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Kagar Kee Aag

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
हिमांशु जोशी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
हिमांशु जोशी
Language:
Hindi
Format:
Paperback

149

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ISBN:
SKU 9788126319794 Category
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Page Extent:
100

कगार की आग –
घास-फूँस के टूटे कच्चे घर! आकाश की झीनी छत! धरती पर कच्ची मिट्टी की मैली चादर! दो जून रूखी-सूखी मिल पाना भी मुश्किल…! मर-मरकर जीने वालों की यह व्यथा-कथा आज का युग-सत्य भी है, कहीं ये रंगहीन/रंगीन चित्र किसी के रक्त से खिंची यन्त्रणा की रेखाएँ हैं। नाखूनों से कुरेदा हुआ अभिशप्त मानव का इतिहास।
आग की तपिश ही नहीं, इसमें हिम का दाह भी है। अनुभव की प्रामाणिकता और अनुभूति की गहनता ने इस कालजयी कृति को एक नया आयाम दिया है। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है शायद। बर्फ़ीले पर्वतीय क्षेत्र की इस कथा में एक अंचल विशेष की धरती की धड़कन है, एक जीता-जागता अहसास भी। गोमती, पिरमा, कुन्नू के माध्यम से सन्त्रस्त मानव समाज के कई चित्र उजागर हुए हैं। इसलिए यह कुछ लोगों की कहानी, कहीं ‘सबकी कहानी’ बन गयी है—देश-काल की परिधि से परे। डोगरी, ओड़िया, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, नेपाली, बर्मी, चीनी, नार्वेजियन, अंग्रेज़ी आदि में इसके अनुवाद हो चुके हैं। ‘आकाशवाणी’ से धारावाहिक प्रसारण एवं रंगमंच के माध्यम से नाट्य रूपान्तरण भी। आस्ट्रेलिया तथा इटली के विश्वविद्यालयों में पाठ्यपुस्तक के रूप में भी यह वर्षों तक पढ़ाई जाती रही है। इस पर प्रसार भारती द्वारा एक फ़िल्म बनाई जा रही है।
साहित्य का अर्थ सत्य है तो इससे बड़ा सत्य और क्या होगा? एक चुभती हुई यन्त्रणा, टूटे काँटे की अनी की तरह, जो निरन्तर कसकती रहे।

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Description

कगार की आग –
घास-फूँस के टूटे कच्चे घर! आकाश की झीनी छत! धरती पर कच्ची मिट्टी की मैली चादर! दो जून रूखी-सूखी मिल पाना भी मुश्किल…! मर-मरकर जीने वालों की यह व्यथा-कथा आज का युग-सत्य भी है, कहीं ये रंगहीन/रंगीन चित्र किसी के रक्त से खिंची यन्त्रणा की रेखाएँ हैं। नाखूनों से कुरेदा हुआ अभिशप्त मानव का इतिहास।
आग की तपिश ही नहीं, इसमें हिम का दाह भी है। अनुभव की प्रामाणिकता और अनुभूति की गहनता ने इस कालजयी कृति को एक नया आयाम दिया है। यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है शायद। बर्फ़ीले पर्वतीय क्षेत्र की इस कथा में एक अंचल विशेष की धरती की धड़कन है, एक जीता-जागता अहसास भी। गोमती, पिरमा, कुन्नू के माध्यम से सन्त्रस्त मानव समाज के कई चित्र उजागर हुए हैं। इसलिए यह कुछ लोगों की कहानी, कहीं ‘सबकी कहानी’ बन गयी है—देश-काल की परिधि से परे। डोगरी, ओड़िया, पंजाबी, मराठी, बांग्ला, नेपाली, बर्मी, चीनी, नार्वेजियन, अंग्रेज़ी आदि में इसके अनुवाद हो चुके हैं। ‘आकाशवाणी’ से धारावाहिक प्रसारण एवं रंगमंच के माध्यम से नाट्य रूपान्तरण भी। आस्ट्रेलिया तथा इटली के विश्वविद्यालयों में पाठ्यपुस्तक के रूप में भी यह वर्षों तक पढ़ाई जाती रही है। इस पर प्रसार भारती द्वारा एक फ़िल्म बनाई जा रही है।
साहित्य का अर्थ सत्य है तो इससे बड़ा सत्य और क्या होगा? एक चुभती हुई यन्त्रणा, टूटे काँटे की अनी की तरह, जो निरन्तर कसकती रहे।

About Author

हिमांशु जोशी - हिन्दी के अग्रणी कथाकार। जन्म: 4 मई, 1935, उत्तरांचल। लगभग 29 वर्ष 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' में वरिष्ठ पत्रकार रहे। 'वागर्थ' के सम्पादक भी। गत 40 वर्षों से लेखन में सक्रिय 'अरण्य', 'महासागर', 'समय साक्षी है', 'छाया मत छूना मन', 'तुम्हारे लिए', 'सु राज', 'सागर तट के शहर' उपन्यास चर्चित रहे। 'अन्ततः तथा अन्य कहानियाँ', 'मनुष्य-चिह्न तथा अन्य कहानियाँ', 'जलते हुए डैने तथा अन्य कहानियाँ', 'इस बार फिर बर्फ़ गिरी तो', 'इकहत्तर कहानियाँ' आदि लगभग चौदह कहानी-संग्रह; 'नील नदी का वृक्ष', 'अग्निसम्भव' कविता संग्रह; 'यात्राएँ' तथा 'सूरज चमके आधी रात' यात्रा वृत्तान्त; 'यातना शिविर में' तथा 'आठवाँ सर्ग' संस्मरण उल्लेखनीय हैं। मराठी, गुजराती, कोंकणी, तमिल, मलयालम, पंजाबी, बांग्ला, असमी, ओड़िया, कन्नड़, उर्दू आदि अनेक भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त कुछ रचनाएँ अंग्रेज़ी, नेपाली, कोरियन, जापानी, नार्वेजियन इटालियन, चेक, बल्गेरियन, बर्मी, चीनी आदि में भी प्रकाशित। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, हिन्दी अकादमी दिल्ली राजभाषा विभाग बिहार तथा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान (मानव संसाधन विकास मन्त्रालय) द्वारा पुरस्कृत/सम्मानित।

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