BHARTIYA ITIHAAS KA AADICHARAN: PASHAN YUG (in Hindi)

Publisher:
Aryan Books International
| Author:
Vidula Jaiswal
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
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Aryan Books International
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Vidula Jaiswal
Language:
Hindi
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Hardback

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SKU 9788173056949 Category
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306

आधुनिक तकनीकियों के ताने-बाने में बुनी संस्कृति और सभ्यता, लगभग अट्ठारह लाख वर्षों के क्रमिक विकास का परिणाम है। संस्कृतियों का निर्माता तथा उसका परिवेश भी परिवर्तन की प्रक्रिया से लम्बे अवधि तक अछूता नही था। परिवर्तन की इस प्रक्रिया का एक अहम् बिन्दु प्रकृति में मानव का पदार्पण था क्योंकि यहाँ से ही मानव के इतिहास का प्रारम्भ होता है। इतिहास का उषा-काल पाषाण युग है जिससे तकनीकियों, सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं की नींव पड़ी। सर्वविदित है कि आधार या प्रारम्भ किसी भी प्रक्रिया के समझ के लिए आवश्यक है, फिर वह मानव का इतिहास ही क्यों न हो।

इस पुस्तक का उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप के पाषाण युग का निरूपण है। उसके लिए विश्व का संदर्भ आवश्यक प्रतीत हुआ। क्योंकि जिस अत्यन्त प्राचीन परिपेक्ष का विश्लेषण इसमें किया जा रहा है, वह कई क्षेत्रों में आंशिक रूप से ही सुरक्षित रह पाया है। अतएव इस पुस्तक में विश्वव्यापी तथ्यों को संजोकर पाषाण युग के मानव तथा उसके द्वारा निर्मित कृतियों को रेखांकित किया गया है। यह पृष्ठभूमि भारतीय उपमहाद्वीप के पुरा-प्रस्तर, मध्य-प्रस्तर, तथा नूतन-प्रस्तर की समीक्षा का आधार है। पाषाणकालीन तकनीकियों, उपकरण प्रकार, महत्वपूर्ण स्थल, परिभाषाएँ, इन सबका परिचय मूलरूप से विद्यार्थियों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया गया है।

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Description

आधुनिक तकनीकियों के ताने-बाने में बुनी संस्कृति और सभ्यता, लगभग अट्ठारह लाख वर्षों के क्रमिक विकास का परिणाम है। संस्कृतियों का निर्माता तथा उसका परिवेश भी परिवर्तन की प्रक्रिया से लम्बे अवधि तक अछूता नही था। परिवर्तन की इस प्रक्रिया का एक अहम् बिन्दु प्रकृति में मानव का पदार्पण था क्योंकि यहाँ से ही मानव के इतिहास का प्रारम्भ होता है। इतिहास का उषा-काल पाषाण युग है जिससे तकनीकियों, सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं की नींव पड़ी। सर्वविदित है कि आधार या प्रारम्भ किसी भी प्रक्रिया के समझ के लिए आवश्यक है, फिर वह मानव का इतिहास ही क्यों न हो।

इस पुस्तक का उद्देश्य भारतीय उपमहाद्वीप के पाषाण युग का निरूपण है। उसके लिए विश्व का संदर्भ आवश्यक प्रतीत हुआ। क्योंकि जिस अत्यन्त प्राचीन परिपेक्ष का विश्लेषण इसमें किया जा रहा है, वह कई क्षेत्रों में आंशिक रूप से ही सुरक्षित रह पाया है। अतएव इस पुस्तक में विश्वव्यापी तथ्यों को संजोकर पाषाण युग के मानव तथा उसके द्वारा निर्मित कृतियों को रेखांकित किया गया है। यह पृष्ठभूमि भारतीय उपमहाद्वीप के पुरा-प्रस्तर, मध्य-प्रस्तर, तथा नूतन-प्रस्तर की समीक्षा का आधार है। पाषाणकालीन तकनीकियों, उपकरण प्रकार, महत्वपूर्ण स्थल, परिभाषाएँ, इन सबका परिचय मूलरूप से विद्यार्थियों की आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया गया है।

About Author

लेखिका प्रो. विदुला जायसवाल विश्वविख्यात प्रागैतिहासकार के साथ ही अति प्रतिष्ठित अध्यापक भी हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रागैतिहास की शिक्षिका के रूप में लगभग चार दशकों तक उनकी कार्यप्रणाली तथा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पुरातत्व अध्ययन विभाग में समय समय पर किए गये अध्यापन से प्रागैतिहासकार के रूप में उनकी ख्याति देश में स्थापित हो गई।

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