Chhabbees Kahaniyan (Shivani)

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
शिवानी
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Vani Prakashan
Author:
शिवानी
Language:
Hindi
Format:
Paperback

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शिवानी की कहानियाँ बीसवीं सदी के भारतीय राज समाज की, और उसके दौरान देश में आये बदलावों के बीच जनता, ख़ासकर स्त्रियों की स्थिति की एक ऐसी विहंगम चित्रपटी हैं, जिसके अन्तिम छोर को हम बीसवीं सदी के आख़िरी पर्व की तरह पढ़ सकते हैं। इस महागाथा में देश के औपनिवेशिक काल के सामन्ती पात्रों तथा संयुक्त परिवारों के मार्मिक चित्र भी हैं और उस समय के उदात्त अपरिग्रही समाज-सुधारकों तथा शान्तिनिकेतन परिसर से जुड़े विवरण भी, युगों पुरानी रवायतों को जी रहा कुमाऊँ का पारम्परिक सरल ग्रामीण समाज है, तो लखनऊ, कोलकाता तथा दिल्ली जैसे नगरों का अनेक स्तरों पर बँटा, लोकतान्त्रिक राजनीति की पेचीदगियों तथा पारिवारिक विघटन के एकदम नये अनुभवों के बीच जी रहा आधुनिक नागर समाज भी। आज़ादी के बाद के साठ बरसों में देश में उपजे तमाम क़िस्म के नायक, खलनायक, अच्छे और भ्रष्ट राजनेता, विदूषक, अपराधी, वेश्याएँ, दलाल और कुट्टिनियाँ, विदेश जाने को लालायित युवा और उनके पीछे छूटे अभिभावकों की मूक या मुखर व्यथा, सब इन रचनाओं में मौजूद हैं।

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शिवानी की कहानियाँ बीसवीं सदी के भारतीय राज समाज की, और उसके दौरान देश में आये बदलावों के बीच जनता, ख़ासकर स्त्रियों की स्थिति की एक ऐसी विहंगम चित्रपटी हैं, जिसके अन्तिम छोर को हम बीसवीं सदी के आख़िरी पर्व की तरह पढ़ सकते हैं। इस महागाथा में देश के औपनिवेशिक काल के सामन्ती पात्रों तथा संयुक्त परिवारों के मार्मिक चित्र भी हैं और उस समय के उदात्त अपरिग्रही समाज-सुधारकों तथा शान्तिनिकेतन परिसर से जुड़े विवरण भी, युगों पुरानी रवायतों को जी रहा कुमाऊँ का पारम्परिक सरल ग्रामीण समाज है, तो लखनऊ, कोलकाता तथा दिल्ली जैसे नगरों का अनेक स्तरों पर बँटा, लोकतान्त्रिक राजनीति की पेचीदगियों तथा पारिवारिक विघटन के एकदम नये अनुभवों के बीच जी रहा आधुनिक नागर समाज भी। आज़ादी के बाद के साठ बरसों में देश में उपजे तमाम क़िस्म के नायक, खलनायक, अच्छे और भ्रष्ट राजनेता, विदूषक, अपराधी, वेश्याएँ, दलाल और कुट्टिनियाँ, विदेश जाने को लालायित युवा और उनके पीछे छूटे अभिभावकों की मूक या मुखर व्यथा, सब इन रचनाओं में मौजूद हैं।

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About Author

शिवानी जन्म : 17 अक्टूबर 1923, गुजरात के राजकोट शहर में। शिक्षा : शान्तिनिकेतन, पश्चिम बंगाल से बी. ए. । कार्यक्षेत्र : मूलरूप में उत्तर प्रदेश के कुमाऊँ क्षेत्र की निवासिनी, शिक्षा शान्तिनिकेतन में और जीवन का अधिकांश समय लखनऊ में बिताया। माँ गुजराती की विदुषी, पिता अंग्रेजी के लेखक, पहाड़ी पृष्ठभूमि और गुरुदेव की शरण में शिक्षा ने शिवानी की भाषा और लेखन को बहुआयामी बनाया। बंगला साहित्य और संस्कृति का शिवानी पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनकी 'आमादेर शान्तिनिकेतन' और 'स्मृति कलश' इस पृष्ठभूमि पर लिखी गयी श्रेष्ठ पुस्तकें हैं। 'कृष्णकली' उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसके दस से भी अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री की उपाधि से सम्मानित किया है। 'करिये छिमा' पर विनोद तिवारी ने फ़िल्म बनाई थी। ‘सुरंगमा’, ‘रतिविलाप’, 'मेरा बेटा' और 'तीसरा बेटा' पर टीवी धारावाहिक बन चुके हैं। प्रमुख कृतियाँ : कृष्णकली, कालिन्दी, अतिथि, पूतों वाली, चल खुसरो घर आपने, श्मशान चम्पा, मायापुरी, कैंजा, गेंदा, भैरवी, स्वयंसिद्धा, विषकन्या, रति विलाप, आकाश (उपन्यास); शिवानी की श्रेष्ठ कहानियाँ, शिवानी की मशहूर कहानियाँ, झरोखा, मृण्माला की हँसी (कहानी संग्रह); आमादेर शान्तिनिकेतन, स्मृति कलश, वातायन, जालक (संस्मरण); चरैवैति, यात्रिक (यात्रा-विवरण); सुनहुँ तात यह अमर कहानी (आत्मकथ्य)। निधन : 21 मार्च 2003।

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