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Chuka Bhi Hun Main Nahin ! (HB)
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Chuka Bhi Hun Main Nahin ! (PB)
Publisher:
RADHA
| Author:
Shamsher Bahadur Singh
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
Publisher:
RADHA
Author:
Shamsher Bahadur Singh
Language:
Hindi
Format:
Paperback
₹199 ₹198
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1-4 Days
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ISBN:
SKU
9788183619066
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
शमशेर बहादुर सिंह की कविता एक विलक्षण संसार की रचना करती है जिसमें आपको अपनी नहीं उसकी शर्तों पर जाना होता है। इस कविता को आप चलते-जाते ऐसे ही नहीं पढ़ सकते, यह कविता अपने काठिन्य से नहीं, जैसा कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं, बल्कि अपनी अद्वितीयता से आपको पढ़ने की आपकी कंडीशंड आदतों से छूटकर वापस नए सिरे से सावधान होने को कहती है।
यह शमशेर का उस दौर में आया संग्रह है जब कवि के रूप में उनका स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण हो चुका था। इससे पहले उनकी ‘कुछ कविताएँ’, ‘कुछ और कविताएँ’, और ‘इतने पास अपने’ जैसे संकलन आ चुके थे और हिन्दी कविता की दुनिया में उन्हें लेकर पक्ष-विपक्ष बन चुका था। इसलिए यह संग्रह और भी महत्त्वपूर्ण है, हालाँकि जिस तरह उनके पहले कविता-संग्रह के लिए कविताओं का चयन जगत् शङ्खधर ने किया था, इस किताब में भी चयन उन्हीं का रहा, अर्थात् अब तक अपनी कविता को लेकर उनका संकोच जस का तस था। इस संग्रह की भूमिका में भी वे कहते हैं—‘अपनी काव्य-कृतियाँ मुझे दरअसल सामाजिक दृष्टि से कुछ बहुत मूल्यवान नहीं लगतीं। उनकी वास्तविक सामाजिक उपयोगिता मेरे लिए एक प्रश्नचिह्न-सा ही रही है, कितना ही धुँधला सही।’ अपने काव्य-कर्म को लेकर उनके इसी संशय ने शायद उन्हें भाषा और शिल्प के उस मानक तक पहुँचाया जिसे उनके जीते-जी ही ‘शमशेरियत’ कहा जाने लगा था, और उन्हें ‘कवियों का कवि’। बकौल नामवर सिंह, ‘शमशेर की आत्मा ने अपनी अभिव्यक्ति का जो एक प्रभावशाली भवन अपने हाथों तैयार किया है, उसमें जाने से मुक्तिबोध को भी डर लगता था—उसकी गम्भीर प्रयत्नसाध्य पवित्रता के कारण।’ और बकौल मलयज, ‘एक नितान्त निजी मुहावरा अपने पवित्र दर्प में तना हुआ।’
बहरहाल ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ का यह संस्करण हिन्दी की नई पीढ़ी को एक आमंत्रण के रूप में प्रस्तुत है कि वह भी अपने इस पूर्वज, और कविता-परम्परा के श्रेष्ठतम पैमानों में से एक, कवि की कविताओं को जाने।
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Description
शमशेर बहादुर सिंह की कविता एक विलक्षण संसार की रचना करती है जिसमें आपको अपनी नहीं उसकी शर्तों पर जाना होता है। इस कविता को आप चलते-जाते ऐसे ही नहीं पढ़ सकते, यह कविता अपने काठिन्य से नहीं, जैसा कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं, बल्कि अपनी अद्वितीयता से आपको पढ़ने की आपकी कंडीशंड आदतों से छूटकर वापस नए सिरे से सावधान होने को कहती है।
यह शमशेर का उस दौर में आया संग्रह है जब कवि के रूप में उनका स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण हो चुका था। इससे पहले उनकी ‘कुछ कविताएँ’, ‘कुछ और कविताएँ’, और ‘इतने पास अपने’ जैसे संकलन आ चुके थे और हिन्दी कविता की दुनिया में उन्हें लेकर पक्ष-विपक्ष बन चुका था। इसलिए यह संग्रह और भी महत्त्वपूर्ण है, हालाँकि जिस तरह उनके पहले कविता-संग्रह के लिए कविताओं का चयन जगत् शङ्खधर ने किया था, इस किताब में भी चयन उन्हीं का रहा, अर्थात् अब तक अपनी कविता को लेकर उनका संकोच जस का तस था। इस संग्रह की भूमिका में भी वे कहते हैं—‘अपनी काव्य-कृतियाँ मुझे दरअसल सामाजिक दृष्टि से कुछ बहुत मूल्यवान नहीं लगतीं। उनकी वास्तविक सामाजिक उपयोगिता मेरे लिए एक प्रश्नचिह्न-सा ही रही है, कितना ही धुँधला सही।’ अपने काव्य-कर्म को लेकर उनके इसी संशय ने शायद उन्हें भाषा और शिल्प के उस मानक तक पहुँचाया जिसे उनके जीते-जी ही ‘शमशेरियत’ कहा जाने लगा था, और उन्हें ‘कवियों का कवि’। बकौल नामवर सिंह, ‘शमशेर की आत्मा ने अपनी अभिव्यक्ति का जो एक प्रभावशाली भवन अपने हाथों तैयार किया है, उसमें जाने से मुक्तिबोध को भी डर लगता था—उसकी गम्भीर प्रयत्नसाध्य पवित्रता के कारण।’ और बकौल मलयज, ‘एक नितान्त निजी मुहावरा अपने पवित्र दर्प में तना हुआ।’
बहरहाल ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ का यह संस्करण हिन्दी की नई पीढ़ी को एक आमंत्रण के रूप में प्रस्तुत है कि वह भी अपने इस पूर्वज, और कविता-परम्परा के श्रेष्ठतम पैमानों में से एक, कवि की कविताओं को जाने।
About Author
शमशेर बहादुर सिंह
जन्म : 13 जनवरी, 1911; देहरादून (उ.प्र.)।
शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा देहरादून में। बाद की शिक्षा गोंडा और इलाहाबाद विश्वविद्यालय में। 1935-36 में उकील बन्धुओं से कला-प्रशिक्षण लिया।
साहित्यिक कार्यक्षेत्र : ‘रूपाभ’, इलाहाबाद में कार्यालय सहायक (1939); ‘कहानी’ में त्रिलोचन के साथ (1940); ‘नया साहित्य’, बम्बई में कम्यून में रहते हुए (1946); ‘माया’ में सहायक सम्पादक (1948-54); ‘नया पथ’ और ‘मनोहर कहानियाँ’ में सम्पादन-सहयोग। दिल्ली विश्वविद्यालय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना ‘उर्दू-हिन्दी कोश’ का सम्पादन (1965-77)। ‘प्रेमचन्द सृजनपीठ’, विक्रम विश्वविद्यालय (मध्य प्रदेश) के अध्यक्ष (1981-85)।
सन् 1978 में सोवियत संघ की यात्रा। विभिन्न भाषाओं में कविताओं के अनुवाद।
प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘कुछ कविताएँ’ व ‘कुछ और कविताएँ’, ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’, ‘इतने पास अपने’, ‘उदिता : अभिव्यक्ति का संघर्ष’, ‘बात बोलेगी’, ‘काल तुझसे होड़ है मेरी’, ‘टूटी हुई बिखरी हुई’, ‘कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ’ (कविता-संग्रह); ‘कुछ और गद्य रचनाएँ’ (निबन्ध)।
सम्मान : मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् का ‘तुलसी पुरस्कार’ (1977); ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ (1977); ‘मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार’; ‘कबीर सम्मान’ (1989)।
निधन : 12 मई, 1993
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