Jungle Ka Dard (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Sarveshwardayal Saxena
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Sarveshwardayal Saxena
Language:
Hindi
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Hardback

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‘जंगल का दर्द’ में कवि सर्वेश्वर की अपने अन्तर्जगत और बाह्य-जगत के जानवरों  से लड़ाई, समसामयिक हिन्दी कविता की उपलब्धि है। ‘कुआनो नदी’ की कविताएँ डूबते सूरज की लम्बी परछाइयाँ थीं। अब ‘जंगल का दर्द’ में अंधकार सिमटकर बुलेट–सा छोटा, ठोस और भारी हो गया है। काव्य–विन्यास में इस परिवर्तन को कवि की यातना और दृष्टि से जोड़कर ही समझा जा सकता है। भेड़िए, कुत्ते, तेन्दुए, चिड़ियाँ, तितलियाँ, इस जंगल में सबसे उसका सामना होता है, उनसे वह जूझता है, बचता है, सीखता है और मानव नियति की राह टटोलता, झाड़ियों की रगड़ से अपनी देह का संगीत सुनता, ख़ुद को उधेड़ता–बुनता आगे बढ़ता जाता है। यह यात्रा जारी है, और हिन्दी कविता की भावी यात्रा के प्रति आश्वस्त करती है। यह काव्य–संग्रह ढहते मूल्यों के बीच खड़े रहने की सामर्थ्य देता है और यह स्पष्ट करता है कि कविता का मुख्य प्रयोजन सौन्दर्य–बोध के विस्तार के साथ–साथ मानव–आत्मा को निर्भीक करना और उसे कर्म से जोड़ना है।

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Description

‘जंगल का दर्द’ में कवि सर्वेश्वर की अपने अन्तर्जगत और बाह्य-जगत के जानवरों  से लड़ाई, समसामयिक हिन्दी कविता की उपलब्धि है। ‘कुआनो नदी’ की कविताएँ डूबते सूरज की लम्बी परछाइयाँ थीं। अब ‘जंगल का दर्द’ में अंधकार सिमटकर बुलेट–सा छोटा, ठोस और भारी हो गया है। काव्य–विन्यास में इस परिवर्तन को कवि की यातना और दृष्टि से जोड़कर ही समझा जा सकता है। भेड़िए, कुत्ते, तेन्दुए, चिड़ियाँ, तितलियाँ, इस जंगल में सबसे उसका सामना होता है, उनसे वह जूझता है, बचता है, सीखता है और मानव नियति की राह टटोलता, झाड़ियों की रगड़ से अपनी देह का संगीत सुनता, ख़ुद को उधेड़ता–बुनता आगे बढ़ता जाता है। यह यात्रा जारी है, और हिन्दी कविता की भावी यात्रा के प्रति आश्वस्त करती है। यह काव्य–संग्रह ढहते मूल्यों के बीच खड़े रहने की सामर्थ्य देता है और यह स्पष्ट करता है कि कविता का मुख्य प्रयोजन सौन्दर्य–बोध के विस्तार के साथ–साथ मानव–आत्मा को निर्भीक करना और उसे कर्म से जोड़ना है।

About Author

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का जन्म 15 सितम्बर, 1927 को बस्ती, उत्तर प्रदेश में हुआ।

आपने इलाहाबाद से बी.ए. और एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

जीविकोपार्जन के लिए मास्टर, क्लर्क, आकाशवाणी में सहायक प्रोड्यूसर, ‘दिनमान’ में प्रमुख उप-सम्पादक और फिर कुछ दिनों ‘पराग’ के सम्पादक। ‘तीसरा सप्तक’ के कवि और ‘नई कविता’ के अधिष्ठाता शीर्षस्थ कवियों में एक।

आपकी प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ हैं : ‘काठ की घंटियाँ’, ‘बाँस का पुल’, ‘एक सूनी नाव’, ‘गर्म हवाएँ’ (बाद में ये चारों कविता-संग्रह क्रमशः ‘कविताएँ : एक’ और ‘कविताएँ : दो’ में संकलित व प्रकाशित), ‘कुआनो नदी’, ‘जंगल का दर्द’, ‘खूँटियों पर टँगे लोग’, ‘कोई मेरे साथ चले’ (कविता-संग्रह); ‘उड़े हुए रंग’ (उपन्यास); ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘सोया हुआ जल’ (लघु उपन्यास); ‘लड़ाई’, ‘अँधेरे पर अँधेरा’ (कहानी); ‘बकरी’ (नाटक); ‘बतूता का जूता’, ‘महँगू की टाई’, ‘बिल्ली के बच्चे’ (बाल-कविता); ‘कुछ रंग, कुछ गंध’ (यात्रा-संस्मरण) ‘शमशेर’, ‘नेपाली कविताएँ’, ‘अँधेरा का हिसाब’ आदि (सम्पादन)।

आपकी रचनाएँ भारतीय भाषाओं के अलावा रूसी, जर्मन, पोलिश, चेक आदि भाषाओं में अनूदित।

‘खूँटियों पर टँगे लोग’ के लिए 1983 के 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' से सम्मानित किए गए।

24 सितम्बर, 1983 को नई दिल्ली में निधन।    

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