Kamala
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विजय तेंडुलकर रंगमंच की दुनिया का एक अपरिहार्य नाम । नाटककार के रूप में मराठी में ही नहीं, हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं में भी वे सुविख्यात हैं। समाज व्यवस्था में मनुष्य की इयत्ता तलाश कर आईने के रूप में मंचों पर प्रस्तुत करने की उनकी अद्भुत कला का लोहा सबने माना है। देश के विशिष्ट नाट्य दिग्दर्शकों और फ़िल्म निर्देशकों ने उनकी पटकथा और संवाद-लेखन को उत्कृष्ट और प्रभावी पाया है
कमला विजय तेंडुलकर का चर्चित नाटक है। इस नाटक में उन्होंने स्त्री और पुरुष दोनों की विवशता का जीवन्त चित्रण किया है । स्त्री की स्थिति अधिक दयनीय है। अच्छे घर में ब्याहने के बावजूद वह पुरुष-सत्ता से बँधी है। उधर ग़रीबी, अशिक्षा और मजबूर स्त्री बाज़ार में बेची जाती है। उसकी स्थिति और विवशता रोंगटे खड़े कर देती है। साथ ही पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पुरुष अनचाही स्थितियों का शिकार हो जाता है। पत्रकारिता जगत् की सनसनीखेज ख़बरों पर सवार होकर अपना अस्तित्व बढ़ाने के लिए संघर्ष करता पत्रकार व्यवस्था के कठोर पाटों के बीच पिसता है। वह नौकरी से हाथ धो बैठता है, क्योंकि व्यवस्था शोषण की बुनियाद में होती है और पत्रकार जो ख़बर निकालकर लाता है वह व्यवस्था के ख़िलाफ़ चली जाती है।
विजय तेंडुलकर घटनाओं की गतिशीलता और संवादों की जीवन्तता का अद्भुत समन्वय कर अपनी नाट्यकृति को विशिष्टता सौंप हैं। उनका नाट्य-लेखन इतना सार्थक होता है कि नाटक पढ़ते हुए भी रंगमंच पर देखने जैसी आनन्द की अनुभूति होती है। कमला इस बात का जीवन्त उदाहरण है। मराठी नाटक कमला का दामोदर खड़से द्वारा किया गया अनुवाद प्रस्तुत है ।
विजय तेंडुलकर रंगमंच की दुनिया का एक अपरिहार्य नाम । नाटककार के रूप में मराठी में ही नहीं, हिन्दी सहित भारतीय भाषाओं में भी वे सुविख्यात हैं। समाज व्यवस्था में मनुष्य की इयत्ता तलाश कर आईने के रूप में मंचों पर प्रस्तुत करने की उनकी अद्भुत कला का लोहा सबने माना है। देश के विशिष्ट नाट्य दिग्दर्शकों और फ़िल्म निर्देशकों ने उनकी पटकथा और संवाद-लेखन को उत्कृष्ट और प्रभावी पाया है
कमला विजय तेंडुलकर का चर्चित नाटक है। इस नाटक में उन्होंने स्त्री और पुरुष दोनों की विवशता का जीवन्त चित्रण किया है । स्त्री की स्थिति अधिक दयनीय है। अच्छे घर में ब्याहने के बावजूद वह पुरुष-सत्ता से बँधी है। उधर ग़रीबी, अशिक्षा और मजबूर स्त्री बाज़ार में बेची जाती है। उसकी स्थिति और विवशता रोंगटे खड़े कर देती है। साथ ही पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में पुरुष अनचाही स्थितियों का शिकार हो जाता है। पत्रकारिता जगत् की सनसनीखेज ख़बरों पर सवार होकर अपना अस्तित्व बढ़ाने के लिए संघर्ष करता पत्रकार व्यवस्था के कठोर पाटों के बीच पिसता है। वह नौकरी से हाथ धो बैठता है, क्योंकि व्यवस्था शोषण की बुनियाद में होती है और पत्रकार जो ख़बर निकालकर लाता है वह व्यवस्था के ख़िलाफ़ चली जाती है।
विजय तेंडुलकर घटनाओं की गतिशीलता और संवादों की जीवन्तता का अद्भुत समन्वय कर अपनी नाट्यकृति को विशिष्टता सौंप हैं। उनका नाट्य-लेखन इतना सार्थक होता है कि नाटक पढ़ते हुए भी रंगमंच पर देखने जैसी आनन्द की अनुभूति होती है। कमला इस बात का जीवन्त उदाहरण है। मराठी नाटक कमला का दामोदर खड़से द्वारा किया गया अनुवाद प्रस्तुत है ।
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