Hindustan Ke 100 Kavi

Publisher:
Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
| Author:
Kumar Mukul
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Prabhat Prakashan Pvt. Ltd.
Author:
Kumar Mukul
Language:
Hindi
Format:
Paperback

300

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SKU 9789355211132 Category
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344

मैंने अपनी जानकारी में इस तरह की वैविध्यपूर्ण पुस्तक हिंदी कविता पर हाल के दिनों में नहीं पढ़ी। ये लेख/टिप्पणियाँ उन खिड़कियों की तरह से हैं, जहाँ आप इन कवियों के घर, दरवाजे और चेहरे से मुखातिब होते हैं। समकालीनता का दस्तावेजीकरण तो सरल होता है, मगर उसके प्रति संगत दृष्टिकोण जिस तरह की आत्म-आलोचनात्मक दृष्टि और तटस्थता की माँग करती है, वह कविता-समय के भीतर उतरे बगैर संभव नहीं। इस पुस्तक में अंतर्दृष्टि भी है और काव्यात्मक विवेक भी। यह महज आलोचना की पुस्तक नहीं, बल्कि आलोचनात्मक संवाद की पुस्तक है, जहाँ लेखक के ही शब्दों में उसका कवि और आलोचक संवादरत हैं। दोनों एक-दूसरे को समृद्ध करते हैं। कहना न होगा कि यह समृद्धि हिंदी पाठकीय जगत् के लिए अनुपम उपहार है।
—अच्युतानंद मिश्र
दलबद्धता या शिविरबद्धता से दूर मुक्त हृदय और पैनी दृष्टि से कवि के संसार में उतरने का यह सामर्थ्य किसी को भी प्रभावित करेगा। एक गहरी अंतर्दृष्टि की बुनियाद पर आप बिना लाग-लपेट के बड़ी तीक्ष्णता व स्पष्टता के साथ अपनी बात कहते हैं और यह आलोचना का साहस है।
—विजय कुमार

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Description

मैंने अपनी जानकारी में इस तरह की वैविध्यपूर्ण पुस्तक हिंदी कविता पर हाल के दिनों में नहीं पढ़ी। ये लेख/टिप्पणियाँ उन खिड़कियों की तरह से हैं, जहाँ आप इन कवियों के घर, दरवाजे और चेहरे से मुखातिब होते हैं। समकालीनता का दस्तावेजीकरण तो सरल होता है, मगर उसके प्रति संगत दृष्टिकोण जिस तरह की आत्म-आलोचनात्मक दृष्टि और तटस्थता की माँग करती है, वह कविता-समय के भीतर उतरे बगैर संभव नहीं। इस पुस्तक में अंतर्दृष्टि भी है और काव्यात्मक विवेक भी। यह महज आलोचना की पुस्तक नहीं, बल्कि आलोचनात्मक संवाद की पुस्तक है, जहाँ लेखक के ही शब्दों में उसका कवि और आलोचक संवादरत हैं। दोनों एक-दूसरे को समृद्ध करते हैं। कहना न होगा कि यह समृद्धि हिंदी पाठकीय जगत् के लिए अनुपम उपहार है।
—अच्युतानंद मिश्र
दलबद्धता या शिविरबद्धता से दूर मुक्त हृदय और पैनी दृष्टि से कवि के संसार में उतरने का यह सामर्थ्य किसी को भी प्रभावित करेगा। एक गहरी अंतर्दृष्टि की बुनियाद पर आप बिना लाग-लपेट के बड़ी तीक्ष्णता व स्पष्टता के साथ अपनी बात कहते हैं और यह आलोचना का साहस है।
—विजय कुमार

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