Dakshayani

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
अरुणा मुकिम
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
Author:
अरुणा मुकिम
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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126

‘दक्षायणी’ एक सशक्त उपन्यास है। इसमें शिव और शक्ति के प्रेम के वास्तविक स्वरूप की अद्भुत व्याख्या मिलती है। लेखिका ने इसमें अपने को सती के रूप में परिकल्पना कर, नारी जीवन के संघर्षों एवं विषमताओं का अत्यन्त प्रभावशाली चित्रण किया है। अपने पद एवं अहंकार के दर्प में आवेष्ठित, प्रजापति दक्ष, अपनी पुत्री सती के विचारों की निरन्तर अवहेलना करता है। उसे दक्षायणी का शिव के प्रति प्रेम एवं आसक्ति अनुचित लगती है। यद्यपि हर क्षण सती अपने पिता के प्रति निष्ठावान रहना चाहती है, फिर भी समय-समय पर शिव उसके जीवन में प्रवेश करते रहते हैं। कोमल भावनाओं के वशीभूत हो, दक्षायणी, सारे प्रयासों के बावजूद, अपने जीवन को शिवमय होने से रोकने में असफल रहती है। शिव और सती का विवाह एक ब्रह्माण्डीय योजना और अनिवार्यता है। दक्ष इसको रोकने में अक्षम रहता है। द्वेष एवं आक्रोश की अग्नि से ग्रस्त हो, वह अपने दामाद-शिव-के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग उनकी अनुपस्थिति में, अपनी यज्ञशाला में सबके समक्ष करता है। इस पर कुपित हो, सती अपनी योग शक्ति से उत्पन्न अग्नि से अपने पार्थिव शरीर को भस्म कर लेती है। ‘दक्षायणी’ में इस दृश्य का चित्रण, बहुत मौलिकता एवं संवेदनशीलता से किया गया है। यह पाठक को उद्वेलित करने में सक्षम है।

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Description

‘दक्षायणी’ एक सशक्त उपन्यास है। इसमें शिव और शक्ति के प्रेम के वास्तविक स्वरूप की अद्भुत व्याख्या मिलती है। लेखिका ने इसमें अपने को सती के रूप में परिकल्पना कर, नारी जीवन के संघर्षों एवं विषमताओं का अत्यन्त प्रभावशाली चित्रण किया है। अपने पद एवं अहंकार के दर्प में आवेष्ठित, प्रजापति दक्ष, अपनी पुत्री सती के विचारों की निरन्तर अवहेलना करता है। उसे दक्षायणी का शिव के प्रति प्रेम एवं आसक्ति अनुचित लगती है। यद्यपि हर क्षण सती अपने पिता के प्रति निष्ठावान रहना चाहती है, फिर भी समय-समय पर शिव उसके जीवन में प्रवेश करते रहते हैं। कोमल भावनाओं के वशीभूत हो, दक्षायणी, सारे प्रयासों के बावजूद, अपने जीवन को शिवमय होने से रोकने में असफल रहती है। शिव और सती का विवाह एक ब्रह्माण्डीय योजना और अनिवार्यता है। दक्ष इसको रोकने में अक्षम रहता है। द्वेष एवं आक्रोश की अग्नि से ग्रस्त हो, वह अपने दामाद-शिव-के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग उनकी अनुपस्थिति में, अपनी यज्ञशाला में सबके समक्ष करता है। इस पर कुपित हो, सती अपनी योग शक्ति से उत्पन्न अग्नि से अपने पार्थिव शरीर को भस्म कर लेती है। ‘दक्षायणी’ में इस दृश्य का चित्रण, बहुत मौलिकता एवं संवेदनशीलता से किया गया है। यह पाठक को उद्वेलित करने में सक्षम है।

About Author

हिन्दी साहित्य में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है। कई वर्षों से लेखन में संलग्न हैं। आप एक प्रखर वक्ता एवं विचारक हैं। आम आदमी के अधिकारों के लिए हमेशा संघर्षरत रहती हैं। सी.बी.एफ.सी. की पूर्व सदस्या भी रही हैं। दैनिक जीवन से जुड़े सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर होने वाली चर्चाओं में सक्रिय भाग लेती रहती हैं। अनेक पुस्तकों की लेखिका भी हैं। ‘दक्षायणी’ इनका प्रथम उपन्यास है। इसमें शिव-सती की पौराणिक कथा को एक व्यापक सन्दर्भ में देखा गया है।

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