Chaar Din
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चार दिन –
‘चार दिन’ प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक डा. रामविलास शर्मा का लघु-उपन्यास है। यह उपन्यास उत्तर प्रदेश के अवध अंचल के एक गाँव सुर्जपुर की पृष्ठभूमि पर आधारित है। सुर्जपुर गाँव के एक युवक नन्दन और युवती राजेश्वरी के प्रणय सम्बन्धों के इर्द-गिर्द बुनी गयी इस उपन्यास की कथा वस्तु बेहद मर्मस्पर्शी है। नन्दन और राजेश्वरी एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। गाँव वालों की नज़रों से बचकर वे एक-दूसरे से जंगल-खेतों में मिलते हैं। गाँव की निगाहों में पहले ही उनका यह प्रेम सम्बन्ध अस्वाभाविक और असामान्य था। उस पर भी हालात ये बने कि शादी से पहले ही राजेश्वरी नन्दन के बच्चे की माँ बन जाती है। अविवाहित मातृत्व के कलंक से वह गाँव में चर्चा का कारण बन जाती है। राजेश्वरी को नन्दन से अलग कर गाँव के लोग उसे निराश्रित कर देना चाहते हैं। नन्दन को सब कलंकित कहते हैं। पर राजेश्वरी के जीवन की रक्षा का दायित्व स्वीकार करने वाला गाँव में कोई नहीं है।
उपन्यास के अन्य पात्र पं. शिव प्रसाद, मदन, रामजियावन आदि के माध्यम से उपन्यासकार ने गाँव के मेलों-उत्सवों और कुश्तियों के जीवन्त चित्र प्रस्तुत किये हैं। अपनी भाषाई सहजता और ग्रामीण यथार्थ को शिद्दत से उकेरता हुआ रामविलास जी का यह उपन्यास पठनीय और संग्रहणीय है।
चार दिन –
‘चार दिन’ प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक डा. रामविलास शर्मा का लघु-उपन्यास है। यह उपन्यास उत्तर प्रदेश के अवध अंचल के एक गाँव सुर्जपुर की पृष्ठभूमि पर आधारित है। सुर्जपुर गाँव के एक युवक नन्दन और युवती राजेश्वरी के प्रणय सम्बन्धों के इर्द-गिर्द बुनी गयी इस उपन्यास की कथा वस्तु बेहद मर्मस्पर्शी है। नन्दन और राजेश्वरी एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। गाँव वालों की नज़रों से बचकर वे एक-दूसरे से जंगल-खेतों में मिलते हैं। गाँव की निगाहों में पहले ही उनका यह प्रेम सम्बन्ध अस्वाभाविक और असामान्य था। उस पर भी हालात ये बने कि शादी से पहले ही राजेश्वरी नन्दन के बच्चे की माँ बन जाती है। अविवाहित मातृत्व के कलंक से वह गाँव में चर्चा का कारण बन जाती है। राजेश्वरी को नन्दन से अलग कर गाँव के लोग उसे निराश्रित कर देना चाहते हैं। नन्दन को सब कलंकित कहते हैं। पर राजेश्वरी के जीवन की रक्षा का दायित्व स्वीकार करने वाला गाँव में कोई नहीं है।
उपन्यास के अन्य पात्र पं. शिव प्रसाद, मदन, रामजियावन आदि के माध्यम से उपन्यासकार ने गाँव के मेलों-उत्सवों और कुश्तियों के जीवन्त चित्र प्रस्तुत किये हैं। अपनी भाषाई सहजता और ग्रामीण यथार्थ को शिद्दत से उकेरता हुआ रामविलास जी का यह उपन्यास पठनीय और संग्रहणीय है।
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