Durdamya
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दुर्दम्य –
‘स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ के उद्घोषक, आधुनिक भारत के निर्माता बाल गंगाधर तिलक पर लिखा गया असाधारण उपन्यास है ‘दुर्दम्य’ ।
तिलक को भारतीय असन्तोष का जनक माना जाता है। एक ओर तो उनके तेजस्वी व्यक्तित्व के प्रभा-मण्डल से अंग्रेज़ तक चकाचौंध हो गये थे, दूसरी ओर स्वयं भारतीय उनकी विलक्षण विचारधारा और असामान्य राजनीतिक भूमिका के स्वरूप को लेकर एकमत नहीं हो पाये।
क्या वे सामाजिक रूप से प्रतिगामी थे? क्या वे मात्र जनसामान्य के प्रतिनिधि थे? क्या उनकी राजनीति क़ानून से परिसीमित थी? उन्हें सनातनी कहा जाय या सुधारवादी? वह दृढ़ निश्चयी थे या मात्र झगड़ालू? गाँधीजी से उनके आपसी सम्बन्ध किस प्रकार के थे? इन सवालों का मराठी के अग्रणी साहित्यकार गंगाधर गाडगिल ने पूरी तैयारी और सावधानी के साथ सामना किया है। इस उपन्यास के माध्यम से ऐसी अनेक गुत्थियाँ सुलझाते हुए तिलक जी को उन्होंने समग्र रूप से चित्रित किया है।
चार वर्षों के अथक परिश्रम से लिखे इस खोजपूर्ण बृहत् उपन्यास में तथ्यों की प्रामाणिकता एवं कल्पना के रोमांच का अद्भुत संयोग है।
तिलक जी के फौलादी, दुर्दम्य, तूफ़ानी और बहुआयामी व्यक्तित्व से साक्षात्कार कराने वाला यह उपन्यास मराठी में तो अपार लोकप्रियता प्राप्त कर ही चुका है, हिन्दी में भी इसका भरपूर स्वागत हुआ है। प्रस्तुत है इस महान कृति का अद्यतन संस्करण।
दुर्दम्य –
‘स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’ के उद्घोषक, आधुनिक भारत के निर्माता बाल गंगाधर तिलक पर लिखा गया असाधारण उपन्यास है ‘दुर्दम्य’ ।
तिलक को भारतीय असन्तोष का जनक माना जाता है। एक ओर तो उनके तेजस्वी व्यक्तित्व के प्रभा-मण्डल से अंग्रेज़ तक चकाचौंध हो गये थे, दूसरी ओर स्वयं भारतीय उनकी विलक्षण विचारधारा और असामान्य राजनीतिक भूमिका के स्वरूप को लेकर एकमत नहीं हो पाये।
क्या वे सामाजिक रूप से प्रतिगामी थे? क्या वे मात्र जनसामान्य के प्रतिनिधि थे? क्या उनकी राजनीति क़ानून से परिसीमित थी? उन्हें सनातनी कहा जाय या सुधारवादी? वह दृढ़ निश्चयी थे या मात्र झगड़ालू? गाँधीजी से उनके आपसी सम्बन्ध किस प्रकार के थे? इन सवालों का मराठी के अग्रणी साहित्यकार गंगाधर गाडगिल ने पूरी तैयारी और सावधानी के साथ सामना किया है। इस उपन्यास के माध्यम से ऐसी अनेक गुत्थियाँ सुलझाते हुए तिलक जी को उन्होंने समग्र रूप से चित्रित किया है।
चार वर्षों के अथक परिश्रम से लिखे इस खोजपूर्ण बृहत् उपन्यास में तथ्यों की प्रामाणिकता एवं कल्पना के रोमांच का अद्भुत संयोग है।
तिलक जी के फौलादी, दुर्दम्य, तूफ़ानी और बहुआयामी व्यक्तित्व से साक्षात्कार कराने वाला यह उपन्यास मराठी में तो अपार लोकप्रियता प्राप्त कर ही चुका है, हिन्दी में भी इसका भरपूर स्वागत हुआ है। प्रस्तुत है इस महान कृति का अद्यतन संस्करण।
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