Kala Ke Samajik Udgam (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Georgi Plekhanov
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Georgi Plekhanov
Language:
Hindi
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Hardback

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कला-साहित्य-संस्कृति के प्रश्नों पर प्लेखानोव की कृतियों में सर्वोपरि और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं ‘असम्बोधित पात्र’ और ‘कला और सामाजिक जीवन’। कला और साहित्य पर प्लेखानोव की ज़्यादातर कृतियों का मुख्य उद्देश्य कला और इसकी सामाजिक भूमिका को भौतिकवादी दृष्टि से प्रमाणित करना था। इन कृतियों में ‘बेलिस्की की साहित्यिक दृष्टि’ (1897), ‘चेर्निशेव्स्की का सौन्दर्यशास्त्रीय सिद्धान्त’ (1897), ‘असम्बोधित पात्र’ (1890-1900), ‘अठारहवीं सदी के फ्रेंच नाटक और चित्रकला पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से एक नज़र’ (1905) तथा ‘कला और सामाजिक जीवन’ (1912) प्रमुख हैं।
कलात्मक सृजन को वस्तुगत जगत से स्वतंत्र माननेवाले और कला को मानवात्मा की अन्तर्भूत अभिव्यक्ति बतानेवाले प्रत्ययवादी सौन्दर्यशास्त्रियों के विपरीत प्लेखानोव ने दर्शाया कि कला की जड़ें वास्तविक जीवन में होती हैं और यह सामाजिक जीवन से ही निःसृत होती है। कला और साहित्य की एक वैज्ञानिक, मार्क्सवादी समझ विकसित करने का प्रयास उनकी सभी कृतियों की विशिष्टता है। ‘कला, कला के लिए’ के विचार को प्लेखानोव ने तीखी आलोचना की। उन्होंने दर्शाया कि यह विचार उन्हीं दौरों में उभरकर आता है जब लेखक और कलाकार अपने इर्द-गिर्द की सामाजिक दशाओं से कट जाते हैं। यह विचार हमेशा ही प्रतिक्रियावादी शासक वर्गों की सेवा करता है लेकिन जब समाज में वर्ग-संघर्ष तीखा होता है तो शासक वर्ग और उसके विचारक ख़ुद ही इस विचार को छोड़ देते हैं और कला को अपने बचाव के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करने लगते हैं।

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Description

कला-साहित्य-संस्कृति के प्रश्नों पर प्लेखानोव की कृतियों में सर्वोपरि और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं ‘असम्बोधित पात्र’ और ‘कला और सामाजिक जीवन’। कला और साहित्य पर प्लेखानोव की ज़्यादातर कृतियों का मुख्य उद्देश्य कला और इसकी सामाजिक भूमिका को भौतिकवादी दृष्टि से प्रमाणित करना था। इन कृतियों में ‘बेलिस्की की साहित्यिक दृष्टि’ (1897), ‘चेर्निशेव्स्की का सौन्दर्यशास्त्रीय सिद्धान्त’ (1897), ‘असम्बोधित पात्र’ (1890-1900), ‘अठारहवीं सदी के फ्रेंच नाटक और चित्रकला पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से एक नज़र’ (1905) तथा ‘कला और सामाजिक जीवन’ (1912) प्रमुख हैं।
कलात्मक सृजन को वस्तुगत जगत से स्वतंत्र माननेवाले और कला को मानवात्मा की अन्तर्भूत अभिव्यक्ति बतानेवाले प्रत्ययवादी सौन्दर्यशास्त्रियों के विपरीत प्लेखानोव ने दर्शाया कि कला की जड़ें वास्तविक जीवन में होती हैं और यह सामाजिक जीवन से ही निःसृत होती है। कला और साहित्य की एक वैज्ञानिक, मार्क्सवादी समझ विकसित करने का प्रयास उनकी सभी कृतियों की विशिष्टता है। ‘कला, कला के लिए’ के विचार को प्लेखानोव ने तीखी आलोचना की। उन्होंने दर्शाया कि यह विचार उन्हीं दौरों में उभरकर आता है जब लेखक और कलाकार अपने इर्द-गिर्द की सामाजिक दशाओं से कट जाते हैं। यह विचार हमेशा ही प्रतिक्रियावादी शासक वर्गों की सेवा करता है लेकिन जब समाज में वर्ग-संघर्ष तीखा होता है तो शासक वर्ग और उसके विचारक ख़ुद ही इस विचार को छोड़ देते हैं और कला को अपने बचाव के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करने लगते हैं।

About Author

गिओगी वलेन्तिनोविच प्लेखानोव

जन्म : 29 नवम्बर, 1856, रूस के लिपेत्स्की ओब्लास्त (उपप्रान्त) का गुदालोका गाँव।

मार्क्सवादी दर्शन के इतिहास की कल्पना प्लेखानोव के बिना नहीं की जा सकती। उन्होंने मार्क्सवाद के प्रचारक, भाष्यकार और व्याख्याकार की ही भूमिका नहीं निभाई, बल्कि एक मौलिक चिन्तक के रूप में मार्क्सवादी दर्शन को विकसित भी किया। इस तथ्य से भी कम ही लोग परिचित होंगे कि मार्क्स की विचारधारा को द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद नाम प्लेखानोव ने ही दिया था।

दर्शन और राजनीति विषयक कृतियों के अलावा प्लेखानोव ने ही सबसे पहले मार्क्सवादी नज़रिए से साहित्य और सौन्दर्यशास्त्र की समस्याओं पर सुसंगत ढंग से विचार किया। सामाजिक जीवन से कला के अन्तर्सम्बन्धों पर, कला के सामाजिक स्रोतों पर, वर्ग समाज में कला की भूमिका पर और पूँजीवादी समाज में कला के पराभव पर मार्क्सवादी अवस्थिति को जिस व्यक्ति ने सबसे पहले सूत्रबद्ध किया वह प्लेखानोव ही थे। उन्हें कला-साहित्य की मार्क्सवादी वैचारिकी के सूत्रधार के रूप में देखा जा सकता है।

कला-सिद्धान्त और साहित्यालोचना के मार्क्सवादी आधार की प्लेखानोव की तलाश नरोदवादियों और ‘डिकेडेंट’ कवियों के विचारों के विरुद्ध, मनोगतवाद के तमाम रूपों के विरुद्ध संघर्ष से शुरू हुई। यथार्थवादी साहित्य के लिए उनका लम्बा संघर्ष सौन्दर्यशास्त्र सम्बन्धी उनके विचारों की विशिष्टता है। अपने कला-सिद्धान्त के भौतिकवादी आधार की ज़मीन पर खड़े होकर उन्होंने कलात्मक यथार्थवाद की लगातार हिफ़ाज़त की। भौतिकवादी सौन्दर्यशास्त्र की परम्परा की हिफ़ाज़त करते और उसे विकसित करते हुए प्लेखानोव का मानना था कि यथार्थ की प्रामाणिक प्रस्तुति कला का मुख्य मानदंड और इसका प्रमुख गुण है। वह लगातार इस बात पर बल देते रहे कि यथार्थ ही कला का मुख्य स्रोत है।

निधन : 30 मई, 1918; तेरिओकी, लेनिनग्राद ओब्लास्त, रूस।

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