Cafe Cine Sangeet (PB)

Publisher:
Rajkamal
| Author:
Pankaj Rag
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Rajkamal
Author:
Pankaj Rag
Language:
Hindi
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Paperback

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फ़ि‍ल्मों का गीत-संगीत भारतीय जन-जीवन का अभिन्न हिस्सा है। शायद ही ऐसा कोई समय हो जब कहीं-न-कहीं से किसी फ़िल्मी गीत की कोई धुन, कोई बोल, कोई पंक्ति हमारे आसपास न रहती हो। वे हमारा मनोरंजन भी हैं, हमारा फ़लसफ़ा भी, हमारे सुख-दुख की अभिव्यक्ति भी।
दुनि‍या में कहीं भी फ़िल्में आम ज़िन्दगी में इस तरह शामिल नहीं हैं जैसे हमारे यहाँ। बल्कि हिन्दी गीतों की लोकप्रियता तो उन क्षेत्रों में भी है जहाँ की भाषा हिन्दी नहीं है फिर भी गीत-संगीत के इस जादुई संसार पर ढंग की किताबें कुछ कम ही हैं।
पंकज राग ने ‘धुनों की यात्रा’ शीर्षक अपनी चर्चित किताब में इस तरफ़ क़दम बढ़ाते हुए फ़िल्मी गीतों को लेकर एक दस्तावेज़ी काम किया था। अब इस किताब में वे हिन्दी फ़िल्मी गीतों पर कुछ और ही अन्दाज़ में बात करते हुए उनके माध्यम से भारतीय समाज को भी समझने और समझाने का प्रयास कर रहे हैं।
फ़िल्मी गीतों के इतिहास को अलग-अलग सन्दर्भों और कोणों से देखते हुए वे इस किताब में न सिर्फ़ फ़िल्मी गीतों का विश्लेषण करते हैं, बल्कि उनकी संरचना, स्वीकृति, लोकप्रियता और विषयवस्तु की जानकारी देते हुए भारतीय समाज के उतार-चढ़ाव, उसके ग्राफ़ को भी अंकित करते चलते हैं।

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Description

फ़ि‍ल्मों का गीत-संगीत भारतीय जन-जीवन का अभिन्न हिस्सा है। शायद ही ऐसा कोई समय हो जब कहीं-न-कहीं से किसी फ़िल्मी गीत की कोई धुन, कोई बोल, कोई पंक्ति हमारे आसपास न रहती हो। वे हमारा मनोरंजन भी हैं, हमारा फ़लसफ़ा भी, हमारे सुख-दुख की अभिव्यक्ति भी।
दुनि‍या में कहीं भी फ़िल्में आम ज़िन्दगी में इस तरह शामिल नहीं हैं जैसे हमारे यहाँ। बल्कि हिन्दी गीतों की लोकप्रियता तो उन क्षेत्रों में भी है जहाँ की भाषा हिन्दी नहीं है फिर भी गीत-संगीत के इस जादुई संसार पर ढंग की किताबें कुछ कम ही हैं।
पंकज राग ने ‘धुनों की यात्रा’ शीर्षक अपनी चर्चित किताब में इस तरफ़ क़दम बढ़ाते हुए फ़िल्मी गीतों को लेकर एक दस्तावेज़ी काम किया था। अब इस किताब में वे हिन्दी फ़िल्मी गीतों पर कुछ और ही अन्दाज़ में बात करते हुए उनके माध्यम से भारतीय समाज को भी समझने और समझाने का प्रयास कर रहे हैं।
फ़िल्मी गीतों के इतिहास को अलग-अलग सन्दर्भों और कोणों से देखते हुए वे इस किताब में न सिर्फ़ फ़िल्मी गीतों का विश्लेषण करते हैं, बल्कि उनकी संरचना, स्वीकृति, लोकप्रियता और विषयवस्तु की जानकारी देते हुए भारतीय समाज के उतार-चढ़ाव, उसके ग्राफ़ को भी अंकित करते चलते हैं।

About Author

पंकज राग

मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार) में जन्मे पंकज राग ने सेंट स्टीफ़ंस कॉलेज, दिल्ली से इतिहास विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से आधुनिक भारतीय इतिहास में एम.फ़िल. की उपाधि प्राप्त की तथा दिल्ली विश्वविद्यालय में लगभग डेढ़ वर्ष तक अध्यापन किया। 1990 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा (मध्य प्रदेश संवर्ग) में आए।

पंकज राग ने पुरातत्त्वविज्ञान, अभिलेखागार एवं संग्रहालय आयुक्त, मध्य प्रदेश सरकार के रूप में भी अपनी सेवा प्रदान की है। उन्होंने निदेशक, भारतीय फ़िल्म एवं टेलीविज़न संस्थान, पुणे तथा मध्य प्रदेश सरकार में अन्य महत्त्वपूर्ण पदों को सुशोभित किया है।

एक संगीत विशेषज्ञ के रूप में पंकज राग ने फ़िल्मों और संस्कृति पर गहन शोध किया है और सन् 1931 से 2005 तक के फ़िल्म संगीत निर्देशकों पर आधारित उनकी पुस्तक ‘धुनों की यात्रा’ बहुचर्चित रही है। वे प्रख्यात हिन्दी कवि हैं। उनके कविता-संग्रह ‘यह भूमंडल की रात है’ पर उन्हें प्रतिष्ठित ‘केदार सम्मान’, ‘मीरा स्मृति सम्मान’ और ‘स्पन्दन कृति सम्मान’ प्राप्त हुआ है। रूपा एंड कम्पनी से प्रकाशित अपनी कृति ‘1857 : दी ओरल ट्रैडिशन’ में उन्होंने लोकगीतों एवं लोककथाओं के माध्यम से प्रथम स्वतंत्रता-संग्राम को पुनर्सृजित किया है।

उनकी अन्य कृतियाँ हैं—‘विन्टेज मध्य प्रदेश, भोपाल 50 इयर्स’, ‘मास्टर पीसेज ऑफ़ मध्य प्रदेश’, ‘राग-रागिनी फोलियो’, ‘रायसेन का पुरातत्त्व’, ‘राजगढ़ का पुरातत्त्व’, ‘मंदसौर का पुरातत्त्व’, ‘नोन एंड अननोन : एन इंसाइक्लोपीडिया ऑफ़ मॉन्यूमेंट्स ऑफ़ मध्य प्रदेश’ आदि।

फिलहाल वे भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय में संयुक्त सचिव एवं महानिदेशक, राष्ट्रीय अभिलेखागार के पद पर कार्यरत हैं।

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