Bodh Gaya ka Mahabodhi Mandir: Ek Etihasik Rooprekha

Publisher:
Motilal Banarsidass Publishers
| Author:
K. T. S. Sarao
| Language:
Hindi
| Format:
Paperback
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Motilal Banarsidass Publishers
Author:
K. T. S. Sarao
Language:
Hindi
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Paperback

225

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यह पुस्तक गया धर्मक्षेत्र के भीतर बोकाएकाकिस्त के रूप में उड़म को अवलोकन करती है। यह बोधि को ग्राप्त करने के कुछ समय पहले और बाद में बुद्ध के अनुभवों से जुड़ीं उनविभिन्न बैठकों घटनाओं व किंवदंतियों का संदर्भ देता है, जब वे आध्यात्मिक रूप से बेहद अकेले थे और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी गया धर्मक्षेत्र में अपने लिये जगह बनाते की कोशिश कर रहे थे। इसके अलावा इस पुस्तक में महाबोधि मंदिर के उदान में दिये गए योगदान में विभिन्न व्यकिवों और संस्थानों की भूमिका की जांच की गई है। सन्दर्भ में इसके भौद्धिक संसाधनों के उपयोग तथा इसके संरक्षण और विकास में विक्टोरियन भाराराविदों की भूमिका केह अनगारिक धर्मपाल की भूमिका की ओर विशेष दिया गया है। यह सास्कृतिक अध्ययन और कला अस्तुकता के छात्रों और विद्वानों के और हिंदू धर्म के अनुपापियों के लिये भी एक अनिवार्य रूथ सेमा जाने वाला है।

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यह पुस्तक गया धर्मक्षेत्र के भीतर बोकाएकाकिस्त के रूप में उड़म को अवलोकन करती है। यह बोधि को ग्राप्त करने के कुछ समय पहले और बाद में बुद्ध के अनुभवों से जुड़ीं उनविभिन्न बैठकों घटनाओं व किंवदंतियों का संदर्भ देता है, जब वे आध्यात्मिक रूप से बेहद अकेले थे और अत्यधिक प्रतिस्पर्धी गया धर्मक्षेत्र में अपने लिये जगह बनाते की कोशिश कर रहे थे। इसके अलावा इस पुस्तक में महाबोधि मंदिर के उदान में दिये गए योगदान में विभिन्न व्यकिवों और संस्थानों की भूमिका की जांच की गई है। सन्दर्भ में इसके भौद्धिक संसाधनों के उपयोग तथा इसके संरक्षण और विकास में विक्टोरियन भाराराविदों की भूमिका केह अनगारिक धर्मपाल की भूमिका की ओर विशेष दिया गया है। यह सास्कृतिक अध्ययन और कला अस्तुकता के छात्रों और विद्वानों के और हिंदू धर्म के अनुपापियों के लिये भी एक अनिवार्य रूथ सेमा जाने वाला है।

About Author

कर्म तेज सिंह सराओ दिल्ली विश्वविद्यालय के बौद्ध अध्ययन विभाग के पूर्व प्रफेसर व विभाग प्रमुख हैं। उन्होंने दिल्ली और कैम्ब्रिज, विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की उपाधि और फ्नोम पेनह के प्रिय सिह राजा बौद्ध विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्हें १९८५ में ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिष्ठित राष्ट्रमंडल छात्रवृत्ति से सम्मानित किया गया था। उन्होंने भारतीय बौद्ध धर्म, पालि, तीर्थयात्रा, और धार्मिक बहुलवाद मर विस्तार से लिखा है। हिंदी में उनकी कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तके प्राचीन भारतीय बौध धर्म (२००४), कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रा (२०१०), धम्मपद एक व्युत्पत्तिपरक अनुवाद (२०१५), और बाकू का अखंड अग्नि मंदिर (२०२१) और Baku's Temple of Eternal Fire (2021) हैं। २०१८ में भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें पालि भाषा के क्षेत्र में अभूत योगदान के लिये प्रतिष्ठा प्रमाणपत्र तथा २०२० में भारत सरकार ने तैशाख सम्मान प्रशस्ति पत्र प्रदान किया।

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