Dakhil Kharij (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Ramdhari Singh Diwakar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback

396

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गाँव की टूटती-बिखरती सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में छीजते जा रहे मानवीय मूल्यों को कथान्वित करनेवाला यह उपन्यास ‘दाखिल खारिज’ रामधारी सिंह दिवाकर की चर्चित कथाकृति है।
अपने छूटे हुए गाँव के लिए कुछ करने के सपनों और संकल्पों के साथ प्रोफ़ेसर प्रमोद सिंह का गाँव लौटना और बेरहमी से उनको ख़ारिज किया जाना आज के बदलते हुए गाँव का निर्मम यथार्थ है। यह कैसा गाँव है जहाँ बलात्कार मामूली-सी घटना है। हत्यारे, दुराचारी, बलात्कारी और बाहुबली लोकतांत्रिक व्यवस्था और सरकारी तंत्र को अपने हिसाब से संचालित करते हैं। सुराज के मायावी सपनों की पंचायती राज-व्यवस्था में पंचायतों को प्रदत्त अधिकार धन की लूट के स्रोत बन जाते हैं। सीमान्त किसान खेती छोड़ ‘मनरेगा’ में मज़दूरी को बेहतर विकल्प मानते हैं। ऐसे विकृत-विखंडित होते गाँव की पीड़ा को ग्रामीण चेतना के कथाशिल्पी रामधारी सिंह दिवाकर ने पूरी संलग्नता और गहरी संवेदना से उकेरने का प्रयास किया है। हिन्दी कथा साहित्य से लगभग बहिष्कृत होते गाँव को विषय बनाकर लिखे गए इस सशक्त उपन्यास को ‘कथा में गाँव के पुनर्वास’ के रूप में देखा-परखा और उल्‍लेखि‍त किया जाता है।

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गाँव की टूटती-बिखरती सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में छीजते जा रहे मानवीय मूल्यों को कथान्वित करनेवाला यह उपन्यास ‘दाखिल खारिज’ रामधारी सिंह दिवाकर की चर्चित कथाकृति है।
अपने छूटे हुए गाँव के लिए कुछ करने के सपनों और संकल्पों के साथ प्रोफ़ेसर प्रमोद सिंह का गाँव लौटना और बेरहमी से उनको ख़ारिज किया जाना आज के बदलते हुए गाँव का निर्मम यथार्थ है। यह कैसा गाँव है जहाँ बलात्कार मामूली-सी घटना है। हत्यारे, दुराचारी, बलात्कारी और बाहुबली लोकतांत्रिक व्यवस्था और सरकारी तंत्र को अपने हिसाब से संचालित करते हैं। सुराज के मायावी सपनों की पंचायती राज-व्यवस्था में पंचायतों को प्रदत्त अधिकार धन की लूट के स्रोत बन जाते हैं। सीमान्त किसान खेती छोड़ ‘मनरेगा’ में मज़दूरी को बेहतर विकल्प मानते हैं। ऐसे विकृत-विखंडित होते गाँव की पीड़ा को ग्रामीण चेतना के कथाशिल्पी रामधारी सिंह दिवाकर ने पूरी संलग्नता और गहरी संवेदना से उकेरने का प्रयास किया है। हिन्दी कथा साहित्य से लगभग बहिष्कृत होते गाँव को विषय बनाकर लिखे गए इस सशक्त उपन्यास को ‘कथा में गाँव के पुनर्वास’ के रूप में देखा-परखा और उल्‍लेखि‍त किया जाता है।

About Author

रामधारी सिंह दिवाकर

 

जन्म : अररिया ज़‍िले (बिहार) के एक गाँव नरपतगंज में 1 जनवरी, 1945 को एक निम्न मध्यवित्त किसान-परिवार में।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. (हिन्दी)। मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा (बिहार) में प्रोफ़ेसर एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष पद से 2005 में अवकाश ग्रहण। अरसे तक बिहार राष्ट्रभाषा परिषद पटना के निदेशक रहे।

पहली उल्लेखनीय कहानी ‘नई कहानियाँ’ पत्रिका के जून 1971 अंक में छपी। तब से अनवरत लेखन। हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में शताधिक कहानियाँ, उपन्यास आदि प्रकाशित।

प्रकाशित कृतियाँ : ‘नए गाँव में’, ‘अलग-अलग अपरिचय’, ‘बीच से टूटा हुआ’, ‘नया घर चढ़े’, ‘सरहद के पार’, ‘धरातल’, ‘माटी-पानी’, ‘मखान पोखर’, ‘वर्णाश्रम’, ‘झूठी कहानी का सच’ (कहानी-संग्रह); ‘क्या घर क्या परदेस’, ‘काली सुबह का सूरज’, ‘पंचमी तत्पुरुष’, ‘आग-पानी आकाश’, ‘टूटते दायरे’, ‘अकाल संध्या’ (उपन्यास); ‘मरगंगा में दूब’ (आलोचना)। कई कहानियाँ विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित-प्रकाशित। 'शोकपर्व’ कहानी पर दिल्ली दूरदर्शन द्वारा फ़‍िल्म निर्मित। 'मखानपोखर’ पर भी फ़‍िल्म बनी।

सम्‍मान : ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’ सहित कई सम्‍मानों से सम्‍मानित।

 

 

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