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Jeevan Prabandhan : Kripa Karahu Guru Dev Ki Naain (HB)
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करोड़ों लोगों के लिए ‘श्रीहनुमान चालीसा’ नित्य परायण का साधन है। कइयों को यह कण्ठस्थ है पर अधिकांश ने यह जानने का प्रयत्न नहीं किया होगा कि इन पंक्तियों का गूढ़ अर्थ क्या है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपना सारा साहित्य प्रभु को साक्षात् सामने रखकर लिखा है। उनका सारा सृजन एक तरह से वार्तालाप है। श्रीहनुमान जी से उनकी ऐसी ही एक निजी बातचीत का एक लोकप्रिय जनस्वीकृत नाम है ‘श्रीहनुमान चालीसा।’
आज के मानव के लिए अच्छा, सहज, सरल और सफल जीवन जीने के सारे संकेत हैं इस चालीसा में। ज्ञान के सागर में डुबकी लगाकर, भक्ति के मार्ग पर चलते हुए, निष्काम कार्य–योग को कैसे साधा जाए, जीवन में इसका सन्तुलन बनाती है ‘श्रीहनुमान चालीसा’।
जिसे पढ़ने के बाद यह समझ में आ जाता है कि श्रीहनुमान जीवन–प्रबन्धन के गुरु हैं।
जीवन–प्रबन्धन का आधार है स्वभाव और व्यवहार। आज के समय में बच्चों को जो सिखाया जा रहा है, युवा जिस पर चल रहे हैं, प्रौढ़ जिसे जी रहे हैं और वृद्धावस्था जिसमें अपना जीवन काट रही है, वह समूचा प्रबन्धन ‘व्यवहार’ पर आधारित है। जबकि जीवन–प्रबन्धन के मामले में ‘श्रीहनुमान चालीसा’ ‘स्वभाव’ पर जोर देती है।
व्यवहार से स्वभाव बनना आज के समय की रीत है, जबकि होना चाहिए स्वभाव से व्यवहार बने। जिसका स्वभाव सधा है, उसका हर व्यवहार सर्वप्रिय और सर्वस्वीकृत होता है। स्वभाव को कैसे साधा जाए, ऐसे जीवन–प्रबन्धन के सारे सूत्र हैं ‘श्रीहनुमान चालीसा’ की प्रत्येक पंक्ति में…
करोड़ों लोगों के लिए ‘श्रीहनुमान चालीसा’ नित्य परायण का साधन है। कइयों को यह कण्ठस्थ है पर अधिकांश ने यह जानने का प्रयत्न नहीं किया होगा कि इन पंक्तियों का गूढ़ अर्थ क्या है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपना सारा साहित्य प्रभु को साक्षात् सामने रखकर लिखा है। उनका सारा सृजन एक तरह से वार्तालाप है। श्रीहनुमान जी से उनकी ऐसी ही एक निजी बातचीत का एक लोकप्रिय जनस्वीकृत नाम है ‘श्रीहनुमान चालीसा।’
आज के मानव के लिए अच्छा, सहज, सरल और सफल जीवन जीने के सारे संकेत हैं इस चालीसा में। ज्ञान के सागर में डुबकी लगाकर, भक्ति के मार्ग पर चलते हुए, निष्काम कार्य–योग को कैसे साधा जाए, जीवन में इसका सन्तुलन बनाती है ‘श्रीहनुमान चालीसा’।
जिसे पढ़ने के बाद यह समझ में आ जाता है कि श्रीहनुमान जीवन–प्रबन्धन के गुरु हैं।
जीवन–प्रबन्धन का आधार है स्वभाव और व्यवहार। आज के समय में बच्चों को जो सिखाया जा रहा है, युवा जिस पर चल रहे हैं, प्रौढ़ जिसे जी रहे हैं और वृद्धावस्था जिसमें अपना जीवन काट रही है, वह समूचा प्रबन्धन ‘व्यवहार’ पर आधारित है। जबकि जीवन–प्रबन्धन के मामले में ‘श्रीहनुमान चालीसा’ ‘स्वभाव’ पर जोर देती है।
व्यवहार से स्वभाव बनना आज के समय की रीत है, जबकि होना चाहिए स्वभाव से व्यवहार बने। जिसका स्वभाव सधा है, उसका हर व्यवहार सर्वप्रिय और सर्वस्वीकृत होता है। स्वभाव को कैसे साधा जाए, ऐसे जीवन–प्रबन्धन के सारे सूत्र हैं ‘श्रीहनुमान चालीसा’ की प्रत्येक पंक्ति में…
About Author
पं. विजयशंकर मेहता
जन्म : 2 जुलाई, 1957 को प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. डॉ. वल्लभदास जी मेहता एवं माता सुमित्रा देवी के घर हुआ।
रसायनशास्त्र में एम.एससी. करने के बाद पं. मेहता ने 20 वर्षों तक भारतीय स्टेट बैंक में अपनी सेवाएँ दी थीं। भारत के प्रतिष्ठित हिन्दी समाचार-पत्र ‘दैनिक भास्कर समूह’ से भी आप 20 वर्षों तक जुड़े रहे तथा ब्यूरो प्रमुख, सम्पादक और ब्यूरो सलाहकार के पद पर अपनी सेवाएँ देते हुए सेवानिवृत्त हुए।
2004 में सिंहस्थ के पश्चात् स्वामी सत्यमित्रानन्द जी और माँ प्रेमापांडुरंग जी के आशीर्वाद से आपने अपने व्याख्यान के विषयों को जीवन-प्रबन्धन से जोड़ा। इसके पश्चात् आपको जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्दगिरि जी का शिष्यत्व प्राप्त हुआ।
पिछले कई वर्षों में पं. विजयशंकर मेहता ने सैकड़ों व्याख्यान देश और विदेश में दिए हैं। श्रीरामकथा, श्रीमद्भागवत, महाभारत, श्रीहनुमानचालीसा, गीता आदि अनेक विषयों पर आपकी सीडी देखी व सुनी जा रही तथा उपलब्ध पुस्तकें पढ़ी जा रही हैं।
पं. विजयशंकर मेहता जब पाकिस्तान यात्रा पर गए थे तब वहाँ उन्होंने मज़हब को जिस्मानी और रूहानी तौर पर अलग-अलग उपयोग के साथ अपने 13 व्याख्यानों में समझाया। पाकिस्तान में हर मज़हब के लोगों ने इसे पसन्द किया।
आधुनिक प्रबन्धन में जो सूत्र आते हैं, उन पर अध्यात्म की दृष्टि से बोलने के लिए पंडित मेहता को 2010 एवं 2011 में अफ्रीका बुलाया गया था।
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