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Guzar Kyon Nahin Jata

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
धीरेन्द्र अस्थाना
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
धीरेन्द्र अस्थाना
Language:
Hindi
Format:
Hardback

99

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SKU 9788170555655 Category
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96

गुज़र क्यों नहीं जाता –
आठवें दशक के उत्तरार्ध में जब धीरेंद्र अस्थाना ने हिन्दी कहानी की दुनिया में कदम रखा था तो कथाकारों-आलोचकों ने उन्हें नवलेखन की उम्मीद के तौर पर रेखांकित किया था। लगातार स्तरीय लेखन से धीरेंद्र ने उत्तरोत्तर इस अपेक्षा को पुष्ट ही किया। अपने गढ़े जाने के समूचे समय में धीरेंद्र की रचनाएँ पाठक के भीतर एक गहरी उत्सुकता को लगातार जागृत रखती हैं। धीरेंद्र की रचनाओं ने जीवन के नियमों की नहीं बल्कि जीवन की ही पुनर्रचना की और इसी कारण हिन्दी साहित्य की आधुनिकतम ज़मीन पर वे अलग से खड़ी नज़र आयी।
धीरेंद्र अस्थाना का पहला उपन्यास ‘समय एक शब्द भर नहीं है’ उत्तराखंड में चल रहे ‘चिपको आन्दोलन’ की पृष्ठभूमि पर आधारित था तो दूसरा उपन्यास ‘हलाहल’ भारतीय परिवेश में मौजूद उन प्रतिकूल जीवन स्थितियों को उजागर करता था जिनमें फंस कर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति ‘नारसिसस’ जैसी कारुणिक स्थिति को प्राप्त होता है। और अब यह तीसरा उपन्यास ‘गुज़र क्यों नहीं जाता’।
‘गुज़र क्यों नहीं जाता’ उस दुनिया की विद्रूपताओं तल्खियों-षड्यन्त्रों का पर्दाफाश करता है जो लिखने-पढ़ने वालों की दुनिया है और जिसे अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील, सहिष्णु और मानवीय माना जाता है। उस तथाकथित मानवीय दुनिया की अमानवीयता को बेपर्दा करना एक बड़ा जोखिम मोल लेना था, जो धीरेंद्र ने लिया, अब इसके जो भी ख़तरे हों… – राकेश श्रीमाल

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Description

गुज़र क्यों नहीं जाता –
आठवें दशक के उत्तरार्ध में जब धीरेंद्र अस्थाना ने हिन्दी कहानी की दुनिया में कदम रखा था तो कथाकारों-आलोचकों ने उन्हें नवलेखन की उम्मीद के तौर पर रेखांकित किया था। लगातार स्तरीय लेखन से धीरेंद्र ने उत्तरोत्तर इस अपेक्षा को पुष्ट ही किया। अपने गढ़े जाने के समूचे समय में धीरेंद्र की रचनाएँ पाठक के भीतर एक गहरी उत्सुकता को लगातार जागृत रखती हैं। धीरेंद्र की रचनाओं ने जीवन के नियमों की नहीं बल्कि जीवन की ही पुनर्रचना की और इसी कारण हिन्दी साहित्य की आधुनिकतम ज़मीन पर वे अलग से खड़ी नज़र आयी।
धीरेंद्र अस्थाना का पहला उपन्यास ‘समय एक शब्द भर नहीं है’ उत्तराखंड में चल रहे ‘चिपको आन्दोलन’ की पृष्ठभूमि पर आधारित था तो दूसरा उपन्यास ‘हलाहल’ भारतीय परिवेश में मौजूद उन प्रतिकूल जीवन स्थितियों को उजागर करता था जिनमें फंस कर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति ‘नारसिसस’ जैसी कारुणिक स्थिति को प्राप्त होता है। और अब यह तीसरा उपन्यास ‘गुज़र क्यों नहीं जाता’।
‘गुज़र क्यों नहीं जाता’ उस दुनिया की विद्रूपताओं तल्खियों-षड्यन्त्रों का पर्दाफाश करता है जो लिखने-पढ़ने वालों की दुनिया है और जिसे अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील, सहिष्णु और मानवीय माना जाता है। उस तथाकथित मानवीय दुनिया की अमानवीयता को बेपर्दा करना एक बड़ा जोखिम मोल लेना था, जो धीरेंद्र ने लिया, अब इसके जो भी ख़तरे हों… – राकेश श्रीमाल

About Author

धीरेन्द्र अस्थाना – जन्म : 25 दिसम्बर 1956, उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में। शिक्षा : मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, आगरा और अन्ततः देहरादून से ग्रेजुएट। पत्रकारिता : सन् 1981 के अन्तिम दिनों में टाइम्स समूह की साप्ताहिक राजनैतिक पत्रिका 'दिनमान में बतौर उप सम्पादक प्रवेश। पाँच वर्ष बाद हिन्दी के पहले साप्ताहिक अख़बार 'चौथी दुनिया' में मुख्य उप सम्पादक यानी सन् 1986 में । सन् 1990 में दिल्ली में बना-बनाया घर छोड़कर सपरिवार मुम्बई गमन। एक्सप्रेस समूह के हिन्दी दैनिक 'जनसत्ता' में फीचर सम्पादक नियुक्त। मुम्बई शहर की पहली नगर पत्रिका 'सबरंग' का पूरे दस वर्षों तक सम्पादन। सन् 2001 में फिर दिल्ली लौटे। इस बार 'जागरण' समूह की पत्रिकाओं 'उदय' और 'सखी' का सम्पादन करने। 2003 में फिर मुम्बई वापसी। सहारा इंडिया परिवार के हिन्दी साप्ताहिक 'सहारा समय' के एसोसिएट एडिटर बन कर। आजकल स्वतन्त्र लेखन। कृतियाँ : लोग हाशिए पर, आदमी खोर, महिम, विचित्र देश की प्रेमकथा, जो मारे जायेंगे, उस रात की गन्ध, खुल जा सिमसिम, नींद के बाहर, पिता (कहानी संग्रह)। समय एक शब्द भर नहीं है, हलाहल, गुज़र क्यों नहीं जाता, देश निकाला (उपन्यास) । 'रूबरू', अन्तर्यात्रा (साक्षात्कार)। पुरस्कार : पहला महत्त्वपूर्ण पुरस्कार 1987 में दिल्ली में मिला : राष्ट्रीय संस्कृति पुरस्कार जो मशहूर पेंटर एम एफ हुसैन के हाथों स्वीकार किया। पत्रकारिता के लिए पहला महत्त्वपूर्ण पुरस्कार सन् 1994 में मिला : मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पत्रकारिता पुरस्कार, मुम्बई में । मुम्बई में सन् 1995 का घनश्यामदास सराफ साहित्य सम्मान प्राप्त हुआ। सन् 1996 में इन्दु शर्मा कथा सम्मान से नवाजे गये। सन् 2011 में महाराष्ट्र की हिन्दी साहित्य अकादमी ने छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय सम्मान से समग्र साहित्य के लिए नवाज़ा।

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