Chirag E Dair (HB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Mirza Ghalib, Tr. Sadique
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Rajkamal
Author:
Mirza Ghalib, Tr. Sadique
Language:
Hindi
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Hardback

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मिर्ज़ा ग़ालिब की बनारस-यात्रा मशहूर है। उन्होंने फ़ारसी में, जो उनकी प्रिय काव्यभाषा थी, एक मसनवी ‘चिराग़-ए-दैर’ नाम से लिखी थी। यों तो बनारस सदियों से एक पुण्य-नगरी है और उसकी स्तुति में बहुत कुछ इस दौरान लिखा गया है। ग़ालिब की मसनवी उस परम्परा में होते हुए भी अनोखी है जो एक महान कवि की एक महान तीर्थ की यात्रा को सच्चे और सशक्त काव्य में रूपायित करती है। एक ऐसे समय में जब हिन्दू और इस्लाम धर्मों के बीच दूरी बढ़ाने की अनेक प्रबल और निर्लज्ज दुश्चेष्टाएँ हो रही हैं, इस मसनवी का हिन्दी अनुवाद एक तरह की याददहानी का काम करता है कि यह दूरी कितनी बहुत पहले पट चुकी थी।
—अशोक वाजपेयी।

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Description

मिर्ज़ा ग़ालिब की बनारस-यात्रा मशहूर है। उन्होंने फ़ारसी में, जो उनकी प्रिय काव्यभाषा थी, एक मसनवी ‘चिराग़-ए-दैर’ नाम से लिखी थी। यों तो बनारस सदियों से एक पुण्य-नगरी है और उसकी स्तुति में बहुत कुछ इस दौरान लिखा गया है। ग़ालिब की मसनवी उस परम्परा में होते हुए भी अनोखी है जो एक महान कवि की एक महान तीर्थ की यात्रा को सच्चे और सशक्त काव्य में रूपायित करती है। एक ऐसे समय में जब हिन्दू और इस्लाम धर्मों के बीच दूरी बढ़ाने की अनेक प्रबल और निर्लज्ज दुश्चेष्टाएँ हो रही हैं, इस मसनवी का हिन्दी अनुवाद एक तरह की याददहानी का काम करता है कि यह दूरी कितनी बहुत पहले पट चुकी थी।
—अशोक वाजपेयी।

About Author

मिर्ज़ा ग़ालिब

भारतीय साहित्य की एक गौरवान्वित शख़्सियत।

जन्म : 27 दिसम्बर, 1797; आगरा।

उर्दू और फ़ारसी, दोनों भाषाओं के अज़ीम शाइर और गद्यकार। सन् 1857 के इंक़लाब पर ‘दस्तंबू’ शीर्षक एक यादगार ऐतिहासिक पुस्तक लिखी। उर्दू और फ़ारसी में लिखे गए ग़ालिब के असंख्य पत्र दोनों भाषाओं के साहित्य में उत्कृष्ट दर्जा रखते हैं।

सन् 1816 में ग़ालिब के अपने हाथ लिखी हुई एक बयाज़ (जिसे ‘नुस्ख़ा-ए-भोपाल’ कहा जाता है) से पता चलता है कि ‘दीवान-ए-ग़ालिब’ (उर्दू) में संकलित अधिकतर ग़ज़लें 19 वर्ष की उम्र में लिख चुके थे। इसके बाद वो ज़्यादातर फ़ारसी में लिखते रहे।

ग़ालिब ने फ़ारसी में कुल ग्यारह मसनवियाँ लिखीं। चिराग़े-ए-दैर’ उनकी तीसरी मसनवी है। यह बनारस पर लिखी गई कविताओं में श्रेष्ठ कही जाती है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि ईरान, अफ़गा़निस्तान और ताजुबेकिस्तानवासियों को पावन-पुनीत बनारस नगरी की अहमियत और हिन्दुस्तान की अज़मत से परिचित करानेवाली प्रथम और अप्रतिम रचना है।

निधन : 15 फरवरी, 1869

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