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Giddh

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
विजय तेंदुलकर, वसंत देव द्वारा अनुवादित
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
विजय तेंदुलकर, वसंत देव द्वारा अनुवादित
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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SKU 9789387409217 Category
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90

‘गिद्ध’ ऐसे अभिशप्त इनसानों की कहानी है जो अपनी गिद्ध मनोवृत्ति में आपाद्-मस्तक लिप्त हैं। या यों समझिए इनसानी लिबास पहने वे सब के सब शापभ्रष्ट गिद्ध हैं। गिद्ध-दृष्टि तो मरे हुए, चुके हुए शवों पर होती है, पर ये इनसानी गिद्ध जीवितों पर अपनी लोलुप दृष्टि लगाये इस क़दर अभिशापित हैं कि तमाम मानवीय संवेदनाएँ और रिश्ते उनके लिए शव बन चुके हैं और उनका झपट्टा एक-दूसरे पर जारी है। छल-कपट और अमानवीय दाँव-पेंचों में उसके परिवार के लोग आज की इस उपभोक्ता संस्कृति में असहज और असामान्य नहीं लगते। विजय तेंडुलकर मनुष्य और समाज की इन खोजों को जितनी तीव्रता से अनुभव करते हैं उतनी ही सहजता से उसे उकेरते भी हैं। ऐसे चरित्र भले ही क्षण-भर को असहज और असामान्य लगें, पर ये हमारे आसपास विद्यमान हैं और मंच पर वे खुलकर सामने प्रगट हो जाते हैं।

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Description

‘गिद्ध’ ऐसे अभिशप्त इनसानों की कहानी है जो अपनी गिद्ध मनोवृत्ति में आपाद्-मस्तक लिप्त हैं। या यों समझिए इनसानी लिबास पहने वे सब के सब शापभ्रष्ट गिद्ध हैं। गिद्ध-दृष्टि तो मरे हुए, चुके हुए शवों पर होती है, पर ये इनसानी गिद्ध जीवितों पर अपनी लोलुप दृष्टि लगाये इस क़दर अभिशापित हैं कि तमाम मानवीय संवेदनाएँ और रिश्ते उनके लिए शव बन चुके हैं और उनका झपट्टा एक-दूसरे पर जारी है। छल-कपट और अमानवीय दाँव-पेंचों में उसके परिवार के लोग आज की इस उपभोक्ता संस्कृति में असहज और असामान्य नहीं लगते। विजय तेंडुलकर मनुष्य और समाज की इन खोजों को जितनी तीव्रता से अनुभव करते हैं उतनी ही सहजता से उसे उकेरते भी हैं। ऐसे चरित्र भले ही क्षण-भर को असहज और असामान्य लगें, पर ये हमारे आसपास विद्यमान हैं और मंच पर वे खुलकर सामने प्रगट हो जाते हैं।

About Author

विजय तेंडुलकर वर्तमान भारतीय रंग-परिदृश्य में एक महत्त्वपूर्ण नाटककार के रूप में समादृत श्री तेंडुलकर मूलतः मराठी के साहित्यकार हैं जिनका जन्म 7 जनवरी, 1928 को हुआ। उन्होंने लगभग तीस नाटकों तथा दो दर्जन एकांकियों की रचना की है, जिनमें से अनेक आधुनिक भारतीय रंगमंच की। क्लासिक कृतियों के रूप में शुमार होते हैं। उनके नाटकों में प्रमुख हैं-शांतता! कोर्ट चालू आहे (1967), सखाराम बाइंडर (1972), कमला (1981), कन्यादान (1983)। श्री तेंडुलकर के नाटक घासीराम कोतवाल (1972) की मूल मराठी में और अनूदित रूप में देश और विदेश में छह हज़ार से ज़्यादा प्रस्तुतियाँ हो चुकी हैं। मराठी लोकशैली, संगीत तथा आधुनिक रंगमंचीय तकनीक से सम्पन्न यह नाटक दुनिया के सर्वाधिक मंचित होने वाले नाटकों में से एक का दर्जा पा चुका है। श्री तेंडलकर ने बच्चों के लिए भी ग्यारह नाटकों की रचना की है। उनकी कहानियों के चार संग्रह और सामाजिक आलोचना व साहित्यिक लेखों के पाँच संग्रह प्रकाशित हो। चुके हैं। इन्होंने दूसरी भाषाओं से मराठी में अनुवाद किये हैं, जिसके तहत नौ उपन्यास, दो जीवनियाँ और पाँच नाटक भी उनके कृतित्व में शामिल हैं। इसके अलावा बीस के करीब फ़िल्मों का लेखन। हिन्दी की निशान्त, मन्थन, आक्रोश, अर्धसत्य आदि। दूरदर्शन धारावाहिक स्वयंसिद्ध, प्रिय तेंडुलकर टॉक शो। सम्मान पुरस्कार : नेहरू फेलोशिप (1973-74), टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में अभ्यागत प्राध्यापक के रूप में (1979-1981), पद्म भूषण (1984), फ़िल्मफेयर से पुरस्कृत। 19 मई, 2008 को पुणे (महाराष्ट्र) में महाप्रस्थान।

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