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Gandevata

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
ताराशंकर बन्द्योपाध्याय, अनुवाद हंसकुमार तिवारी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
ताराशंकर बन्द्योपाध्याय, अनुवाद हंसकुमार तिवारी
Language:
Hindi
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Paperback

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SKU 9789355189370 Category
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580

गणदेवता –

कालजयी बांग्ला उपन्यासकार ताराशंकर बन्द्योपाध्याय का उपन्यास गणदेवता संसार के महान उपन्यासों में गणनीय है। इसे भारतीय भाषाओं के लगभग एक सौ प्रतिष्ठित समीक्षक साहित्यकारों के सहयोग से सन् 1925 से 1959 के बीच प्रकाशित समग्र भारतीय साहित्य में ‘सर्वश्रेष्ठ’ के रूप में चुना गया और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

गणदेवता नये युग के चरण-निक्षेपकाल का गद्यात्मक महाकाव्य है । हृदयग्राही कथा का विस्तार, अविस्मरणीय कथा-शैली के माध्यम से, बंगाल के जिस ग्रामीण अंचल से सम्बद्ध है उसकी गन्ध में समूचे भारत की धरती की महक व्याप्त है। उपन्यास का एक-एक पात्र व्यक्तिगत रूप से अपने सहज जीवन की हिलोर पर तैरता हुआ उठता है और गिरता है; किन्तु सामूहिक रूप से वे सब एक विशाल सागर के उद्दाम ज्वार की भाँति हैं, जो अपने आलोड़न से समूचे युग को उद्वेलित कर देते हैं। कुंठित समाज के नागपाश से मुक्ति पाने के लिए संघर्षरत नर और नारियाँ; नये युग की आकस्मिक चौंध से पदस्खलित, किन्तु महाकाल के नये आह्वान-गीत की बीन पर मन्त्रमुग्ध; भूख और वासना, विध्वंस और हाहाकार के बीच निर्मल संकल्प के साथ बढ़ते हुए गणदेवता के अडिग चरण, एक अबूझ लक्ष्य की खोज में…

जीवन-सत्य के अनुसन्धान की जीवन्त गाथा गणदेवता का प्रस्तुत यह नवीनतम संस्करण बिल्कुल नये रूप में है।

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Description

गणदेवता –

कालजयी बांग्ला उपन्यासकार ताराशंकर बन्द्योपाध्याय का उपन्यास गणदेवता संसार के महान उपन्यासों में गणनीय है। इसे भारतीय भाषाओं के लगभग एक सौ प्रतिष्ठित समीक्षक साहित्यकारों के सहयोग से सन् 1925 से 1959 के बीच प्रकाशित समग्र भारतीय साहित्य में ‘सर्वश्रेष्ठ’ के रूप में चुना गया और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

गणदेवता नये युग के चरण-निक्षेपकाल का गद्यात्मक महाकाव्य है । हृदयग्राही कथा का विस्तार, अविस्मरणीय कथा-शैली के माध्यम से, बंगाल के जिस ग्रामीण अंचल से सम्बद्ध है उसकी गन्ध में समूचे भारत की धरती की महक व्याप्त है। उपन्यास का एक-एक पात्र व्यक्तिगत रूप से अपने सहज जीवन की हिलोर पर तैरता हुआ उठता है और गिरता है; किन्तु सामूहिक रूप से वे सब एक विशाल सागर के उद्दाम ज्वार की भाँति हैं, जो अपने आलोड़न से समूचे युग को उद्वेलित कर देते हैं। कुंठित समाज के नागपाश से मुक्ति पाने के लिए संघर्षरत नर और नारियाँ; नये युग की आकस्मिक चौंध से पदस्खलित, किन्तु महाकाल के नये आह्वान-गीत की बीन पर मन्त्रमुग्ध; भूख और वासना, विध्वंस और हाहाकार के बीच निर्मल संकल्प के साथ बढ़ते हुए गणदेवता के अडिग चरण, एक अबूझ लक्ष्य की खोज में…

जीवन-सत्य के अनुसन्धान की जीवन्त गाथा गणदेवता का प्रस्तुत यह नवीनतम संस्करण बिल्कुल नये रूप में है।

About Author

ताराशंकर बन्द्योपाध्याय - जन्म : 25 जुलाई, 1898; लाभपुर, जिला वीरभूम (पश्चिम बंगाल) सेवाएँ : अध्यक्ष, साहित्य विभाग, प्रवासी बंग साहित्य सम्मेलन, कानपुर, 1944 तथा बम्बई 1947; अध्यक्ष, अ.भा. लेखक सम्मेलन मद्रास, 1959 तथा नागपुर 1966; नामित सदस्य, पश्चिम बंग विधान सभा, 1952 तथा राज्यसभा 1959; प्रतिनिधि रूप में कई बार विदेश की साहित्यिक यात्राएँ। कृतियाँ : कुल मिलाकर 109 रचनाएँ, जिनमें विधाक्रम में 50 उपन्यास, 41 कथा-संग्रह, 9 नाटक, 4 आत्मजीवनी, 2 निबन्ध संग्रह, 1 कविता-संग्रह, 2 भ्रमणवृत्तान्त हैं। सम्मान : विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं- शरत् स्मृति पुरस्कार, कलकत्ता विश्वविद्यालय (1947); रवीन्द्र पुरस्कार (1955); साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1966); सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार-ज्ञानपीठ पुरस्कार (1966)। निधन : 14 सितम्बर, 1971

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