Gaon Ke Naon sasurar Mor Naon Damaad

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
हबीब तनवीर
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
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हबीब तनवीर
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Hindi
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गाँव के नाँव ससुरार मोर नाँव दमाद –
छत्तीसगढ़ में शरद पूर्णिमा के दिन एक त्यौहार मनाया जाता है जिसे ‘छेर छेरा’ कहते हैं। इस त्यौहार के दिन नौजवान लड़के अनाज और सब्ज़ी लोगों से माँगकर जमा करते हैं और बाद में पूरा युवक समाज त्यौहार के मौके पर पिकनिक मनाता है। त्यौहार के दिन झंगलू और मंगलू गाँव के दो लड़के शान्ति और मान्ती के साथ छेड़छाड़ करते हैं। इसी बीच झंगलू को मान्ती से प्रेम हो जाता है। मान्ती का पिता इस निर्धन लड़के के बजाये एक बूढ़े मालदार सरपंच से मान्ती की शादी कर देता है। झंगलू अपने मित्रों के साथ लड़की की तलाश में निकल जाता है। लड़के देवार जाति के लोगों का वेश बदलकर सरपंच के गाँव पहुँच जाते हैं। उसे छेड़ते और तरह तरह से बेवकूफ़ बनाते हैं। इस समय गाँव में शंकर पार्वती की पूजा हो रही है जिसे ‘गौरी गौरा’ कहते हैं। इस संस्कार में मान्ती भी शामिल है। झंगलू इस दौरान किसी तरक़ीब से अपनी प्रेमिका को भगा ले जाता है। नाटक प्रेम की जीत के गीतों पर समाप्त होता है।

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Description

गाँव के नाँव ससुरार मोर नाँव दमाद –
छत्तीसगढ़ में शरद पूर्णिमा के दिन एक त्यौहार मनाया जाता है जिसे ‘छेर छेरा’ कहते हैं। इस त्यौहार के दिन नौजवान लड़के अनाज और सब्ज़ी लोगों से माँगकर जमा करते हैं और बाद में पूरा युवक समाज त्यौहार के मौके पर पिकनिक मनाता है। त्यौहार के दिन झंगलू और मंगलू गाँव के दो लड़के शान्ति और मान्ती के साथ छेड़छाड़ करते हैं। इसी बीच झंगलू को मान्ती से प्रेम हो जाता है। मान्ती का पिता इस निर्धन लड़के के बजाये एक बूढ़े मालदार सरपंच से मान्ती की शादी कर देता है। झंगलू अपने मित्रों के साथ लड़की की तलाश में निकल जाता है। लड़के देवार जाति के लोगों का वेश बदलकर सरपंच के गाँव पहुँच जाते हैं। उसे छेड़ते और तरह तरह से बेवकूफ़ बनाते हैं। इस समय गाँव में शंकर पार्वती की पूजा हो रही है जिसे ‘गौरी गौरा’ कहते हैं। इस संस्कार में मान्ती भी शामिल है। झंगलू इस दौरान किसी तरक़ीब से अपनी प्रेमिका को भगा ले जाता है। नाटक प्रेम की जीत के गीतों पर समाप्त होता है।

About Author

हबीब तनवीर - 1944 में नागपुर विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद हबीब तनवीर ने 1955-56 में ब्रिटेन की 'राडा' ('रॉयल एकेदेमी ऑफ़ ड्रामाटिक आर्ट्स) में अभिनय तथा एक वर्ष बाद वहीं के 'ब्रिस्टल ओल्ड विक थिएटर स्कूल' से नाट्य-निर्मिति का अध्ययन किया। 1954 में वे दिल्ली में पहले पेशेवर नाट्यमंच की स्थापना कर चुके थे और 1959 में उन्होंने 'नया थिएटर' के नाम से एक अन्य नाट्यमंच की शुरूआत की। नाटककार, कवि, पत्रकार, नाट्य-निदेशक मंच-अभिनेता होने के साथ-साथ वे कई फ़िल्मों और टी.वी. धारावाहिकों में काम कर चुके हैं। हबीब तनवीर को ढेरों पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, उन्हें पद्मश्री, संगीत नाटक अकादेमी पुरस्कार, शिखर सम्मान, विश्वविद्यालय से मानद डी. लिट्., कालिदास सम्मान, उर्दू अकादेमी नाट्य पुरस्कार, साहित्य कला परिषद नाट्य पुरस्कार आदि प्रदान किये गये हैं। वे रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर में अतिथि प्राध्यापक संगीत नाटक अकादेमी के फ़ेलो साहित्य अकादेमी को कार्यकारिणी के सदस्य तथा नेहरू फ़ेलोशिप के प्राप्तकर्ता भी रहे हैं। उनके विख्यात नाटकों में 'आगरा बाजार', 'चरन दास चोर', 'देख रहे हैं नैन' और 'हिरमा की अमर कहानी' सम्मिालित हैं। उन्होंने 'बसंत ऋतु का सपना' के अलावा 'शाजापुर की शांति बाई', 'मिट्टी की गाड़ो' तथा 'मुद्राराक्षस' शीर्षकों से देशी-विदेशी नाटकों का आधुनिक रूपान्तर किया है। हबीब तनवीर के नाटकों को अनेक पुरस्कार मिले हैं जिनमें 1982 के एदिनबरा अन्तर्राष्ट्रीय नाट्म समारोह का 'फ्रिज फ़स्टर्स' पुरस्कार भी शामिल है।

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