Dasta Ke Barah Baras

Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
| Author:
सोलोमन नॉर्थअप, डॉ मुकेश कुमार द्वारा अनुवादित
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Jnanpith Vani Prakashan LLP
Author:
सोलोमन नॉर्थअप, डॉ मुकेश कुमार द्वारा अनुवादित
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Hindi
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Hardback

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216

दासता के बारह बरस –

यह एक अश्वेत अमेरिकी सोलोमन नार्थअप की दिल दहलाने वाली आपबीती है। सोलोमन वाशिंगटन में रहनेवाले एक स्वतन्त्र नागरिक थे। क़रीब 175 साल पहले उनका अपहरण करके उन्हें दास प्रथा वाले दक्षिणी इलाक़े में बेच दिया गया था। बारह साल तक अपने घर-परिवार से बहुत दूर एक दास के रूप में उन्होंने भयानक शारीरिक एवं मानसिक यातनाएँ झेलीं। लेकिन मानना पड़ेगा कि इस कुप्रथा का सबसे ज्यादा दंश अफ्रीकियों ने झेला है। अपनी काली चमड़ी की वजह से उन्हें हर जगह भेदभाव का शिकार होना पड़ा।

सोलोमन के संस्मरणों की ये पुस्तक इतनी अवधि बीत जाने के बावजूद इसीलिए प्रासंगिक बनी हुई है कि इतने अरसे बाद हॉलीवुड में उस पर फ़िल्म बनती है, जिसे नौ ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया जाता है और गोल्डन ग्लोब अवार्ड से भी नवाज़ा जाता है।

‘दासता के बारह बरस’ एक दास का भोगा हुआ यथार्थ हैं, जिसमें भावनाएँ हैं, संवेदनाएँ हैं, स्वतन्त्रता गँवाने की पीड़ा है, परिवार से बिछड़ने का दुख है और घोर अन्याय एवं अत्याचारों से उपजा आक्रोश भी है, मगर जो कुछ भी है वह सौ फ़ीसदी खरा सच है।

इस पढ़ते हुए भारतीय पाठक उन दलितों के दुख का भी अनुभव कर सकते हैं जो जाति प्रथा की वजह से आज भी अपमान और भेदभाव झेल रहे हैं। उन आदिवासी समुदायों की पीड़ा को भी इसके ज़रिये समझा जा सकता है जो उसी तरह से शोषक वर्ग के लालच का शिकार हुए हैं और आज भी हो रहे हैं।

अन्तिम आवरण पृष्ठ –

बारह साल तक एक दास के रूप में भीषण यातनाएँ झेलनेवाले सोलोमन नॉथअप की दर्द भरी दास्तान दास प्रथा की ख़ौफ़नाक सचाईयों से रू-ब-रू कराती है। क़रीब 175 साल पुरानी इस आपबीती पर हॉलीवुड में फ़िल्म बनी, जिसे दुनिया भर में देखा और सराहा गया। इस फ़िल्म को नौ ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया और सर्वश्रेष्ठ चलचित्र के लिए गोल्डन ग्लोब पुरस्कार से भी नवाज़ा गया।

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Description

दासता के बारह बरस –

यह एक अश्वेत अमेरिकी सोलोमन नार्थअप की दिल दहलाने वाली आपबीती है। सोलोमन वाशिंगटन में रहनेवाले एक स्वतन्त्र नागरिक थे। क़रीब 175 साल पहले उनका अपहरण करके उन्हें दास प्रथा वाले दक्षिणी इलाक़े में बेच दिया गया था। बारह साल तक अपने घर-परिवार से बहुत दूर एक दास के रूप में उन्होंने भयानक शारीरिक एवं मानसिक यातनाएँ झेलीं। लेकिन मानना पड़ेगा कि इस कुप्रथा का सबसे ज्यादा दंश अफ्रीकियों ने झेला है। अपनी काली चमड़ी की वजह से उन्हें हर जगह भेदभाव का शिकार होना पड़ा।

सोलोमन के संस्मरणों की ये पुस्तक इतनी अवधि बीत जाने के बावजूद इसीलिए प्रासंगिक बनी हुई है कि इतने अरसे बाद हॉलीवुड में उस पर फ़िल्म बनती है, जिसे नौ ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया जाता है और गोल्डन ग्लोब अवार्ड से भी नवाज़ा जाता है।

‘दासता के बारह बरस’ एक दास का भोगा हुआ यथार्थ हैं, जिसमें भावनाएँ हैं, संवेदनाएँ हैं, स्वतन्त्रता गँवाने की पीड़ा है, परिवार से बिछड़ने का दुख है और घोर अन्याय एवं अत्याचारों से उपजा आक्रोश भी है, मगर जो कुछ भी है वह सौ फ़ीसदी खरा सच है।

इस पढ़ते हुए भारतीय पाठक उन दलितों के दुख का भी अनुभव कर सकते हैं जो जाति प्रथा की वजह से आज भी अपमान और भेदभाव झेल रहे हैं। उन आदिवासी समुदायों की पीड़ा को भी इसके ज़रिये समझा जा सकता है जो उसी तरह से शोषक वर्ग के लालच का शिकार हुए हैं और आज भी हो रहे हैं।

अन्तिम आवरण पृष्ठ –

बारह साल तक एक दास के रूप में भीषण यातनाएँ झेलनेवाले सोलोमन नॉथअप की दर्द भरी दास्तान दास प्रथा की ख़ौफ़नाक सचाईयों से रू-ब-रू कराती है। क़रीब 175 साल पुरानी इस आपबीती पर हॉलीवुड में फ़िल्म बनी, जिसे दुनिया भर में देखा और सराहा गया। इस फ़िल्म को नौ ऑस्कर पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया और सर्वश्रेष्ठ चलचित्र के लिए गोल्डन ग्लोब पुरस्कार से भी नवाज़ा गया।

About Author

डॉ. मुकेश कुमार - शहडोल मध्य प्रदेश में जन्मे डॉ. मुकेश कुमार सुविख्यात पत्रकार, टीवी एंकर, लेखक एवं कवि हैं। वे लम्बे अरसे से टेलीविज़न की दुनिया से जुड़े रहे हैं। परख, फिलहाल, कही अनकही और सुबह सवेरे जैसे कार्यक्रमों में उन्होंने प्रस्तुतकर्ता के अलावा कई तरह की भूमिकाएँ निभायी। उन्होंने छह न्यूज़ चैनल लॉन्च किये और प्राइम टाइम में राजनीति, शतरंज के खिलाड़ी एवं स्पेशल एजेंडा जैसे बहुत ही लोकप्रिय कार्यक्रम प्रस्तुत किये। टेलीविज़न में आने से पहले वे प्रिंट मीडिया से जुड़े थे। वे 'सेंटिनल' के संस्थापक सम्पादक, 'समय सूत्रधार' के कार्यकारी सम्पादक एवं दैनिक 'नयी दुनिया' के सहायक सम्पादक रह चुके हैं। हंस, नया ज्ञानोदय और पाखी जैसी पत्रिकाओं के लिए वे स्तम्भ लिखते रहे हैं। उनका ब्लॉग 'फेक एनकाउंटर' बेहद पढ़ा जाता है। उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से तीन अंग्रेज़ी से अनुवाद की हैं। उनकी कविताओं का संकलन 'साधो जग बौराना' के नाम से प्रकाशित चर्चित हो चुका है।

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