FAIYAZ KHAN JINKE MAUSIYA THE

Publisher:
Setu Prakashan
| Author:
MITHLESH SHARAN CHAUBEY
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Setu Prakashan
Author:
MITHLESH SHARAN CHAUBEY
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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144

हम जिस समय में हैं उसमें कवियों की कमी नहीं है। उनमें से कइयों से अपनापा भी है और उन्हें बन्धु के रूप में देखता पाता हूँ। वे हैं और उनके साथ बन्धुत्व का नाता है तो कविता का परिदृश्य सघन-समृद्ध, सक्रिय- सजग लगता है। कई तरह की कविता लिखने वाले ये कविबन्धु एक तरह की मोहक बहुलता रचते हैं। यह बहुलता कविता की, हमारे कठिन और कई अर्थों में कविता- विमुख समय में, जिजीविषा उद्दीप्त करती रही है। ऐसे परिवेश में कवि होना कुछ सार्थक लगता है जिनमें इतने सारे कविबन्धु हैं और जो उम्मीद का भूगोल विस्तृत करते रहते हैं। अगर इस स्थिति में स्वयं अपने अब दिवंगत होते बन्धु को कविबन्धु के रूप में अब तक नहीं पहचाना तो यह खेद और क्लेश की बात है। युवा कवि मिथलेश शरण चौबे ने जब अनिल की कविताएँ एकत्र कीं और मैंने उन्हें एक साथ पढ़ा तो मैं चकित हुआ। पहला अचरज तो यह कि ये कविताएँ किसी अनभ्यस्त व्यक्ति की कच्ची रचनाएँ नहीं हैं: उनमें परिपक्वता और कौशल दोनों हैं।

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हम जिस समय में हैं उसमें कवियों की कमी नहीं है। उनमें से कइयों से अपनापा भी है और उन्हें बन्धु के रूप में देखता पाता हूँ। वे हैं और उनके साथ बन्धुत्व का नाता है तो कविता का परिदृश्य सघन-समृद्ध, सक्रिय- सजग लगता है। कई तरह की कविता लिखने वाले ये कविबन्धु एक तरह की मोहक बहुलता रचते हैं। यह बहुलता कविता की, हमारे कठिन और कई अर्थों में कविता- विमुख समय में, जिजीविषा उद्दीप्त करती रही है। ऐसे परिवेश में कवि होना कुछ सार्थक लगता है जिनमें इतने सारे कविबन्धु हैं और जो उम्मीद का भूगोल विस्तृत करते रहते हैं। अगर इस स्थिति में स्वयं अपने अब दिवंगत होते बन्धु को कविबन्धु के रूप में अब तक नहीं पहचाना तो यह खेद और क्लेश की बात है। युवा कवि मिथलेश शरण चौबे ने जब अनिल की कविताएँ एकत्र कीं और मैंने उन्हें एक साथ पढ़ा तो मैं चकित हुआ। पहला अचरज तो यह कि ये कविताएँ किसी अनभ्यस्त व्यक्ति की कच्ची रचनाएँ नहीं हैं: उनमें परिपक्वता और कौशल दोनों हैं।

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