Dharm Aur Vishvadrishti (PB)
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यह किताब ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ (17 सितम्बर, 1879—24 दिसम्बर, 1973) के दार्शनिक व्यक्तित्व से परिचित कराती है। धर्म, ईश्वर और मानव समाज का भविष्य उनके दार्शनिक चिन्तन का केन्द्रीय पहलू रहा है। उन्होंने मानव समाज के सन्दर्भ में धर्म और ईश्वर की भूमिका पर गहन चिन्तन-मनन किया है। इस चिन्तन-मनन के निष्कर्षों को इस किताब के विविध लेखों में प्रस्तुत किया गया है। ये लेख पेरियार के दार्शनिक व्यक्तित्व के विविध आयामों को पाठकों के सामने रखते हैं। इनको पढ़ते हुए कोई भी सहज ही समझ सकता है कि पेरियार जैसे दार्शनिक-चिन्तक को महज़ नास्तिक कहना उनके गहन और बहुआयामी चिन्तन को नकारना है।
यह किताब दो खंडों में विभाजित है। पहले हिस्से में समाहित वी. गीता और ब्रजरंजन मणि के लेख पेरियार के चिन्तन के विविध आयामों को पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। इसी खंड में पेरियार के ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी मूल लेख भी समाहित हैं जो पेरियार की ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी अवधारणा को स्पष्ट करते हैं।
दूसरे खंड में पेरियार की विश्वदृष्टि से सम्बन्धित लेखों को संगृहीत किया गया है जिसमें उन्होंने दर्शन, वर्चस्ववादी साहित्य और भविष्य की दुनिया कैसी होगी जैसे सवालों पर विचार किया है। इन लेखों में पेरियार विस्तार से बताते हैं कि दर्शन क्या है और समाज में उसकी भूमिका क्या है? इस खंड में वह ऐतिहासिक लेख भी शामिल है जिसमें पेरियार ने विस्तार से विचार भी किया है कि भविष्य की दुनिया कैसी होगी?
यह किताब ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ (17 सितम्बर, 1879—24 दिसम्बर, 1973) के दार्शनिक व्यक्तित्व से परिचित कराती है। धर्म, ईश्वर और मानव समाज का भविष्य उनके दार्शनिक चिन्तन का केन्द्रीय पहलू रहा है। उन्होंने मानव समाज के सन्दर्भ में धर्म और ईश्वर की भूमिका पर गहन चिन्तन-मनन किया है। इस चिन्तन-मनन के निष्कर्षों को इस किताब के विविध लेखों में प्रस्तुत किया गया है। ये लेख पेरियार के दार्शनिक व्यक्तित्व के विविध आयामों को पाठकों के सामने रखते हैं। इनको पढ़ते हुए कोई भी सहज ही समझ सकता है कि पेरियार जैसे दार्शनिक-चिन्तक को महज़ नास्तिक कहना उनके गहन और बहुआयामी चिन्तन को नकारना है।
यह किताब दो खंडों में विभाजित है। पहले हिस्से में समाहित वी. गीता और ब्रजरंजन मणि के लेख पेरियार के चिन्तन के विविध आयामों को पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। इसी खंड में पेरियार के ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी मूल लेख भी समाहित हैं जो पेरियार की ईश्वर और धर्म-सम्बन्धी अवधारणा को स्पष्ट करते हैं।
दूसरे खंड में पेरियार की विश्वदृष्टि से सम्बन्धित लेखों को संगृहीत किया गया है जिसमें उन्होंने दर्शन, वर्चस्ववादी साहित्य और भविष्य की दुनिया कैसी होगी जैसे सवालों पर विचार किया है। इन लेखों में पेरियार विस्तार से बताते हैं कि दर्शन क्या है और समाज में उसकी भूमिका क्या है? इस खंड में वह ऐतिहासिक लेख भी शामिल है जिसमें पेरियार ने विस्तार से विचार भी किया है कि भविष्य की दुनिया कैसी होगी?
About Author
पेरियार ई.वी. रामासामी
ई.वी. रामासामी नायकर 'पेरियार' (17 सितम्बर, 1879—24 दिसम्बर, 1973) बीसवीं शताब्दी के महानतम चिन्तकों और विचारकों में से एक हैं। उन्हें वाल्तेयर की श्रेणी का दार्शनिक, चिन्तक, लेखक और वक्ता माना जाता है। भारतीय समाज और भारतीय व्यक्ति का मुकम्मल आधुनिकीकरण जिन भारतीय चिन्तकों एवं विचारकों के विचारों के आधार पर किया जा सकता है, उसमें वे अग्रणी हैं। पेरियार एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने उन सभी बिन्दुओं को चिह्नित और रेखांकित किया है, जिनका ख़ात्मा भारतीय समाज और व्यक्ति के आधुनिकीकरण के लिए अनिवार्य है। उनकी विशिष्ट तर्क-पद्धति, तेवर और अभिव्यक्ति शैली के चलते जून, 1970 में यूनेस्को ने उन्हें ‘आधुनिक युग का मसीहा’, ‘दक्षिण-पूर्वी एशिया का सुकरात’, ‘समाज सुधारवादी आन्दोलनों का पितामह’ तथा ‘अज्ञानता, अन्धविश्वास, रूढ़िवाद और निरर्थक रीति-रिवाजों का कट्टर दुश्मन’ स्वीकार किया।
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