Ek Chuhe Ki Maut (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Badiuzzaman
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
Author:
Badiuzzaman
Language:
Hindi
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Paperback

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एक लम्बा-चौड़ा चूहाख़ाना और अनगिनत चूहेमार। छोटे, बड़े और फिर और बड़े। ठौर-ठौर चूहेमार प्रस्ताव, चूहेमार योजनाएँ और चूहेमार कार्यक्रम। जगह-जगह ज़िन्दा-मुर्दा चूहों का अम्बार, हाहाकार। कटे-फटे अंगों और सड़ रही लाशों की असह्य दुर्गन्ध। फिर भी अबाध चूहेमारी— प्रतिभा, योग्यता और कार्यक्षमता का एकमात्र प्रमाण, जन-कल्याण का एकमात्र रास्ता। मजबूर हैं एक-दूसरे के मातहत चूहे मारते चूहेमार; अभिशप्त, भयभीत और नियतिबद्ध हैं चूहेमारी के लिए; अन्यथा उन्हें ख़ुद चूहों में बदल जाना होगा— मर जाना होगा एक चूहे की मौत!
वस्तुतः सुपरिचित हिन्दी कथाकार बदीउज़्ज़माँ का यह बहुचर्चित उपन्यास फ़ंतासी के माध्यम से एक ऐसी समाज-व्यवस्था का चित्रण करता है जो पूरी तरह मानव-विरोधी है और जिसमें मानवीय गरिमा तथा मानव-अस्तित्व दोनों मूल्यहीन हो चुके हैं। फ़ंतासी के बावजूद लेखक ने स्थितियों का जैसा वास्तविक चित्रण किया है उससे हम अपने समय, समाज और व्यवस्था-तंत्र को साफ़ तौर पर देख और महसूस कर सकते हैं।

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Description

एक लम्बा-चौड़ा चूहाख़ाना और अनगिनत चूहेमार। छोटे, बड़े और फिर और बड़े। ठौर-ठौर चूहेमार प्रस्ताव, चूहेमार योजनाएँ और चूहेमार कार्यक्रम। जगह-जगह ज़िन्दा-मुर्दा चूहों का अम्बार, हाहाकार। कटे-फटे अंगों और सड़ रही लाशों की असह्य दुर्गन्ध। फिर भी अबाध चूहेमारी— प्रतिभा, योग्यता और कार्यक्षमता का एकमात्र प्रमाण, जन-कल्याण का एकमात्र रास्ता। मजबूर हैं एक-दूसरे के मातहत चूहे मारते चूहेमार; अभिशप्त, भयभीत और नियतिबद्ध हैं चूहेमारी के लिए; अन्यथा उन्हें ख़ुद चूहों में बदल जाना होगा— मर जाना होगा एक चूहे की मौत!
वस्तुतः सुपरिचित हिन्दी कथाकार बदीउज़्ज़माँ का यह बहुचर्चित उपन्यास फ़ंतासी के माध्यम से एक ऐसी समाज-व्यवस्था का चित्रण करता है जो पूरी तरह मानव-विरोधी है और जिसमें मानवीय गरिमा तथा मानव-अस्तित्व दोनों मूल्यहीन हो चुके हैं। फ़ंतासी के बावजूद लेखक ने स्थितियों का जैसा वास्तविक चित्रण किया है उससे हम अपने समय, समाज और व्यवस्था-तंत्र को साफ़ तौर पर देख और महसूस कर सकते हैं।

About Author

बदीउज़्ज़माँ

सय्यद मोहम्मद ख़्वाजा बदीउज़्ज़माँ का जन्म 30 सितम्बर, 1928 को बिहार के गया शहर में हुआ। उन्होंने हिन्दी और उर्दू में एम.ए. किया और ओडिशा के भद्रक कॉलेज में उर्दू के प्राध्यापक रहे। फिर 1956 में दिल्ली आए और भारत सरकार के राजभाषा विभाग से जुड़ गए। प्रगतिशील लेखक आन्दोलन से जुड़कर उन्होंने उर्दू और फिर हिन्दी साहित्य में क़दम रखा। विभाजन की पृष्ठभूमि में लिखा गया उनका उपन्यास ‘छाको की वापसी’ और प्रतीकात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास ‘एक चूहे की मौत’ हिन्दी साहित्य की कालजयी कृतियाँ हैं। ‘अपुरुष’ और ‘छठा तंत्र’ उनके अन्य उल्लेखनीय उपन्यास हैं। एक विशाल कैनवस पर लिखा गया उपन्यास ‘सभापर्व’ उनके गुज़र जाने के बाद सामने आया। ‘अनित्य’, ‘पुल टूटते हुए’ और ‘चौथा ब्राह्मण’ उनके कहानी-संग्रह हैं। बदीउज़्ज़माँ उर्दू, हिन्दी, अंग्रेज़ी और ओड़िया भाषाओं के विद्वान थे और इन भाषाओं के श्रेष्ठ अनुवादक भी। वे उस पीढ़ी के नुमाइन्दे थे जिसने मुल्क, ख़ानदान और रिश्तों को टूटते देखा। उन्होंने अपनी क़लम के माध्यम से इस दुख को ज़ुबान दी। पूरा वक़्त साहित्य को दे सकें इसकी फ़ुर्सत ज़िन्दगी ने नहीं दी। उन्होंने 16 मई, 1986 को इस दुनिया को अलविदा कहा।

वे अक्सर जिगर मुरादाबादी का यह शे’र गुनगुनाया करते थे—

जान कर मिनजुमला-ए-ख़ासाने-मयख़ाना मुझे,

मुद्दतों रोया करेंगे जामो-पैमाना मुझे।

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