Chaar Din

Publisher:
Vani Prakashan
| Author:
डॉ. रामविलास शर्मा
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Vani Prakashan
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डॉ. रामविलास शर्मा
Language:
Hindi
Format:
Hardback

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SKU 9788170553504 Category
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64

चार दिन –
‘चार दिन’ प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक डा. रामविलास शर्मा का लघु-उपन्यास है। यह उपन्यास उत्तर प्रदेश के अवध अंचल के एक गाँव सुर्जपुर की पृष्ठभूमि पर आधारित है। सुर्जपुर गाँव के एक युवक नन्दन और युवती राजेश्वरी के प्रणय सम्बन्धों के इर्द-गिर्द बुनी गयी इस उपन्यास की कथा वस्तु बेहद मर्मस्पर्शी है। नन्दन और राजेश्वरी एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। गाँव वालों की नज़रों से बचकर वे एक-दूसरे से जंगल-खेतों में मिलते हैं। गाँव की निगाहों में पहले ही उनका यह प्रेम सम्बन्ध अस्वाभाविक और असामान्य था। उस पर भी हालात ये बने कि शादी से पहले ही राजेश्वरी नन्दन के बच्चे की माँ बन जाती है। अविवाहित मातृत्व के कलंक से वह गाँव में चर्चा का कारण बन जाती है। राजेश्वरी को नन्दन से अलग कर गाँव के लोग उसे निराश्रित कर देना चाहते हैं। नन्दन को सब कलंकित कहते हैं। पर राजेश्वरी के जीवन की रक्षा का दायित्व स्वीकार करने वाला गाँव में कोई नहीं है।

उपन्यास के अन्य पात्र पं. शिव प्रसाद, मदन, रामजियावन आदि के माध्यम से उपन्यासकार ने गाँव के मेलों-उत्सवों और कुश्तियों के जीवन्त चित्र प्रस्तुत किये हैं। अपनी भाषाई सहजता और ग्रामीण यथार्थ को शिद्दत से उकेरता हुआ रामविलास जी का यह उपन्यास पठनीय और संग्रहणीय है।

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Description

चार दिन –
‘चार दिन’ प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक डा. रामविलास शर्मा का लघु-उपन्यास है। यह उपन्यास उत्तर प्रदेश के अवध अंचल के एक गाँव सुर्जपुर की पृष्ठभूमि पर आधारित है। सुर्जपुर गाँव के एक युवक नन्दन और युवती राजेश्वरी के प्रणय सम्बन्धों के इर्द-गिर्द बुनी गयी इस उपन्यास की कथा वस्तु बेहद मर्मस्पर्शी है। नन्दन और राजेश्वरी एक-दूसरे से प्रेम करते हैं। गाँव वालों की नज़रों से बचकर वे एक-दूसरे से जंगल-खेतों में मिलते हैं। गाँव की निगाहों में पहले ही उनका यह प्रेम सम्बन्ध अस्वाभाविक और असामान्य था। उस पर भी हालात ये बने कि शादी से पहले ही राजेश्वरी नन्दन के बच्चे की माँ बन जाती है। अविवाहित मातृत्व के कलंक से वह गाँव में चर्चा का कारण बन जाती है। राजेश्वरी को नन्दन से अलग कर गाँव के लोग उसे निराश्रित कर देना चाहते हैं। नन्दन को सब कलंकित कहते हैं। पर राजेश्वरी के जीवन की रक्षा का दायित्व स्वीकार करने वाला गाँव में कोई नहीं है।

उपन्यास के अन्य पात्र पं. शिव प्रसाद, मदन, रामजियावन आदि के माध्यम से उपन्यासकार ने गाँव के मेलों-उत्सवों और कुश्तियों के जीवन्त चित्र प्रस्तुत किये हैं। अपनी भाषाई सहजता और ग्रामीण यथार्थ को शिद्दत से उकेरता हुआ रामविलास जी का यह उपन्यास पठनीय और संग्रहणीय है।

About Author

रामविलास शर्मा - 10 अक्टूबर, 1912 को ज़िला उन्नाव के ऊँच गाँव सानी में जन्म। लखनऊ विश्वविद्यालय से 1982 में बी.ए. और 1984 में अंग्रेज़ी साहित्य से एम.ए. 1988 तक शोध कार्य। '38 से '43' तक लखनऊ विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी अध्यापक। '43' से '71 तक बलवन्त राजपूत कालेज, आगरा में अध्यापक '74' तक के.एम. हिन्दी संस्थान के निदेशक रहने के बाद अवकाश ग्रहण। 1949 से '53 तक अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महामन्त्री रहे। आजकल दिल्ली में स्वतन्त्र लेखन। वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित डॉ. रामविलास शर्मा की पुस्तकें - लोक जागरण और हिन्दी साहित्य (सं.), मार्क्सवाद और प्रगतिशील साहित्य मानव सभ्यता का विकास भाषा, युगबोध और कविता, कथा विवेचना और गद्य शिल्प, विराम चिह्न, बड़े भाई।

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