Des-Bides Darvesh

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
महेश कटारे
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
महेश कटारे
Language:
Hindi
Format:
Hardback

199

Save: 1%

In stock

Ships within:
1-4 Days

In stock

Book Type

Availiblity

ISBN:
SKU 9789326354868 Category
Category:
Page Extent:
110

देस बिदेस दरवेश –
दरवेश देश और वेष में बँधकर नहीं रहता इसलिए उसकी दास्तान दुनिया की होकर भी दुनियादारी से कुछ हटकर होती है। वह निरपेक्षमी हो लेता है। क्योंकि उसकी ज़रूरतें ही कितनी?… मात्र झोली भर। गोया कि वह अपना घर कन्धे पर टाँग कर चलता है। इस घर में भी कितना सामान? ‘चन्द तस्वीरें बुताँ चन्द हसीनों के ख़त—बाद मरने के मेरे घर से ये सामाँ निकला’ की तर्ज़ पर कुछ अनुभव और कुछ ज्ञान।
यह तो सचाई है कि ज्ञान और अनुभव के लिए देशाटन बहुत आवश्यक है। हमारे पुराने देश और समाज में तीर्थाटन की परम्परा रही पर उसमें अनुभव, ज्ञान से अधिक पुण्यसंचय का भाव जुड़ गया। दरवेश की ‘अमरनाथ यात्रा’ व ‘गंगासागर जात्रा’ आस्था की उत्सुक यात्रा है… अनुभव के मार्ग का बोधरोहण है जिसमें अल्पज्ञता के स्वीकार का संकोच नहीं होता। यहाँ अन्धविश्वासों की परम्परा का अनुसन्धान नहीं लोक की आस्था का आचमन है।
आज के पर्यटन में जानकारी अधिक महत्त्वपूर्ण मानी जाती है और सौन्दर्य सुविधा से तथा सुविधा बाज़ारू दुकानदारी से जोड़ की जाती है। यहाँ मिलना भेंटना, जानना-समझना सीधे धन की मात्रा से जा जुड़ता है। इस तरह देशाटन या तो दरवेश की झोली में समाता नहीं या झोली ही फाड़ देता है।
देशाटन द्विविध कहा गया है—शुकमार्गी व पिपीलिका-पथ। पहले में धरती के ऊपर उड़ते हुए नीचे विहंगम दृष्टि डालते जाइए तथा दूसरे में क़दम-क़दम बढ़ते, ठहरते आसपास सूँघ, टोहकर आगे बढ़ना होता है पर संयोग कहें या भाग्य कि कभी-कभी चींटी पंखों पर भी चढ़ जाती है। ‘बिदेस यात्रा’ शायद इसी की बानगी हैं।
यूँ दीन-दुनियाँ से थोड़ा-थोड़ा निरपेक्ष दरवेश भी इसी बाग़-बग़ीचे का एक तिनका या पत्ता है अतः जानना उसे भी होगा कि इतिहास का काला पक्षी जीवन की मुँडेर पर आकर बोलने लगा है। उसकी कुटिल दृष्टि कब दरवेश के कन्धे और झोली पर जा ठहरे, क्या पता! यों यह यात्राएँ असाधारण नहीं है, साधारण ना ही इनकी विशेषता है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Des-Bides Darvesh”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Description

देस बिदेस दरवेश –
दरवेश देश और वेष में बँधकर नहीं रहता इसलिए उसकी दास्तान दुनिया की होकर भी दुनियादारी से कुछ हटकर होती है। वह निरपेक्षमी हो लेता है। क्योंकि उसकी ज़रूरतें ही कितनी?… मात्र झोली भर। गोया कि वह अपना घर कन्धे पर टाँग कर चलता है। इस घर में भी कितना सामान? ‘चन्द तस्वीरें बुताँ चन्द हसीनों के ख़त—बाद मरने के मेरे घर से ये सामाँ निकला’ की तर्ज़ पर कुछ अनुभव और कुछ ज्ञान।
यह तो सचाई है कि ज्ञान और अनुभव के लिए देशाटन बहुत आवश्यक है। हमारे पुराने देश और समाज में तीर्थाटन की परम्परा रही पर उसमें अनुभव, ज्ञान से अधिक पुण्यसंचय का भाव जुड़ गया। दरवेश की ‘अमरनाथ यात्रा’ व ‘गंगासागर जात्रा’ आस्था की उत्सुक यात्रा है… अनुभव के मार्ग का बोधरोहण है जिसमें अल्पज्ञता के स्वीकार का संकोच नहीं होता। यहाँ अन्धविश्वासों की परम्परा का अनुसन्धान नहीं लोक की आस्था का आचमन है।
आज के पर्यटन में जानकारी अधिक महत्त्वपूर्ण मानी जाती है और सौन्दर्य सुविधा से तथा सुविधा बाज़ारू दुकानदारी से जोड़ की जाती है। यहाँ मिलना भेंटना, जानना-समझना सीधे धन की मात्रा से जा जुड़ता है। इस तरह देशाटन या तो दरवेश की झोली में समाता नहीं या झोली ही फाड़ देता है।
देशाटन द्विविध कहा गया है—शुकमार्गी व पिपीलिका-पथ। पहले में धरती के ऊपर उड़ते हुए नीचे विहंगम दृष्टि डालते जाइए तथा दूसरे में क़दम-क़दम बढ़ते, ठहरते आसपास सूँघ, टोहकर आगे बढ़ना होता है पर संयोग कहें या भाग्य कि कभी-कभी चींटी पंखों पर भी चढ़ जाती है। ‘बिदेस यात्रा’ शायद इसी की बानगी हैं।
यूँ दीन-दुनियाँ से थोड़ा-थोड़ा निरपेक्ष दरवेश भी इसी बाग़-बग़ीचे का एक तिनका या पत्ता है अतः जानना उसे भी होगा कि इतिहास का काला पक्षी जीवन की मुँडेर पर आकर बोलने लगा है। उसकी कुटिल दृष्टि कब दरवेश के कन्धे और झोली पर जा ठहरे, क्या पता! यों यह यात्राएँ असाधारण नहीं है, साधारण ना ही इनकी विशेषता है।

About Author

महेश कटारे - जन्म: 1948, बिल्हैटी, ज़िला-ग्वालियर (म.प्र.)। शिक्षा: तीन विषयों में स्नातकोत्तर। खेती व कुछ वर्षों तक अशासकीय स्कूल में मास्टरी। प्रकाशन: समर शेष है, इतिकथा अथकथा, मुदी स्थगित, पहरुआ छछिया भर छाछ, मेरी प्रिय कथाएँ, सातपान की हमेल (कहानी-संग्रह); महासमर का साक्षी, अँधेरे युगान्त के, पंचरंगी (नाटक); पहियों पर रात दिन (यात्रावृत); कामिनी काय कांतारे (उपन्यास दो भागों में)। समय के साथ-साथ, नज़र इधर-उधर (विविध)। अनेक हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, लेख समीक्षाएँ प्रकाशित। नृत्य-नाट्य लिखे। मंचित हुए। पुरस्कार/ सम्मान : कुसुमांजलि साहित्य सम्मान 2015, ढींगरा फ़ाउंडेशन (अमेरिका) का कथा सम्मान 2014 (स्कारबरो, कनाडा में) कथाक्रम सम्मान 2009, शमशेर सम्मान 2005, म.प्र. साहित्य परिषद व साहित्य अकादमी म.प्र. के पुरस्कार, सारिका सर्वभाषा कथा-प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार, वागीश्वरी सम्मान, प्रेमचन्द कथा सम्मान, बिहार राजभाषा परिषद सम्मान तथा कुछ अन्य भी सुप्रसिद्ध बैले ग्रुप 'कला समूह' व प्रलेस से अद्यतन जुड़ाव।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Des-Bides Darvesh”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

RELATED PRODUCTS

RECENTLY VIEWED