्टि से कनुप्रिया का कोई भी पक्ष ओझल नहीं रह पाया है। यह पुस्तक न सिर्फ़ कनुप्रिया के मूल्यांकन में एक प्रस्थान बिन्दु है, बल्कि इसे लेकर हिन्दी आलोचना के परिप्रेक्ष्य को ‘भी ठीक करने का काम करती है।
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Description
कनुप्रिया धर्मवीर भारती की महत्त्वपूर्ण कृति है । इसमें राधा की नज़र से कृष्ण को देखा गया है। यह राधा-चरित्र के विकास की एक नयी मंज़िल है और इसके भावी विकास की नयी सम्भावनाएँ भी। राधा यहाँ वियोग की परम्परागत मनोभूमि से अलग हटकर कृष्ण से कुछ मार्मिक प्रश्न करती है। इन मार्मिक प्रश्नों के माध्यम से भारती जी ने बड़े ही कौशल से परम्परागत राधा को आधुनिक स्त्री में परिवर्तित कर दिया है। राधा सिर्फ़ कृष्ण के अतीत की अन्तरंग केलिसखी बनकर नहीं रह जाना चाहती बल्कि वह उनके वर्तमान में भी सहयोगी भूमिका निभाना चाहती है। कनुप्रिया अन्धा युग की तरह सिर्फ़ युद्ध की सारहीनता को ही नहीं सामने लाती, बल्कि स्त्री-पुरुष सम्बन्ध के नये आयाम को भी उद्घाटित करती है। यह अन्धा युग से आगे की रचना है। इसमें युद्ध के समानान्तर प्रेम का ‘कंट्रास्ट’ रचा गया है। प्रेम और ‘युद्ध के रचनात्मक तनाव से निर्मित कनुप्रिया का अभिव्यक्ति विधान तो सरल है, पर भाववोध जटिल है।
कनुप्रिया : एक पुनःपाठ पुस्तक में भाववोध की इस जटिलता का सारगर्भित विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक ‘प्रयोगवाद’ और ‘नयी ‘कविता’ के दौर की व्याख्याओं का परीक्षण करते हुए कृति के मर्म का उद्घाटन करती है। पुस्तक इस पूर्वाग्रह को दूर करती है कि कनुप्रिया कैशोर्य-प्रेम की रचना है और इसमें सिर्फ भावुकता है। दरअसल, भावुकता भारती के लिए वह रचनात्मक स्रोत है जहाँ से वे धीरे-धीरे आधुनिकता में प्रवेश करते हैं। कनुप्रिया भावुकता के भीतर से विचार और तन्मयता के भीतर से अस्मिता का बोध पैदा करने वाली रचना है। दिनेश कुमार की आलोचकीय दृष्टि से कनुप्रिया का कोई भी पक्ष ओझल नहीं रह पाया है। यह पुस्तक न सिर्फ़ कनुप्रिया के मूल्यांकन में एक प्रस्थान बिन्दु है, बल्कि इसे लेकर हिन्दी आलोचना के परिप्रेक्ष्य को ‘भी ठीक करने का काम करती है।
About Author
दिनेश कुमार का जन्म 25 जनवरी, 1985 को बिहार के बक्सर ज़िले के कसियाँ गाँव में हुआ। हिन्दी के महत्त्वपूर्ण युवा आलोचक हैं। अपने गम्भीर विचारोत्तेजक लेखन के लिए जाने जाते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद इन्होंने 'प्रगतिशील आलोचना में परम्परा के मूल्यांकन का प्रश्न' विषय पर एम. फिल. एवं 'अज्ञेय और मुक्तिबोध के साहित्य-चिन्तन का तुलनात्मक अध्ययन' पर पीएच.डी. की ।
वर्ष 2012 से 2018 तक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका 'हंस' में सृजन-परिक्रमा नाम से स्तम्भ का नियमित लेखन किया। साहित्य, समाज और संस्कृति के व्यापक पहलुओं पर हिन्दी के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर लेखन। मुक्तिबोध : एक मूल्यांकन, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल : एक मूल्यांकन, रश्मिरथीःएक पुनःपाठ के बाद कनुप्रिया : एक पुनःपाठ इनके द्वारा सम्पादित नवीनतम आलोचना पुस्तक है।
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज ।
ई-मेल : dineshkumarbp@gmail.com
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