Dilip Kumar: Ahadnama-e-Mohabbat

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
सईद अहमद और मिर्ज़ा ए॰ बी बेग द्वारा अनुवादित
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
सईद अहमद और मिर्ज़ा ए॰ बी बेग द्वारा अनुवादित
Language:
Hindi
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Hardback

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280

सईद अहमद ने दिलीप कुमार की ख़िदमत में अपना प्रेम प्रस्तुत करने का यह दिलचस्प अन्दाज़ अपनाया है कि उन्होंने उनकी कई फिल्मों को ‘सिल्वर स्क्रीन’ की बजाय कागज़ों पर उतारा, जिनमें | दिलीप कुमार ने अपनी आश्चर्यचकित कर देने वाली अदाकारी के जौहर दिखाये हैं। इस पुस्तक में उन संवादों और गीतों के वे शब्द तक मौजूद हैं जिनमें दिलीप कुमार ने अपने सर्वश्रेष्ठ होने का खूबसूरत इज़हार किया है। हर पटकथा कुछ ऐसे सलीके से पेश की गयी है कि वह साहित्यिक धरोहर कहलाने की हकदार हैं। कहानी पर गम्भीरता से समीक्षा की गयी है। और यूँ दिलीप कुमार की अदाकारी के अलावा फिल्म के निदेशक, कहानीकार व संवाद लेखन को लेखक ने खुलकर सराहा है। मेरी राय में फिल्म के किसी अदाकार बल्कि खुद फिल्म के फन की इतनी मालूमात बढ़ाने वाली और गहरी समीक्षा इससे पहले नहीं हुई। सईद अहमद की समीक्षा रचनात्मक फन के करीब जा पहुँची है। फिल्मी शौक रखने वाला इनसान दिलीप कुमार की भरपूर अदाकारी और जनता के प्रति उनसे प्यार को महसूस करता है कि यह शख़्स तो अपनी जिन्दगी ही में लिजेण्ड बन चुका है मगर इस व्यक्तित्व के अलावा उसके साथ जुड़ी बातों को भी बराबर की अहमियत देकर सईद | अहमद ने हक़ीक़त और इन्साफ की एक मिसाल कायम कर दी है।

अहमद नदीम क़ासमी

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Description

सईद अहमद ने दिलीप कुमार की ख़िदमत में अपना प्रेम प्रस्तुत करने का यह दिलचस्प अन्दाज़ अपनाया है कि उन्होंने उनकी कई फिल्मों को ‘सिल्वर स्क्रीन’ की बजाय कागज़ों पर उतारा, जिनमें | दिलीप कुमार ने अपनी आश्चर्यचकित कर देने वाली अदाकारी के जौहर दिखाये हैं। इस पुस्तक में उन संवादों और गीतों के वे शब्द तक मौजूद हैं जिनमें दिलीप कुमार ने अपने सर्वश्रेष्ठ होने का खूबसूरत इज़हार किया है। हर पटकथा कुछ ऐसे सलीके से पेश की गयी है कि वह साहित्यिक धरोहर कहलाने की हकदार हैं। कहानी पर गम्भीरता से समीक्षा की गयी है। और यूँ दिलीप कुमार की अदाकारी के अलावा फिल्म के निदेशक, कहानीकार व संवाद लेखन को लेखक ने खुलकर सराहा है। मेरी राय में फिल्म के किसी अदाकार बल्कि खुद फिल्म के फन की इतनी मालूमात बढ़ाने वाली और गहरी समीक्षा इससे पहले नहीं हुई। सईद अहमद की समीक्षा रचनात्मक फन के करीब जा पहुँची है। फिल्मी शौक रखने वाला इनसान दिलीप कुमार की भरपूर अदाकारी और जनता के प्रति उनसे प्यार को महसूस करता है कि यह शख़्स तो अपनी जिन्दगी ही में लिजेण्ड बन चुका है मगर इस व्यक्तित्व के अलावा उसके साथ जुड़ी बातों को भी बराबर की अहमियत देकर सईद | अहमद ने हक़ीक़त और इन्साफ की एक मिसाल कायम कर दी है।

अहमद नदीम क़ासमी

About Author

सईद अहमद सईद अहमद पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार, लेखक हैं। आपके कॉलम पाकिस्तान के अखबारों में निरन्तर चर्चा में रहते हैं। इनके कई टेलीविज़न ड्रामे बहुत मक़बूल हुए जिनमें 'राख', 'चमक', 'शिनाख्त ' और 'आठ कनाल की जन्नत' हैं, लाहौर में इनके स्कूल के आस-पास तीन सिनेमाघर थे, जिनमें हिन्दुस्तानी फिल्में ‘अन्दाज़', 'बरसात' और 'आन' साल भर चलती रही थीं। सईद अहमद ने सिनेमाघर को अपना स्कूल बना लिया और फिल्म 'दाग' उन्होंने तीस बार देखी। 'देवदास' का दिलीप कुमार उनके दिमाग पर इस तरह छा गया कि जिस तरह देवदास के दिमाग़ पर पार्वती छा जाती है । विद्यार्थी जीवन के दौरान मैक्सिम गोर्की की फिल्म 'माँ' देखते हुए सईद अहमद ने लेखक बनने का निर्णय लिया और वे आज तक अपने निर्णय पर क़ायम हैं । सईद अहमद के कालम हों या नाटक वह राजनितिक विषयों (विशेष रूप से पाकिस्तान) में प्रगतिशील विचारों के लिए चर्चित होते हैं। यह पुस्तक 'अहदनामा-ए-मोहब्बत' पाकिस्तान में इस कदर पसन्द की गयी कि जैसे भारत की साठ बरस की फिल्मी तारीख की दास्तान है।

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