Kante Ki Baat – 9 SHABD KA BHAVISHYA

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
राजेन्द्र यादव
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
राजेन्द्र यादव
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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शब्द का भविष्य कांटे की बात का नौवाँ खण्ड है, इसमें बीसवीं सदी के अन्त में लेखक ने अगली सदी के भविष्य को पढ़ने की कोशिश की है। अगली सदी दो समानान्तर दुनियाओं को एक-दूसरे के सामने ऐसे मोड़ पर पायेगी, जहाँ विरोध भी होगा, सह-अस्तित्व भी, सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण भी होंगे, समीकरण भी। ये दो अलग, समानान्तर दुनियाएँ हैं- वर्चस्व और हाशिए की, शोषण और प्रतिरोध की, शिष्ट-संस्कृति और लोक संस्कृति की ।

शब्द दोनों तरफ़ है। पहला खेमा अपने वर्चस्व को व्यापकता और स्थायित्व देने के लिए शब्द का मनमाना इस्तेमाल कर रहा है। शब्द के सारे संचार माध्यमों पर उसका कब्ज़ा है इसलिए उसकी सारी सम्भावनाओं को अन्तिम प्रयास के रूप में नियोड़ा जा रहा है।

दूसरा खेमा शब्द के आत्मीय, अनोखे, अनगढ़, फूहड़ मगर अद्भुत अर्थ खोज रहा है-अपनी यातनाओं और संघर्षों में, स्वप्नों में। यहाँ शब्द का वर्तमान भी है और भविष्य भी। लेखक की मान्यता है कि भविष्य का शब्द उनका ही है। अगली सदी दलितों, वंचितों और स्त्रियों के साहित्य की है।

सदी का औपन्यासिक अन्त में दो भागों में तिलिस्म से लेकर कठघरे तक की यात्रा लेखक ने की है। सदी के इस आखिरी दशक के अनेक चर्चित, विवादास्पद उपन्यासों का एक बेजोड़ सिंहावलोकन यहाँ प्रस्तुत है । मटियानी बनाम मटियानी में उनके साहित्य और विचारधारा को एक-दूसरे के प्रतिपक्ष में रखकर साहित्य के उद्देश्य, प्रतिबद्धता, सामाजिक हस्तक्षेप के उन्हीं के पुराने मुद्दों पर पुनर्विचार किया गया है।

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Description

शब्द का भविष्य कांटे की बात का नौवाँ खण्ड है, इसमें बीसवीं सदी के अन्त में लेखक ने अगली सदी के भविष्य को पढ़ने की कोशिश की है। अगली सदी दो समानान्तर दुनियाओं को एक-दूसरे के सामने ऐसे मोड़ पर पायेगी, जहाँ विरोध भी होगा, सह-अस्तित्व भी, सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण भी होंगे, समीकरण भी। ये दो अलग, समानान्तर दुनियाएँ हैं- वर्चस्व और हाशिए की, शोषण और प्रतिरोध की, शिष्ट-संस्कृति और लोक संस्कृति की ।

शब्द दोनों तरफ़ है। पहला खेमा अपने वर्चस्व को व्यापकता और स्थायित्व देने के लिए शब्द का मनमाना इस्तेमाल कर रहा है। शब्द के सारे संचार माध्यमों पर उसका कब्ज़ा है इसलिए उसकी सारी सम्भावनाओं को अन्तिम प्रयास के रूप में नियोड़ा जा रहा है।

दूसरा खेमा शब्द के आत्मीय, अनोखे, अनगढ़, फूहड़ मगर अद्भुत अर्थ खोज रहा है-अपनी यातनाओं और संघर्षों में, स्वप्नों में। यहाँ शब्द का वर्तमान भी है और भविष्य भी। लेखक की मान्यता है कि भविष्य का शब्द उनका ही है। अगली सदी दलितों, वंचितों और स्त्रियों के साहित्य की है।

सदी का औपन्यासिक अन्त में दो भागों में तिलिस्म से लेकर कठघरे तक की यात्रा लेखक ने की है। सदी के इस आखिरी दशक के अनेक चर्चित, विवादास्पद उपन्यासों का एक बेजोड़ सिंहावलोकन यहाँ प्रस्तुत है । मटियानी बनाम मटियानी में उनके साहित्य और विचारधारा को एक-दूसरे के प्रतिपक्ष में रखकर साहित्य के उद्देश्य, प्रतिबद्धता, सामाजिक हस्तक्षेप के उन्हीं के पुराने मुद्दों पर पुनर्विचार किया गया है।

About Author

राजेन्द्र यादव हिन्दी के सुपरिचित लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार व आलोचक थे। नयी कहानी के नाम से हिन्दी साहित्य में उन्होंने एक नयी विधा का सूत्रपात किया । उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द द्वारा सन् 1930 में स्थापित साहित्यिक पत्रिका 'हंस' का पुनः प्रकाशन उन्होंने प्रेमचन्द की जयन्ती के दिन 31 जुलाई 1986 को प्रारम्भ किया था। यह पत्रिका सन् 1953 में बन्द हो गयी थी। इसके प्रकाशन का दायित्व उन्होंने स्वयं लिया और अपने मरते दम तक पूरे 27 वर्ष निभाया। 28 अगस्त 1929 को उत्तर प्रदेश के शहर आगरा में जन्मे राजेन्द्र यादव ने 1951 में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा हिन्दी साहित्य में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। उनका विवाह सुपरिचित हिन्दी लेखिका मन्नू भण्डारी के साथ हुआ था। वे हिन्दी साहित्य की सुप्रसिद्ध 'हंस' पत्रिका के सम्पादक थे। हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा राजेन्द्र यादव को उनके समग्र लेखन के लिए वर्ष 2003-04 का सर्वोच्च सम्मान (शलाका सम्मान) प्रदान किया गया था। 28 अक्टूबर 2013 को नयी दिल्ली में 84 वर्ष की आयु में निधन ।

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