Harit Kavita

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सम्पादक - प्रभाकरन हेब्बार इल्लत
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सम्पादक - प्रभाकरन हेब्बार इल्लत
Language:
Hindi
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हरित कविता – पिछले साल 31 अक्तूबर से लेकर 12 नवम्बर 2021 तक स्कॉटलैंड के ग्लास्को में विश्वभर में होने वाले पर्यावरणीय परिवर्तन पर विचार-विमर्श करने हेतु शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ था। इसमें विश्वभर के एक सौ बीस से अधिक राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। सम्मेलन के सार के रूप में एक नारा वहाँ बुलन्द था, वह यह था कि ‘अब नहीं तो कभी नहीं’; अर्थात् वर्तमान काल में यदि हम प्रकृति को बचा नहीं पायेंगे तो फिर कभी नहीं बचा पायेंगे। इसका तात्पर्य यह निकलता है कि पर्यावरण को बचाने की चिन्ता विश्वभर में छायी हुई है। आज का ज़माना यह जान चुका है कि बिना प्रकृति के इस भूतल में मानव का मात्र नहीं, प्रकृति के सम्पूर्ण जीव-रूपों का अतिजीवन आगे निस्सन्देह असम्भव है। प्रकृति से एकदम अलग होकर मानव के अस्तित्व की परिकल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि वह स्वयं प्रकृति का दूसरा रूप है। प्रदूषित, संसाधनहीन, निर्जीव प्रकृति में मानव का चैन से रहना सिर्फ़ एक सपना है। जयप्रकाश कर्दम जैसे समकालीन कवि इस चिन्ता को हमारे सामने रखते हुए कहते हैं कि ‘मृत्यु सारे ग्रहों में है, पर जीवन की रंगमयता केवल इस भूमि में मात्र बरकरार है।’ अतएव समकालीन संकट की घड़ी में उभरनेवाला ज्वलन्त सवाल यह है कि हम मृत्यु का वरण करें या जीवन का। इस बात को इस भाँति भी व्यक्त किया जा सकता है कि आगामी पीढ़ियाँ सुख-शान्ति से रहें या न रहें। इससे लगता है कि पर्यावरणीय साहित्य का मूलभाव सबको निगलने के लिए तत्पर खड़ी मृत्यु का नितान्त निरोध-विरोध है।

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हरित कविता – पिछले साल 31 अक्तूबर से लेकर 12 नवम्बर 2021 तक स्कॉटलैंड के ग्लास्को में विश्वभर में होने वाले पर्यावरणीय परिवर्तन पर विचार-विमर्श करने हेतु शिखर सम्मेलन सम्पन्न हुआ था। इसमें विश्वभर के एक सौ बीस से अधिक राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। सम्मेलन के सार के रूप में एक नारा वहाँ बुलन्द था, वह यह था कि ‘अब नहीं तो कभी नहीं’; अर्थात् वर्तमान काल में यदि हम प्रकृति को बचा नहीं पायेंगे तो फिर कभी नहीं बचा पायेंगे। इसका तात्पर्य यह निकलता है कि पर्यावरण को बचाने की चिन्ता विश्वभर में छायी हुई है। आज का ज़माना यह जान चुका है कि बिना प्रकृति के इस भूतल में मानव का मात्र नहीं, प्रकृति के सम्पूर्ण जीव-रूपों का अतिजीवन आगे निस्सन्देह असम्भव है। प्रकृति से एकदम अलग होकर मानव के अस्तित्व की परिकल्पना नहीं की जा सकती है, क्योंकि वह स्वयं प्रकृति का दूसरा रूप है। प्रदूषित, संसाधनहीन, निर्जीव प्रकृति में मानव का चैन से रहना सिर्फ़ एक सपना है। जयप्रकाश कर्दम जैसे समकालीन कवि इस चिन्ता को हमारे सामने रखते हुए कहते हैं कि ‘मृत्यु सारे ग्रहों में है, पर जीवन की रंगमयता केवल इस भूमि में मात्र बरकरार है।’ अतएव समकालीन संकट की घड़ी में उभरनेवाला ज्वलन्त सवाल यह है कि हम मृत्यु का वरण करें या जीवन का। इस बात को इस भाँति भी व्यक्त किया जा सकता है कि आगामी पीढ़ियाँ सुख-शान्ति से रहें या न रहें। इससे लगता है कि पर्यावरणीय साहित्य का मूलभाव सबको निगलने के लिए तत्पर खड़ी मृत्यु का नितान्त निरोध-विरोध है।

About Author

प्रभाकरन हेब्बार इल्लत जन्म : केरल के कण्णूर जिले के पाणप्पुपा गाँव में। शैक्षणिक योग्यताएं : एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (अंग्रेज़ी), एम.ए. (भाषाविज्ञान), एम.ए. (अनुवाद अध्ययन), बी.एड., एम.फिल., पीएच. डी., पी.जी.डी.टी.एस., पी.जी. एन.एल.पी., यूजीसी नेट, स्लेट। प्रकाशित रचनाएँ : 1. निराला के काव्य निर्माण में वैदिक संस्कृति की भूमिका, 2. नारायणगुरु की यात्रा (पेरुंवडवम श्रीधरन के मलयालम 'नारायणम' का हिन्दी अनुवाद), 3. गंगा (के.पी. सुधीरा के मलयालम उपन्यास 'गंगा' का हिन्दी अनुवाद), 4. Rajaravi Varma : The Colossus of Indian Painting, 5. राजभाषा हिन्दी : विविध आयाम, 6. सिद्धार्थ (हेरमन हेस्से के 'सिद्धार्थ' उपन्यास का हिन्दी अनुवाद), 7. संस्कृति भाषा साहित्य, 8. नवत्युत्तर हिन्दी कविता की नूतन प्रवृत्तियाँ, 9. रामविलास शर्मा का अवदान, 10. मानवाधिकार और समकालीन हिन्दी कविता, 11. भाषा एवं साहित्य : विविध परिदृश्य, 12. आधुनिक हिन्दी कविता से साक्षात्कार, 13. पर्यावरण और समकालीन हिन्दी साहित्य,14. मानवाधिकार की राजनीति। पुरस्कार : 1. उत्तम शोध ग्रन्थ के लिए केरल हिन्दी साहित्य अकादमी का पुरस्कार (2001), 2. अनुवाद के लिए राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का पुरस्कार (2008), 3. हिन्दीतर लेखक हिन्दी पुरस्कार, केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, भारत सरकार (2013), 4. वालकृष्ण गोइन्का अनुवाद पुरस्कार (2015), 5. डॉ. सुनीताबाई आलोचना पुरस्कार (2020 ) । अनुसंधान : यूजीसी की दो कनिष्ठ परियोजनाएँ पूरी कीं, यूजीसी का रिसर्च पुरस्कार (2014), पोस्ट डॉक्टरल फेलो- केरल सरकार। सदस्यता : कण्णूर विश्वविद्यालय, कण्णूर एवं कालडी श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, कालड़ी के बोर्ड ऑफ स्टडीज़ का सदस्य। रुचि : कविता, आलोचना, भाषाविज्ञान, अनुवाद । सम्प्रति : एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कुसाट, कोच्चिन, केरल-682022 स्थायी पता : पी.ओ. पाणप्पुपा, एम.एम. बाज़ार, कण्णूर जिला, केरल-670306 ई-मेल : drhebbarillath@gmail.com मो. : 9146661250, 9447661250

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