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Hindi Ramkavya Ka Swaroop Aur Vikas : Badalate Yugbodh Ke Pariprekshya Mein : Global Encyclopedia of the Ramayana
Publisher:
Lekhshree Publication (Vani Prakashan)
| Author:
प्रेमचन्द्र माहेश्वरी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lekhshree Publication (Vani Prakashan)
Author:
प्रेमचन्द्र माहेश्वरी
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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ISBN:
SKU
9789357759304
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
368
हिन्दी रामकाव्य का स्वरूप और विकास ग्रन्थ रामकाव्य की अद्यतन काव्यधारा को भारतीय मनीषा और इसकी बृहत्तर संस्कृति की स्वीकृत परम्पराओं को युगीन सन्दर्भों के अनेक स्तरों पर पुनर्व्याख्यायित ही नहीं करता-भारत की बाह्य-मुखी विविधता के मूल में निहित अजस्रता एवं अखण्डता को भी आलोकित करता है।
हिन्दी रामकाव्य का स्वरूप और विकास में मानस एवं प्रकृति के अनन्य पारस्परिक सम्बन्धों के विवेचन एवं विनियोजन-क्रम में तथ्यों के पुनराख्यान तथा नवीनीकरण को सर्वाधिक महत्त्व मिला है। समर्पित निष्ठा, संश्लेषणात्मक बुद्धि, विचक्षण विश्लेषण क्षमता एवं निष्कर्ष विवेक के कारण यह शोध-प्रबन्ध अपने प्रारूप में एक क्षमसिद्ध तथा कोशशास्त्रीय सन्दर्भ ग्रन्थ बन गया है। इसे अनायास ही, फादर कामिल बुल्के की प्रतिमानक कार्य-परम्परा से जोड़ कर देखा जा सकता है।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध लेखक के सारस्वत श्रम का ही नहीं, उसकी संवेदनशीलता और गहन भाव-प्रवणता का साक्षी भी है। इसमें कारिका की कोरी शुष्कता नहीं, लालित्यपूर्ण विदग्धता है और रोचकता भी। लेखक ने अपनी आस्था को भी भास्वर स्वर दिया है।
हर दृष्टि से एक अपरिहार्य, अभिनव एवं संग्रहणीय कृति ।
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Description
हिन्दी रामकाव्य का स्वरूप और विकास ग्रन्थ रामकाव्य की अद्यतन काव्यधारा को भारतीय मनीषा और इसकी बृहत्तर संस्कृति की स्वीकृत परम्पराओं को युगीन सन्दर्भों के अनेक स्तरों पर पुनर्व्याख्यायित ही नहीं करता-भारत की बाह्य-मुखी विविधता के मूल में निहित अजस्रता एवं अखण्डता को भी आलोकित करता है।
हिन्दी रामकाव्य का स्वरूप और विकास में मानस एवं प्रकृति के अनन्य पारस्परिक सम्बन्धों के विवेचन एवं विनियोजन-क्रम में तथ्यों के पुनराख्यान तथा नवीनीकरण को सर्वाधिक महत्त्व मिला है। समर्पित निष्ठा, संश्लेषणात्मक बुद्धि, विचक्षण विश्लेषण क्षमता एवं निष्कर्ष विवेक के कारण यह शोध-प्रबन्ध अपने प्रारूप में एक क्षमसिद्ध तथा कोशशास्त्रीय सन्दर्भ ग्रन्थ बन गया है। इसे अनायास ही, फादर कामिल बुल्के की प्रतिमानक कार्य-परम्परा से जोड़ कर देखा जा सकता है।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध लेखक के सारस्वत श्रम का ही नहीं, उसकी संवेदनशीलता और गहन भाव-प्रवणता का साक्षी भी है। इसमें कारिका की कोरी शुष्कता नहीं, लालित्यपूर्ण विदग्धता है और रोचकता भी। लेखक ने अपनी आस्था को भी भास्वर स्वर दिया है।
हर दृष्टि से एक अपरिहार्य, अभिनव एवं संग्रहणीय कृति ।
About Author
प्रेमचन्द्र माहेश्वरी -
जन्म : 22 मई, 1936; स्मृतिशेष : 2 जून, 1978 ।
बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व के धनी ।
वाणी प्रकाशन की संस्थापना के पूर्व एक समादृत लेखक, निष्ठावान अध्यापक तथा संगठनकर्ता के रूप में ख्यात । 'प्रेम' महेश के नाम से रससिद्ध कविताओं का प्रणयन एवं प्रकाशन ।
सर्वप्रथम हस्तलिखित साहित्यिक पत्रिका एवं तदुपरान्त कई अज्ञात, अल्पज्ञात तथा विशिष्ट पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन । सहृदय साधक तथा विनम्र समाजसेवी के रूप में साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के लिए सर्वस्व अर्पण करने वाले 'महेश' सच्ची मित्रता के प्रतीक और पर्याय ही नहीं, सचमुच अजातशत्रु थे।
हिन्दी के प्रथम बाल उपन्यास हर्षवर्धन (रचनाकाल 1958) के लिए भारत सरकार से पुरस्कृत। इसी क्रम में सम्राट अशोक, चाणक्य और चन्द्रगुप्त, कलम और तलवार के धनी रहीम, काशी का जुलाहा कबीर, नर्मदा के तट पर तथा साहित्य संगम कृतियाँ प्रकाशित हुईं।
श्री माहेश्वरी साहित्य-साधना को अपनी परम भागवती आस्था से जोगे या जुगाये रहे । अपने इष्टदेव भगवान राम के प्रति उनका समर्पित भक्ति योग-हिन्दी रामकाव्य का स्वरूप और विकास ज्ञान योग से जुड़ कर सार्थक और सारस्वत हो पाया ।
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