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Bimb Pratibimb
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बिम्ब प्रतिबिम्ब –
मराठी के वरिष्ठ उपन्यासकार और लेखक चन्द्रकान्त खोत द्वारा लिखित महापुरुषों के जीवन पर आधारित अनेक उपन्यासों में से एक है – स्वामी विवेकानन्द के जीवन पर आधारित आत्मकथात्मक बृहद् उपन्यास ‘बिम्ब प्रतिबिम्ब’। विवेकानन्द पर अधिकांश भारतीय भाषाओं में बहुत कुछ लिखा गया है, फिर भी उनके जीवन के कई ऐसे पहलू हैं जिनसे आम पाठक आज भी अनभिज्ञ है। बिम्ब प्रतिबिम्ब में ऐसे कई रोचक प्रसंग हैं जो न केवल पाठकों को गुदगुदाते हैं, उन्हें आत्मविभोर भी करते हैं।
लेखक ने इस उपन्यास के माध्यम से हमारी विविधतापूर्ण संस्कृति में भारतीयता की मूलभूत ऊँचाइयों को बड़ी शिद्दत से स्वर दिया है। मानवीय गुणों के प्रति समर्पण का भाव कथानक की धारा में आदि से अन्त तक देखा जा सकता है। स्वामी विवेकानन्द, गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस, उनके गुरुबन्धु, स्वामीजी का देश-विदेश भ्रमण और देश की तात्कालिक परिस्थितियाँ । सभी कुछ प्रस्तुत कृति में एक ही जगह समाहित करने का लेखक का प्रयास रहा है। रामकृष्ण और विवेकानन्द दोनों स्वच्छ आईने की तरह हैं, जिनकी बिम्ब और प्रतिबिम्ब के रूप में प्रस्तुति हमारे आज के समाज के लिए एक आदर्श उदाहरण है।
स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयन्ती वर्ष पर पाठकों को समर्पित है एक अत्यन्त पठनीय और रोचक प्रसंगों से भरी जीवन-गाथा – ‘बिम्ब प्रतिबिम्ब’ ।
बिम्ब प्रतिबिम्ब –
मराठी के वरिष्ठ उपन्यासकार और लेखक चन्द्रकान्त खोत द्वारा लिखित महापुरुषों के जीवन पर आधारित अनेक उपन्यासों में से एक है – स्वामी विवेकानन्द के जीवन पर आधारित आत्मकथात्मक बृहद् उपन्यास ‘बिम्ब प्रतिबिम्ब’। विवेकानन्द पर अधिकांश भारतीय भाषाओं में बहुत कुछ लिखा गया है, फिर भी उनके जीवन के कई ऐसे पहलू हैं जिनसे आम पाठक आज भी अनभिज्ञ है। बिम्ब प्रतिबिम्ब में ऐसे कई रोचक प्रसंग हैं जो न केवल पाठकों को गुदगुदाते हैं, उन्हें आत्मविभोर भी करते हैं।
लेखक ने इस उपन्यास के माध्यम से हमारी विविधतापूर्ण संस्कृति में भारतीयता की मूलभूत ऊँचाइयों को बड़ी शिद्दत से स्वर दिया है। मानवीय गुणों के प्रति समर्पण का भाव कथानक की धारा में आदि से अन्त तक देखा जा सकता है। स्वामी विवेकानन्द, गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस, उनके गुरुबन्धु, स्वामीजी का देश-विदेश भ्रमण और देश की तात्कालिक परिस्थितियाँ । सभी कुछ प्रस्तुत कृति में एक ही जगह समाहित करने का लेखक का प्रयास रहा है। रामकृष्ण और विवेकानन्द दोनों स्वच्छ आईने की तरह हैं, जिनकी बिम्ब और प्रतिबिम्ब के रूप में प्रस्तुति हमारे आज के समाज के लिए एक आदर्श उदाहरण है।
स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जयन्ती वर्ष पर पाठकों को समर्पित है एक अत्यन्त पठनीय और रोचक प्रसंगों से भरी जीवन-गाथा – ‘बिम्ब प्रतिबिम्ब’ ।
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