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Ek Adhoori Prem Kahani Ka Dukkhant

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
कैलाश मंडलेकर
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
कैलाश मंडलेकर
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9788126320615 Category
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Page Extent:
120

एक अधूरी प्रेम कहानी का दुःखान्त –
व्यंग्य का मूलतः विसंगति और विडम्बना के गहरे बोध से जन्म होता है। व्यंग्यकार अपने आसपास की घटनाओं पर पैनी निगाह रखता है और उनका सारांश मन में संचित करता रहता है। जब किसी घटना का सूत्र किसी व्यापक जीवनोद्देश्य से जुड़ता है तब रचना में व्यंग्य का प्रस्थान बनता है।
‘एक अधूरी प्रेम कहानी का दुःखान्त’ में कैलाश मंडलेकर के व्यंग्य-आलेख किसी-न-किसी परिवेशगत विचित्रता को व्यक्त करते हैं। उनके व्यंग्य ‘हिन्दी व्यंग्य परम्परा’ से लाभ उठाते हुए अपनी ख़ासियत विकसित करते हैं। कुछ विषय इस क्षेत्र में सदाबहार माने जाते हैं जैसे—साहित्य, राजनीति, ससुराल, प्रेम आदि। इन सदाबहार विषयों पर लिखते हुए कैलाश मंडलेकर अपने अनुभवों का छौंक भी लगाते चलते हैं। उदाहरणार्थ, ‘वरिष्ठ साहित्यकार : एक लघु शोध’ में उनके ये वाक्य : ‘वरिष्ठ साहित्यकार का एकान्त बहुत भयावह होता है। बात-बात पर उपदेश देने वाली आदत के कारण लोग प्रायः उससे बिदकते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार अमूमन अकेला ही रहता है तथा घरेलू क़िस्म के अकेलेपन को पत्नी से लड़ते हुए काटता है।’
प्रस्तुत व्यंग्य-संग्रह अपनी चुटीली भाषा और आत्मीय शैली के कारण पाठकों की सहृदयता प्राप्त करेगा, ऐसा विश्वास है।

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Description

एक अधूरी प्रेम कहानी का दुःखान्त –
व्यंग्य का मूलतः विसंगति और विडम्बना के गहरे बोध से जन्म होता है। व्यंग्यकार अपने आसपास की घटनाओं पर पैनी निगाह रखता है और उनका सारांश मन में संचित करता रहता है। जब किसी घटना का सूत्र किसी व्यापक जीवनोद्देश्य से जुड़ता है तब रचना में व्यंग्य का प्रस्थान बनता है।
‘एक अधूरी प्रेम कहानी का दुःखान्त’ में कैलाश मंडलेकर के व्यंग्य-आलेख किसी-न-किसी परिवेशगत विचित्रता को व्यक्त करते हैं। उनके व्यंग्य ‘हिन्दी व्यंग्य परम्परा’ से लाभ उठाते हुए अपनी ख़ासियत विकसित करते हैं। कुछ विषय इस क्षेत्र में सदाबहार माने जाते हैं जैसे—साहित्य, राजनीति, ससुराल, प्रेम आदि। इन सदाबहार विषयों पर लिखते हुए कैलाश मंडलेकर अपने अनुभवों का छौंक भी लगाते चलते हैं। उदाहरणार्थ, ‘वरिष्ठ साहित्यकार : एक लघु शोध’ में उनके ये वाक्य : ‘वरिष्ठ साहित्यकार का एकान्त बहुत भयावह होता है। बात-बात पर उपदेश देने वाली आदत के कारण लोग प्रायः उससे बिदकते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार अमूमन अकेला ही रहता है तथा घरेलू क़िस्म के अकेलेपन को पत्नी से लड़ते हुए काटता है।’
प्रस्तुत व्यंग्य-संग्रह अपनी चुटीली भाषा और आत्मीय शैली के कारण पाठकों की सहृदयता प्राप्त करेगा, ऐसा विश्वास है।

About Author

कैलाश मंडलेकर - जन्म: 9 सितम्बर, 1956, हरदा (म.प्र.)। शिक्षा: सागर विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर। लेखन-प्रकाशन: धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, वागर्थ, हंस, कथादेश, वसुधा, नया ज्ञानोदय, अहा ज़िन्दगी, साक्षात्कार आदि पत्रिकाओं में विगत तीस वर्षों से सतत व्यंग्य व समीक्षा लेखन। आकाशवाणी इन्दौर के पत्रिका कार्यक्रम में वर्षों व्यंग्य पाठ किया। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों पर केन्द्रित डाक्यूमेंट्री फ़िल्म में भागीदारी एवं पं. माखनलाल चतुर्वेदी के रचनात्मक अवदान पर शोधपरक आलेख-प्रस्तुति। व्यंग्य की दो किताबें प्रकाशित– 'खुली सड़क पर' तथा 'सर्किट हाउस पर लटका चाँद'। पुरस्कार सम्मान: अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन उज्जैन द्वारा (प्रथम) 'रामेन्द्र द्विवेदी व्यंग्य पुरस्कार', अभिनव कला परिषद भोपाल का 'शब्द शिल्पी सम्मान', भारत संचार निगम का 'सारथी पुरस्कार'।

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