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Devdasi Ya Dharmik Veshya Ek Punarvichar
Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
प्रियदर्शिनी विजयश्री, अनुवाद - विजय कुमार झा
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
Vani Prakashan
Author:
प्रियदर्शिनी विजयश्री, अनुवाद - विजय कुमार झा
Language:
Hindi
Format:
Paperback
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9789352297597
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
220
इस अनुसन्धान में ‘धार्मिक वेश्यावृत्ति’ शब्द का प्रयोग इस बात पर ज़ोर डालने के लिए किया गया है कि हिन्दू-धर्म मन्दिर-स्त्री की यौन-अस्मिता को आदर्श के रूप में देखता रहा है। वास्तविकता यह है कि आज के प्रचलित शब्द ‘देवदासी’ का उपनिवेश-पूर्व अवधि में कहीं उल्लेख नहीं मिलता। प्राचीन और मध्यकाल की साहित्यिक और पुरालेखीय सामग्रियों में इन स्त्रियों के लिए सुले, सानी, भोगम और पात्रा जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है। कन्नड़ और तेलुगु में इनका अर्थ वेश्या होता है। इन दोनों ही भाषा-क्षेत्रों में इस प्रथा की पुष्टि करने वाले आरम्भिक स्रोतों में ही हम इन शब्दों का प्रयोग देखते हैं। इस प्राक् या वास्तविक अस्मिता का ख़याल रखते हुए ही ‘धार्मिक वेश्यावृत्ति’ शब्द का यहाँ प्रयोग किया जा रहा है, न कि ‘देवदासी’ शब्द का जो अकादमिक जगत में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है। देवदासी शब्द धार्मिक वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों की वास्तविक या मूल अस्मिता की पर्दापोशी करता है । औपनिवेशिक अवधि में ही संस्कृतनिष्ठ शब्द देवदासी के चलन ने ज़ोर पकड़ा। इसे उन बुद्धिजीवियों ने उछाला जो एक निर्णायक ऐतिहासिक घड़ी में अपने सचेत सुधारवादी कार्यक्रम के तहत मन्दिर की वेश्याओं की अस्मिता की पुनर्रचना में जुटे हुए थे। धार्मिक वेश्यावृत्ति उस धार्मिक मान्यता का दृष्टान्त है जो ‘सेक्स को आध्यात्मिक मिलन और सम्भोग को मोक्ष का मार्ग’ मानती है।
܀܀܀
देवदासी शब्द धार्मिक वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों की वास्तविक या मूल अस्मिता की पर्दापोशी करता है। औपनिवेशिक अवधि में ही संस्कृतनिष्ठ शब्द देवदासी के चलन ने ज़ोर पकड़ा। इसे उन बुद्धिजीवियों ने उछाला जो एक निर्णायक ऐतिहासिक घड़ी में अपने सचेत सुधारवादी कार्यक्रम के तहत मन्दिर की वेश्याओं की अस्मिता की पुनर्रचना में जुटे हुए थे। धार्मिक वेश्यावृत्ति उस धार्मिक मान्यता का दृष्टान्त है जो ‘सेक्स को आध्यात्मिक मिलन और सम्भोग को मोक्ष का मार्ग’ मानती है।
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Description
इस अनुसन्धान में ‘धार्मिक वेश्यावृत्ति’ शब्द का प्रयोग इस बात पर ज़ोर डालने के लिए किया गया है कि हिन्दू-धर्म मन्दिर-स्त्री की यौन-अस्मिता को आदर्श के रूप में देखता रहा है। वास्तविकता यह है कि आज के प्रचलित शब्द ‘देवदासी’ का उपनिवेश-पूर्व अवधि में कहीं उल्लेख नहीं मिलता। प्राचीन और मध्यकाल की साहित्यिक और पुरालेखीय सामग्रियों में इन स्त्रियों के लिए सुले, सानी, भोगम और पात्रा जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है। कन्नड़ और तेलुगु में इनका अर्थ वेश्या होता है। इन दोनों ही भाषा-क्षेत्रों में इस प्रथा की पुष्टि करने वाले आरम्भिक स्रोतों में ही हम इन शब्दों का प्रयोग देखते हैं। इस प्राक् या वास्तविक अस्मिता का ख़याल रखते हुए ही ‘धार्मिक वेश्यावृत्ति’ शब्द का यहाँ प्रयोग किया जा रहा है, न कि ‘देवदासी’ शब्द का जो अकादमिक जगत में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है। देवदासी शब्द धार्मिक वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों की वास्तविक या मूल अस्मिता की पर्दापोशी करता है । औपनिवेशिक अवधि में ही संस्कृतनिष्ठ शब्द देवदासी के चलन ने ज़ोर पकड़ा। इसे उन बुद्धिजीवियों ने उछाला जो एक निर्णायक ऐतिहासिक घड़ी में अपने सचेत सुधारवादी कार्यक्रम के तहत मन्दिर की वेश्याओं की अस्मिता की पुनर्रचना में जुटे हुए थे। धार्मिक वेश्यावृत्ति उस धार्मिक मान्यता का दृष्टान्त है जो ‘सेक्स को आध्यात्मिक मिलन और सम्भोग को मोक्ष का मार्ग’ मानती है।
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देवदासी शब्द धार्मिक वेश्यावृत्ति करने वाली स्त्रियों की वास्तविक या मूल अस्मिता की पर्दापोशी करता है। औपनिवेशिक अवधि में ही संस्कृतनिष्ठ शब्द देवदासी के चलन ने ज़ोर पकड़ा। इसे उन बुद्धिजीवियों ने उछाला जो एक निर्णायक ऐतिहासिक घड़ी में अपने सचेत सुधारवादी कार्यक्रम के तहत मन्दिर की वेश्याओं की अस्मिता की पुनर्रचना में जुटे हुए थे। धार्मिक वेश्यावृत्ति उस धार्मिक मान्यता का दृष्टान्त है जो ‘सेक्स को आध्यात्मिक मिलन और सम्भोग को मोक्ष का मार्ग’ मानती है।
About Author
प्रियदर्शिनी विजयश्री -
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के इतिहास अध्ययन केन्द्र से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद आजकल विकासशील समाज अध्ययन पीठ (सीएसडीएस) में एसोसिएट फैलो। अन्त्यज समुदायों के अतीत पर अनुसन्धान करते हुए अस्मिता, सेक्शुअलिटी और धर्म सम्बन्धी आयामों पर विशेष ज़ोर । आजकल एक संरचना के रूप में जाति पर पुनर्विचार और उसकी सीमाओं की पुनः परिभाषा की आवश्यकता रेखांकित करने वाले मुद्दों पर सोच-विचार में संलग्न ।
शीघ्र प्रकाश्य : इन दि परसूट ऑव वरजिन व्होर।
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विजय कुमार झा -
गणितशास्त्र में स्नातकोपरान्त दर्शन एवं साहित्य के रास्ते मार्क्सवाद का अध्ययन । मार्क्सवाद और नारीवाद के बीच स्वस्थ सम्बन्ध की तफ्तीश के क्रम में महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय से स्त्री-अध्ययन में एम.ए. और एम.फिल. करने के बाद पीएच.डी. का अध्ययन । एम.फिल. में जाति, वर्ग और जेंडर के बीच के गठजोड़ के स्वरूप पर प्रबन्ध । पीएच. डी. की थीसिस का विषय 'अठारहवीं सदी के मिथिलांचल में जाति, वर्ग और जेंडर'। एंतोनिओ ग्राम्शी और टेरी ईगलटन से प्रभावित। 'ग्राम्शी' पर पुस्तक लेखन जारी। उमा चक्रवर्ती की किताब 'जेंडरिंग कास्ट' का अनुवाद ।
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