Godse@Gandhi.Com

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
असगर वज़ाहत
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
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असगर वज़ाहत
Language:
Hindi
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Paperback

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SKU 9789355183293 Category
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120

भारतीय साहित्य में वरिष्ठ कथाकार व सिद्धहस्त नाटककार असग़र वजाहत का नाम अपनी एक सशक्त पहचान रखता है। राजनीतिक और सामाजिक विद्रूपताओं को लक्षित करते हुए उन्होंने अपने लेखन में अखण्ड विचारधारा को ख़ौफनाक खण्डित शून्य में दर्शाया है। उन्होंने भारतीय साहित्य में अपने धारदार प्रश्नों द्वारा समय, समाज और व्यवस्था को विचार के स्तर पर चुनौती दी है। उनका एक अलग पाठक वर्ग है जो कलात्मक मूल्यों के साथ यथार्थ के मुद्दों के लिए चिन्तित ही नहीं बल्कि उनके साथ पूरी तन्मयता से बातचीत करने को तत्पर है। नाटक का प्रारम्भ एक संवेदनशील बिन्दु से होता है जब गाँधी देशद्रोह के आरोप में स्वयं को गोडसे के साथ जेल में पाते हैं। गोडसे जिसने गाँधी की हत्या करने का प्रयास किया ।

नाटक के मनोवैज्ञानिक आवरण में यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि महात्मा गाँधी गोडसे को समझना चाहते थे ताकि यह जान पायें कि गोडसे की उनसे नफरत करने की वजह आख़िर क्या है और गोडसे की मनोदशा में निहित सूक्ष्म आन्तरिक द्वन्द्व कितने गहरे हैं। इसके लिए गाँधी संवाद का रास्ता अख्तियार करते हैं। इस नाटक में गाँधी के गोडसे के साथ संवाद लम्बे और गम्भीर होते हुए भी बोझिल प्रतीत नहीं होते। भाषा की सरलता उनके संवादों को पाठकों से गहनता से जोड़ती है। नाटक में कहीं शाब्दिक या वैचारिक हिंसा नहीं है। विचार की जिस महीन सत्यता पर यह नाटक लिखा गया है उसी का आभास और अनुभूति हर पल पाठकों को भी होती है।

असगर वजाहत इस नाटक द्वारा स्त्री-पुरुष के प्रेम सम्बन्धों पर गाँधीवादी नीति का आकलन भी करते हैं। वास्तव में देखा जाये तो नाटक का यह पक्ष उसका केन्द्रीय बिन्दु है जिसके इर्द-गिर्द अन्य तात्कालिक स्थितियों की आपबीती के घने जंगल में यह नाटक बिना किसी शोर के सही और गलत की पहचान से दूर दिखाई देता है।

वाणी प्रकाशन ग्रुप असगर वजाहत द्वारा लिखित काल्पनिक दृश्यों की परछाई से निकलते यथार्थवादी नाटक को पाठकों के समक्ष रखते हुए प्रसन्नता अनुभव कर रहा है।

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भारतीय साहित्य में वरिष्ठ कथाकार व सिद्धहस्त नाटककार असग़र वजाहत का नाम अपनी एक सशक्त पहचान रखता है। राजनीतिक और सामाजिक विद्रूपताओं को लक्षित करते हुए उन्होंने अपने लेखन में अखण्ड विचारधारा को ख़ौफनाक खण्डित शून्य में दर्शाया है। उन्होंने भारतीय साहित्य में अपने धारदार प्रश्नों द्वारा समय, समाज और व्यवस्था को विचार के स्तर पर चुनौती दी है। उनका एक अलग पाठक वर्ग है जो कलात्मक मूल्यों के साथ यथार्थ के मुद्दों के लिए चिन्तित ही नहीं बल्कि उनके साथ पूरी तन्मयता से बातचीत करने को तत्पर है। नाटक का प्रारम्भ एक संवेदनशील बिन्दु से होता है जब गाँधी देशद्रोह के आरोप में स्वयं को गोडसे के साथ जेल में पाते हैं। गोडसे जिसने गाँधी की हत्या करने का प्रयास किया ।

नाटक के मनोवैज्ञानिक आवरण में यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि महात्मा गाँधी गोडसे को समझना चाहते थे ताकि यह जान पायें कि गोडसे की उनसे नफरत करने की वजह आख़िर क्या है और गोडसे की मनोदशा में निहित सूक्ष्म आन्तरिक द्वन्द्व कितने गहरे हैं। इसके लिए गाँधी संवाद का रास्ता अख्तियार करते हैं। इस नाटक में गाँधी के गोडसे के साथ संवाद लम्बे और गम्भीर होते हुए भी बोझिल प्रतीत नहीं होते। भाषा की सरलता उनके संवादों को पाठकों से गहनता से जोड़ती है। नाटक में कहीं शाब्दिक या वैचारिक हिंसा नहीं है। विचार की जिस महीन सत्यता पर यह नाटक लिखा गया है उसी का आभास और अनुभूति हर पल पाठकों को भी होती है।

असगर वजाहत इस नाटक द्वारा स्त्री-पुरुष के प्रेम सम्बन्धों पर गाँधीवादी नीति का आकलन भी करते हैं। वास्तव में देखा जाये तो नाटक का यह पक्ष उसका केन्द्रीय बिन्दु है जिसके इर्द-गिर्द अन्य तात्कालिक स्थितियों की आपबीती के घने जंगल में यह नाटक बिना किसी शोर के सही और गलत की पहचान से दूर दिखाई देता है।

वाणी प्रकाशन ग्रुप असगर वजाहत द्वारा लिखित काल्पनिक दृश्यों की परछाई से निकलते यथार्थवादी नाटक को पाठकों के समक्ष रखते हुए प्रसन्नता अनुभव कर रहा है।

About Author

"असग़र वजाहत हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक असगर वजाहत के अब तक सात उपन्यास, छह नाटक, पाँच कथा संग्रह, एक नुक्कड़ नाटक संग्रह और एक आलोचनात्मक पुस्तक प्रकाशित हैं। उपन्यासों तथा नाटकों के अतिरिक्त उन्होंने महत्त्वपूर्ण यात्रा संस्मरण भी लिखे हैं। ईरान और अज़रबाइजान की यात्रा पर आधारित उनका यात्रा संस्मरण चलते तो अच्छा था चर्चा में रहा है। वर्ष 2007 में हिन्दी पत्रिका आउटलुक के एक सर्वेक्षण के अनुसार उन्हें हिन्दी के दस श्रेष्ठ लेखकों में शुमार किया गया था। उनकी कृतियों के अनुवाद अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन, इतालवी, रूसी, हंगेरियन, फ़ारसी आदि भाषाओं में हो चुके हैं। उन्होंने वी. वी. हिन्दी डॉट कॉम तथा 'हंस' जैसी पत्रिकाओं के लिए अतिथि सम्पादन किया है। उनके लेख हिन्दी के महत्त्वपूर्ण समाचारपत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं। श्रेष्ठ लेखन के अतिरिक्त उनकी गहरी रुचि चित्रकला तथा फ़ोटोग्राफ़ी में भी है। उनकी दो एकल प्रदर्शनियाँ वुदापैश्त, हंगरी और दिल्ली में हो चुकी हैं। उनके चित्र पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। असगर वजाहत लम्बे समय से फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ लिख रहे हैं। उन्होंने 1976 में मुज़फ्फर अली की फ़िल्म 'गमन', उसके बाद 'आगमन' तथा अन्य फ़िल्में लिखी हैं। आजकल वे विख्यात निर्देशक राजकुमार संतोषी के लिए पटकथा लिख रहे हैं जो उनके नाटक जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ पर आधारित है। वे पटकथा लेखन कार्यशालाएँ भी आयोजित करते रहते हैं। अन्य सम्मानों के अतिरिक्त असगर वजाहत को उनके उपन्यास कैसी आगी लगाई के लिए कथा यू.के. द्वारा हाउस ऑफ़ लाईस लन्दन में सम्मानित किया जा चुका है। असगर वजाहत, जामिया मिल्लिया इस्लामिया (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) नयी दिल्ली के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त वे बुदापश्त, हंगरी में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रह चुके हैं। उन्होंने ए. जे. मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर के कार्यकारी निदेशक के रूप में भी काम किया है।"

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