Dr. Bhimrao Ambedkar
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डॉ. भीमराव अम्बेडकर –
‘यदि व्यक्ति का प्रेम तथा घृणा प्रबल नहीं है, तो वह आशा नहीं कर सकता कि वह अपने युग पर कोई प्रभाव छोड़ सकेगा और ऐसी सहायता प्रदान कर सकेगा, जो महान सिद्धांतों तथा संघर्ष की अपेक्षा लक्ष्यों के लिए उचित हो। मैं अन्याय, अत्याचार, आडंबर तथा अनर्थ से घृणा करता हूँ और मेरी घृणा उन सब लोगों के प्रति है, जो इन्हें अपनाते हैं। वह दोषी हैं। मैं अपने आलोचकों को यह बताना चाहता हूँ कि मैं अपने इन भावों को वास्तविक बल व शक्ति मानता हूँ। वे केवल उस प्रेम की अभिव्यक्ति हैं, जो मैं उन लक्ष्यों व उद्देश्यों के लिए प्रकट करता हूँ, जिनके प्रति मेरा विश्वास है।’
– डॉ. भीमराव अम्बेडकर
܀܀܀
‘आज के अर्थ में मैं जात-पात को नहीं मानता। यह समाज का फालतू अंग है और तरक्की के रास्ते में रूकावट जैसा है। इसी तरह आदमी आदमी के बीच ऊँच-नीच का भेद भी मैं नहीं मानता। हम सब पूरी तरह बराबर हैं… कोई भी मनुष्य अपने को दूसरे से ऊँचा मानता है, तो वह ईश्वर और मनुष्य दोनों के सामने पाप करता है।
‘आज कल हिन्दू धर्म में जो देखने में आती है, वह उसका एक अमिट कलंक है। मैं यह मानने से इनकार करता हूँ कि वह हमारे समाज में बहुत पहले से चली आयी है। मेरा खयाल है कि अस्पृश्यता की यह घृणित भावना हम लोगों में तब आयी जब हम अपने पतन की चरम सीमा पर रहे होंगे। मैं मानता हूँ कि यह एक भयंकर अभिशाप है।’
– महात्मा गाँधी
डॉ. भीमराव अम्बेडकर –
‘यदि व्यक्ति का प्रेम तथा घृणा प्रबल नहीं है, तो वह आशा नहीं कर सकता कि वह अपने युग पर कोई प्रभाव छोड़ सकेगा और ऐसी सहायता प्रदान कर सकेगा, जो महान सिद्धांतों तथा संघर्ष की अपेक्षा लक्ष्यों के लिए उचित हो। मैं अन्याय, अत्याचार, आडंबर तथा अनर्थ से घृणा करता हूँ और मेरी घृणा उन सब लोगों के प्रति है, जो इन्हें अपनाते हैं। वह दोषी हैं। मैं अपने आलोचकों को यह बताना चाहता हूँ कि मैं अपने इन भावों को वास्तविक बल व शक्ति मानता हूँ। वे केवल उस प्रेम की अभिव्यक्ति हैं, जो मैं उन लक्ष्यों व उद्देश्यों के लिए प्रकट करता हूँ, जिनके प्रति मेरा विश्वास है।’
– डॉ. भीमराव अम्बेडकर
܀܀܀
‘आज के अर्थ में मैं जात-पात को नहीं मानता। यह समाज का फालतू अंग है और तरक्की के रास्ते में रूकावट जैसा है। इसी तरह आदमी आदमी के बीच ऊँच-नीच का भेद भी मैं नहीं मानता। हम सब पूरी तरह बराबर हैं… कोई भी मनुष्य अपने को दूसरे से ऊँचा मानता है, तो वह ईश्वर और मनुष्य दोनों के सामने पाप करता है।
‘आज कल हिन्दू धर्म में जो देखने में आती है, वह उसका एक अमिट कलंक है। मैं यह मानने से इनकार करता हूँ कि वह हमारे समाज में बहुत पहले से चली आयी है। मेरा खयाल है कि अस्पृश्यता की यह घृणित भावना हम लोगों में तब आयी जब हम अपने पतन की चरम सीमा पर रहे होंगे। मैं मानता हूँ कि यह एक भयंकर अभिशाप है।’
– महात्मा गाँधी
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