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Kanch Ke Ghar

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
डॉ. हंसा दीप
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
डॉ. हंसा दीप
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 9789355181831 Category
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Page Extent:
128

काँच के घर –
“काँच के घर में रहने वाले दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारते। लेकिन अब ये काँच के घर नहीं रहे जिनमें झाँक कर देख सकते हैं कि अन्दर क्या हो रहा है। काँच की परिभाषा बदल गयी थी। बहुत कुछ बदला था। सब अपनी सुविधाओं के अनुसार चीज़ें बदल रहे थे। लोग सिर्फ़ समूहों में ही नहीं बँटे थे, उनके दिल भी बँट गये थे। किसी बँटी विरासत की तरह, जो थी तो सही पर बँटते-बँटते नाम भर की रह गयी थी। एक एक करके अनेक हो सकते थे पर एक अकेले का सुख उन सबके लिए बहुत था।”
“देखा जाये तो यह एक सभ्य जंगल था। जंगल के जानवरों की अलग-अलग प्रजातियाँ सभ्य समाज में भी थीं, वैसी की वैसी सारे दोमुँहे जानवर थे। अन्दर से अलग, बाहर से अलग, अन्दर से जानवर बाहर से सुसभ्य इन्सान। समूहों में भीड़ चिल्लाती, गली में कुत्ते भौंकते। घरों के अन्दर आदमी थे, बाहर तरह-तरह के जानवर। जानवर लाठी से डरकर भाग जाते हैं पर सभ्य जानवर लाठी का इन्तज़ार करते हैं ताकि लाठी खाकर, सिर फुटव्वल की नौबत लाकर सबको जेल भेज सकें। लाठी का घाव आज नहीं तो कल भर जायेगा पर मारने वाले की कपटी साँसें जीते जी जेल की चहारदीवारी में बन्द हो जायेंगी।”
“धाँधली शब्द ने कई लोगों के कानों में जैसे सीसा उड़ेल दिया और कई चेहरों पर सवाल खड़े कर दिए। आँखें, भौंहें, होंठ और नाक ने प्रश्नवाचक चिह्न के सारे घुमाव अपने ऊपर ले लिए। इस शब्द को खोज इसकी तह तक पहुँचने के लिए सारे आतुर हो चले। एक गया, दूसरा गया फिर बैक स्टेज लाइन लगने लगी। जो भी स्टेज के सामने बैठे थे उनका धैर्य जवाब दे गया। उन्हें लगा कि बैक स्टेज से अलग से सम्मान दिये जा रहे हैं। पीछे के दरवाजे से मिलने वाले लाभों से कहीं वे वंचित न रह जाये इस आशंका से वे सब उठ-उठकर जाने लगे।” —इसी उपन्यास से

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Description

काँच के घर –
“काँच के घर में रहने वाले दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं मारते। लेकिन अब ये काँच के घर नहीं रहे जिनमें झाँक कर देख सकते हैं कि अन्दर क्या हो रहा है। काँच की परिभाषा बदल गयी थी। बहुत कुछ बदला था। सब अपनी सुविधाओं के अनुसार चीज़ें बदल रहे थे। लोग सिर्फ़ समूहों में ही नहीं बँटे थे, उनके दिल भी बँट गये थे। किसी बँटी विरासत की तरह, जो थी तो सही पर बँटते-बँटते नाम भर की रह गयी थी। एक एक करके अनेक हो सकते थे पर एक अकेले का सुख उन सबके लिए बहुत था।”
“देखा जाये तो यह एक सभ्य जंगल था। जंगल के जानवरों की अलग-अलग प्रजातियाँ सभ्य समाज में भी थीं, वैसी की वैसी सारे दोमुँहे जानवर थे। अन्दर से अलग, बाहर से अलग, अन्दर से जानवर बाहर से सुसभ्य इन्सान। समूहों में भीड़ चिल्लाती, गली में कुत्ते भौंकते। घरों के अन्दर आदमी थे, बाहर तरह-तरह के जानवर। जानवर लाठी से डरकर भाग जाते हैं पर सभ्य जानवर लाठी का इन्तज़ार करते हैं ताकि लाठी खाकर, सिर फुटव्वल की नौबत लाकर सबको जेल भेज सकें। लाठी का घाव आज नहीं तो कल भर जायेगा पर मारने वाले की कपटी साँसें जीते जी जेल की चहारदीवारी में बन्द हो जायेंगी।”
“धाँधली शब्द ने कई लोगों के कानों में जैसे सीसा उड़ेल दिया और कई चेहरों पर सवाल खड़े कर दिए। आँखें, भौंहें, होंठ और नाक ने प्रश्नवाचक चिह्न के सारे घुमाव अपने ऊपर ले लिए। इस शब्द को खोज इसकी तह तक पहुँचने के लिए सारे आतुर हो चले। एक गया, दूसरा गया फिर बैक स्टेज लाइन लगने लगी। जो भी स्टेज के सामने बैठे थे उनका धैर्य जवाब दे गया। उन्हें लगा कि बैक स्टेज से अलग से सम्मान दिये जा रहे हैं। पीछे के दरवाजे से मिलने वाले लाभों से कहीं वे वंचित न रह जाये इस आशंका से वे सब उठ-उठकर जाने लगे।” —इसी उपन्यास से

About Author

डॉ. हंसा दीप - टोरंटो (कैनेडा) मेघनगर (ज़िला झाबुआ, मध्य प्रदेश) में जन्म। प्रकाशित पुस्तकें: उपन्यास–'काँच के घर', 'बन्द मुट्ठी', 'कुबेर' व 'केसरिया बालम'। कहानी संग्रह–'चश्मे अपने-अपने', 'प्रवास में आसपास', 'शत प्रतिशत', 'उम्र के शिखर पर खड़े लोग'। लोक साहित्य–'सौंधवाड़ी लोक धरोहर'। कहानियाँ मराठी, पंजाबी व अंग्रेज़ी पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित। 'पूरन विराम तो पहिलां' (पंजाबी में अनूदित कहानी-संग्रह), 'आणि शेवटी तात्पर्य' (मराठी में अनूदित कहानी-संग्रह) ' बन्द मुट्ठी' गुजराती भाषा में अनूदित उपन्यास। सम्पादन: 'कथा पाठ में आज' ऑडियो पत्रिका का सम्पादन एवं कथा पाठ। भारत में आकाशवाणी से कई कहानियों व नाटकों का प्रसारण। कई अंग्रेज़ी फ़िल्मों के लिए हिन्दी में सब-टाइटल्स का अनुवाद। कैनेडियन विश्वविद्यालयों में हिन्दी छात्रों के लिए अंग्रेज़ी-हिन्दी में पाठ्यपुस्तकों के कई संस्करण प्रकाशित। न्यूयॉर्क, अमेरिका की कुछ संस्थाओं में हिन्दी शिक्षण, यॉर्क विश्वविद्यालय टोरंटो में हिन्दी कोर्स डायरेक्टर। भारत में भोपाल विश्वविद्यालय और विक्रम विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक।

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