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Hans Akela

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
रमानाथ अवस्थी
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
रमानाथ अवस्थी
Language:
Hindi
Format:
Hardback

129

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SKU 8126307455 Category
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Page Extent:
120

हंस अकेला –
यदि एक वाक्य में कहना हो तो कहा जा सकता है कि रमानाथ अवस्थी विराग के कवि हैं।— एक ऐसे विराग के जिसमें अनुराग की पयस्विनी सतत प्रवहमान है। आधुनिक हिन्दी कविता— विशेष रूप से गीत-धारा के पाठक-समाज में उनकी कविताएँ एक अद्वितीय सृष्टि के रूप में पढ़ी और पहचानी जाती हैं।
दरअसल उनकी कविताएँ हमारे भीतर रचे-बसे कोमल, मधुर और उत्कृष्ट के साथ-साथ अपने समय के यथार्थ और बेचैनी-भरे एकान्त हाहाकार को भी बड़ी सहजता से अभिव्यक्त करती हैं। ‘हंस अकेला’ की कविताएँ भी मनुष्य के उदात्त सौन्दर्य के आस्वादन और सत्य की बीहड़ खोज से उपजे एक अखण्डित और विराट् अनुभव-छन्द का साक्षात्कार कराती हैं। प्रस्तुत है वरिष्ठ हिन्दी कवि रमानाथ अवस्थी की कविताओं का नवीनतम संग्रह ‘हंस अकेला’।

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Description

हंस अकेला –
यदि एक वाक्य में कहना हो तो कहा जा सकता है कि रमानाथ अवस्थी विराग के कवि हैं।— एक ऐसे विराग के जिसमें अनुराग की पयस्विनी सतत प्रवहमान है। आधुनिक हिन्दी कविता— विशेष रूप से गीत-धारा के पाठक-समाज में उनकी कविताएँ एक अद्वितीय सृष्टि के रूप में पढ़ी और पहचानी जाती हैं।
दरअसल उनकी कविताएँ हमारे भीतर रचे-बसे कोमल, मधुर और उत्कृष्ट के साथ-साथ अपने समय के यथार्थ और बेचैनी-भरे एकान्त हाहाकार को भी बड़ी सहजता से अभिव्यक्त करती हैं। ‘हंस अकेला’ की कविताएँ भी मनुष्य के उदात्त सौन्दर्य के आस्वादन और सत्य की बीहड़ खोज से उपजे एक अखण्डित और विराट् अनुभव-छन्द का साक्षात्कार कराती हैं। प्रस्तुत है वरिष्ठ हिन्दी कवि रमानाथ अवस्थी की कविताओं का नवीनतम संग्रह ‘हंस अकेला’।

About Author

रमानाथ अवस्थी - जन्म उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर जनपद में स्थित गाँव लालीपुर में 8 नवम्बर, 1928 को हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा गाँव और फ़तेहपुर में हुई। उसके बाद की शिक्षा इलाहाबाद में हुई। वहीं साप्ताहिक पत्र 'संगम' के सम्पादकीय विभाग में कार्यरत रहे। सन् 1955 से आकाशवाणी के विभिन्न पदों और विभागों में कार्यरत रहकर सन् 1984 में चीफ़ प्रोड्यूसर के पद से अवकाश लिया। पहला गीत-संग्रह 'रात और शहनाई' 1949, दूसरा संग्रह 'आग और पराग' 1952, तीसरा संग्रह 'बन्द न करना द्वार' 1982, चौथा संग्रह 'आकाश सब का है' 1997 और पाँचवाँ संग्रह 'आख़िर यह मौसम भी आया' 1999 में प्रकाशित हुआ। भारतीय ज्ञानपीठ से उनकी संस्मरण पुस्तक 'याद आते हैं' 2001 में प्रकाशित हुई। 1980 में हिन्दी अकादमी दिल्ली, नागरिक परिषद्, दिल्ली और ग़ालिब अकादमी ने सम्मानित किया। महाराष्ट्र की 'साहित्य परिवार' संस्था ने 1990 में सम्मानित और पुरस्कृत किया। 1991 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ने 'साहित्य महोपाध्याय' की मानद उपाधि दी। सन् 1995 मंय उत्तर प्रदेश साहित्य संस्थान ने 'साहित्य भूषण' सम्मान प्रदान किया। ब्रिटेन, नेपाल और वियतनाम की यात्राएँ कीं। 29 जून, 2002 को देहावसान।

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