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Gule E Nagma (HB)
Publisher:
Lokbharti
| Author:
Pushpa Jain
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Lokbharti
Author:
Pushpa Jain
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹525 ₹420
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ISBN:
SKU
9788180312847
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
‘आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हम-असरो
जब ये ध्यान आएगा उनको, तुमने ‘फ़िराक़’ को देखा था।’
‘फ़िराक़’ की शायरी इस धरती की सोंधी-सुगन्ध, नदियों की मदमाती चाल, हवाओं की नशे में डूबी मस्ती में ढूँढ़ी जा सकती है। ‘फ़िराक़’ प्रायः कहा करते थे कि कलाकार का मात्र भारतवासी होना पर्याप्त नहीं है, वरन् उसके भीतर भारत को निवास करना चाहिए।
भारत की शायरी की पहचान भारतीयता से होनी चाहिए। भारतीयता का एक विशिष्ट काव्य प्रतिमान है।
‘फ़िराक़’ की शायरी ने जीवन पर अमृत वर्षा कर दी और उसे ऐसा मधुर संगीत प्रदान किया, जिससे देवताओं के पवित्र नेत्र भीग जाएँ। ‘फ़िराक़’ की शायरी जीवन के लिए पाकीज़ा दुआ बन गई।
‘फ़िराक़’ ने उर्दू शायरी को एक बिलकुल नया आशिक़ दिया है और उसी तरह बिलकुल नया माशूक़ भी। इस नए आशिक़ की एक बड़ी स्पष्ट विशेषता यह है कि इसके भीतर एक ऐसी गम्भीरता पाई जाती है जो उर्दू शायरी में पहले नज़र नहीं आती थी।
‘फ़िराक़’ के काव्य में मानवता की वही आधारभूमि है और उसी स्तर की है जैसे ‘मीर’ के यहाँ उनके काव्य में ऐसी तीव्र प्रबुद्धता है, जो उर्दू के किसी शायर से दब के नहीं रहती। अतएव, उनके आशिक़ में एक तरफ़ तो आत्मनिष्ठ मानव की गम्भीरता है, दूसरी तरफ़ प्रबुद्ध मानव की गरिमा है।
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Description
‘आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हम-असरो
जब ये ध्यान आएगा उनको, तुमने ‘फ़िराक़’ को देखा था।’
‘फ़िराक़’ की शायरी इस धरती की सोंधी-सुगन्ध, नदियों की मदमाती चाल, हवाओं की नशे में डूबी मस्ती में ढूँढ़ी जा सकती है। ‘फ़िराक़’ प्रायः कहा करते थे कि कलाकार का मात्र भारतवासी होना पर्याप्त नहीं है, वरन् उसके भीतर भारत को निवास करना चाहिए।
भारत की शायरी की पहचान भारतीयता से होनी चाहिए। भारतीयता का एक विशिष्ट काव्य प्रतिमान है।
‘फ़िराक़’ की शायरी ने जीवन पर अमृत वर्षा कर दी और उसे ऐसा मधुर संगीत प्रदान किया, जिससे देवताओं के पवित्र नेत्र भीग जाएँ। ‘फ़िराक़’ की शायरी जीवन के लिए पाकीज़ा दुआ बन गई।
‘फ़िराक़’ ने उर्दू शायरी को एक बिलकुल नया आशिक़ दिया है और उसी तरह बिलकुल नया माशूक़ भी। इस नए आशिक़ की एक बड़ी स्पष्ट विशेषता यह है कि इसके भीतर एक ऐसी गम्भीरता पाई जाती है जो उर्दू शायरी में पहले नज़र नहीं आती थी।
‘फ़िराक़’ के काव्य में मानवता की वही आधारभूमि है और उसी स्तर की है जैसे ‘मीर’ के यहाँ उनके काव्य में ऐसी तीव्र प्रबुद्धता है, जो उर्दू के किसी शायर से दब के नहीं रहती। अतएव, उनके आशिक़ में एक तरफ़ तो आत्मनिष्ठ मानव की गम्भीरता है, दूसरी तरफ़ प्रबुद्ध मानव की गरिमा है।
About Author
‘फ़िराक़’ गोरखपुरी
जन्म : 28 अगस्त, 1896 को गोरखपुर के एक कायस्थ परिवार में।
शिक्षा : गोरखपुर और इलाहाबाद में। अंग्रेज़ी साहित्य से एम.ए.।
इंडियन सिविल सर्विस तथा प्रोविंसियल सिविल सर्विस हेतु सरकार द्वारा चुने गए। कुछ समय पश्चात् इस्तीफ़ा दे दिया और महात्मा गांधी द्वारा ब्रिटिश गवर्नमेंट के ख़िलाफ़ भारत
की आज़ादी के लिए शुरू किए गए असहयोग आन्दोलन में सम्मिलित हुए। 1930 से 1958 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में प्राध्यापक रहे। सन् 1959 से 1962 तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के रिसर्च प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत।
सन् 1970 में साहित्य अकादेमी के सम्मानित सदस्य (फ़ेलो) मनोनीत।
पुरस्कार : कॉलेज में शिक्षा प्राप्ति के दौरान ‘गोखले पदक’, ‘रानडे पदक’, ‘सशादरी पदक’, सन् 1961 में ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, सन् 1968 में ‘सोवियत लैंड पुरस्कार’, सन् 1968 में ही राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मभूषण’ उपाधि तथा 1970 में ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित।
निधन : 3 मार्च, 1982 को नई दिल्ली में।
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