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Bodh Gaya ka Mahabodhi Mandir: Ek Etihasik Rooprekha
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₹250 ₹225
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यह पुस्तक गया धर्मक्षेत्र के भीतर बोकाएकाकिस्त के रूप में उड़म को अवलोकन करती है। यह बोधि को ग्राप्त करने के कुछ समय पहले और बाद में बुद्ध के अनुभवों से जुड़ीं उनविभिन्न बैठकों घटनाओं व किंवदंतियों का संदर्भ देता है, जब वे आध्यात्मिक रूप से बेहद अकेले थे और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी गया धर्मक्षेत्र में अपने लिये जगह बनाते की कोशिश कर रहे थे। इसके अलावा इस पुस्तक में महाबोधि मंदिर के उदान में दिये गए योगदान में विभिन्न व्यकिवों और संस्थानों की भूमिका की जांच की गई है। सन्दर्भ में इसके भौद्धिक संसाधनों के उपयोग तथा इसके संरक्षण और विकास में विक्टोरियन भाराराविदों की भूमिका केह अनगारिक धर्मपाल की भूमिका की ओर विशेष दिया गया है। यह सास्कृतिक अध्ययन और कला अस्तुकता के छात्रों और विद्वानों के और हिंदू धर्म के अनुपापियों के लिये भी एक अनिवार्य रूथ सेमा जाने वाला है।
यह पुस्तक गया धर्मक्षेत्र के भीतर बोकाएकाकिस्त के रूप में उड़म को अवलोकन करती है। यह बोधि को ग्राप्त करने के कुछ समय पहले और बाद में बुद्ध के अनुभवों से जुड़ीं उनविभिन्न बैठकों घटनाओं व किंवदंतियों का संदर्भ देता है, जब वे आध्यात्मिक रूप से बेहद अकेले थे और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी गया धर्मक्षेत्र में अपने लिये जगह बनाते की कोशिश कर रहे थे। इसके अलावा इस पुस्तक में महाबोधि मंदिर के उदान में दिये गए योगदान में विभिन्न व्यकिवों और संस्थानों की भूमिका की जांच की गई है। सन्दर्भ में इसके भौद्धिक संसाधनों के उपयोग तथा इसके संरक्षण और विकास में विक्टोरियन भाराराविदों की भूमिका केह अनगारिक धर्मपाल की भूमिका की ओर विशेष दिया गया है। यह सास्कृतिक अध्ययन और कला अस्तुकता के छात्रों और विद्वानों के और हिंदू धर्म के अनुपापियों के लिये भी एक अनिवार्य रूथ सेमा जाने वाला है।
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